पूर्व महिला अधिकारी के आवेगपूर्ण निर्णय को 'दबाव' नहीं कह सकते
कोई न्यायिक अधिकारी आवेग में निर्णय नहीं ले सकता क्योंकि उसका मुख्य काम किसी परिस्थिति से प्रभावित हुए बिना निर्णय लेना है! सालिसिटर जनरल ने बताया कि यदि कोई व्यक्ति अनियमित और अनुचित स्थानांतरण का सामना करता है तो इसके लिए पूरी संस्था को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
नई दिल्ली, प्रेट्र। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उस पूर्व महिला न्यायिक अधिकारी के 'आवेगपूर्ण' निर्णय को 'दबाव' नहीं कहा जा सकता जिसने हाई कोर्ट के एक जज के खिलाफ लगाए गए अपने यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच होने के बाद इस्तीफा दे दिया था। शीर्ष अदालत महिला न्यायिक अधिकारी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने अपनी बहाली की मांग की थी।
हाई कोर्ट के महापंजीयक की ओर से सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि यदि कोई व्यक्ति अनियमित और अनुचित स्थानांतरण का सामना करता है, तो इसके लिए पूरी संस्था को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।जस्टिस एल नागेश्र्वर राव और बीआर गवई की पीठ के समक्ष मेहता ने कहा कि केवल एक अनुचित स्थानांतरण यह घोषणा करने की मांग का उचित आधार नहीं हो सकता कि मुझे प्रताडि़त किया गया और मुझे इस्तीफा देना पड़ा। अधिकारी ने आगे कहा कि कोई न्यायिक अधिकारी आवेग में निर्णय नहीं ले सकता, क्योंकि उसका मुख्य काम किसी परिस्थिति से प्रभावित हुए बिना निर्णय लेना है। मेहता ने कहाकि यदि असुविधाजनक पारिवारिक परिस्थितियों वाले किसी अधिकारी के केवल मध्यावधि स्थानांतरण को यदि कर्मचारी पर पर्याप्त दबाव माना जाता है, तो कोई भी संगठन कोई प्रशासनिक निर्णय नहीं ले सकता है।
मेहता ने कहा कि मेरे मित्र ने पश्चात्य न्यायशास्त्र पर भरोसा किया है। लेकिन हमारा न्याय शास्त्र, पश्चिमी विधिशास्त्र से प्रभावित नहीं होना चाहिए। इस पर याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने न्याय शास्त्र के प्रति एसजी के 'राष्ट्रवादी' रवैये पर कड़ी आपत्ति जताई। जयसिंह ने पीठ के समक्ष कहा कि मैं एक अंतरराष्ट्रीयतावादी हूं और मैं हर जगह प्रकाश की तलाश करूंगी, मैं आपके सामने विभिन्न न्यायालयों के फैसले रखूंगी। यह आप पर निर्भर है कि आप इसे स्वीकार करते हैं या नहीं।उन्होंने सालिसिटर जनरल द्वारा याचिकाकर्ता को 'भावुक' करार देने पर भी नाराजगी व्यक्त की और कहा कि यह एक रूढि़वादी तर्क है।
हाई कोर्ट के जिस जज के खिलाफ महिला न्यायिक अधिकारी ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे, उन्हें दिसंबर 2017 में आरोपों की जांच करने वाली राज्यसभा द्वारा नियुक्त समिति ने दोषी नहीं पाया था। महिला ने अपनी याचिका में कहा है कि हाई कोर्ट ने 15 दिसंबर, 2017 की जजों की जांच समिति की रिपोर्ट के स्पष्ट निष्कर्ष की अनदेखी की, जिसमें अतिरिक्त जिला जज के पद से याचिकाकर्ता के 15 जुलाई 2014 के इस्तीफे को असहनीय परिस्थतियों में लिया गया कदम बताया था। याचिका में कहा गया कि जजों की जांच समिति ने कहा था कि 'याचिकाकर्ता को सेवा में बहाल किया जाए क्योंकि उसने दबाव में इस्तीफा दिया था।'