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    1971 युद्ध के 'हीरो' पूर्व ग्रुप कैप्टन पारुलकर का निधन, 1963 में भारतीय वायुसेना में मिला था कमीशन

    Updated: Mon, 11 Aug 2025 02:18 AM (IST)

    1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान युद्धबंदियों की कैद से भागने वाले वायु सेना के पूर्व ग्रुप कैप्टन डीके पारुलकर का निधन हो गया। वायुसेना ने उनके साहस और चतुराई की सराहना करते हुए संवेदना व्यक्त की। हृदय गति रुकने से 82 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ। उन्हें 1963 में वायुसेना में कमीशन मिला था।

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    पाकिस्तान में युद्धबंदियों की कैद से फरार होने का साहस दिखाया था (फाइल फोटो)

    पीटीआई, नई दिल्ली। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान युद्धबंदियों की कैद से भागने का साहस दिखाने वाले वायु सेना के पूर्व ग्रुप कैप्टन डीके पारुलकर का रविवार को निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार पुणे में किया गया। उनके परिवार में पत्नी और दो बेटे हैं।

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    वायुसेना ने एक्स पर पोस्ट किया, '1971 के युद्ध के हीरो ग्रुप कैप्टन डीके पारुलकर (सेवानिवृत्त) वीएम, वीएसएम का स्वर्गवास हो गया है। उन्होंने वायुसेना में बेजोड़ साहस, चतुराई और गौरव का परिचय देते हुए पाकिस्तान में युद्धबंदियों की कैद से फरार होने का साहस दिखाया था। उनके निधन पर भारतीय वायुसेना के सभी वायु योद्धा अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं।'

    हृदय गति रुकने से निधन हुआ

    साथ ही, पोस्ट में उनके वीरता पुरस्कार प्रशस्ति पत्र का एक पुराना अंश भी साझा किया गया। पारुलकर के बेटे आदित्य पारुलकर ने बताया, 'मेरे पिता का 82 वर्ष की आयु में सुबह पुणे स्थित हमारे आवास पर हृदय गति रुकने से निधन हो गया।' पारुलकर को मार्च, 1963 में भारतीय वायुसेना में कमीशन मिला था।

    उन्होंने पूर्व में वायु सेना अकादमी में फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर सहित विभिन्न पदों पर कार्य किया था। प्रशस्ति पत्र के पुराने अंश में लिखा है, '1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उनका विमान दुश्मन की गोलाबारी की चपेट में आ गया और उनके दाहिने कंधे में चोट लग गई। अपने कमांडर द्वारा विमान से बाहर निकलने की सलाह दिए जाने के बावजूद वह क्षतिग्रस्त विमान को वापस बेस तक उड़ाकर ले आए जिसके लिए उन्हें वायु सेना पदक से सम्मानित किया गया।'

    1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान तत्कालीन विंग कमांडर पारुलकर ने पाकिस्तान में युद्धबंदी रहते हुए भी 'अपने देश और भारतीय वायु सेना के प्रति असाधारण गर्व और साहस का परिचय दिया। वह अपने दो अन्य सहयोगियों के साथ युद्धबंदी शिविर से भाग निकलने में सफल रहे।' उन्हें विशिष्ट सेना पदक से भी सम्मानित किया गया।

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