'माइनिंग लीज, अवैध खनन, 90 फीसदी एरिया संरक्षित...', Aravalli Hills विवाद पर बोले पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने अरावली पहाड़ियों को लेकर स्थिति स्पष्ट की है। उन्होंने कहा कि अरावली क्षेत्र में कोई छूट नहीं दी जाएगी। मंत् ...और पढ़ें

अरावली पहाड़ियों पर भ्रम को लेकर पर्यावरण मंत्री ने स्पष्ट की स्थिति ( फाइल फोटो- PTI)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अरावली पहाड़ियों को लेकर इन दिनों देशभर में बवाल मचा हुआ है। अरावली पर्वतमाला को लेकर चल रही चर्चाओं और भ्रम पर केंद्रीय पर्यावरण भूपेंद्र यादव ने स्थिति पूरी तरह साफ कर दी है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अरावली क्षेत्र में किसी भी तरह की कोई छूट नहीं दी गई है और न ही दी जाएगी।
ANI को दिए एक इंटरव्यू में, केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि अरावली रेंज सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। हम यह सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं कि ये पर्वत श्रृंखलाएं हरी-भरी रहें। इसके साथ ही, सुरक्षा के लिए मानक भी स्थापित किए जाने चाहिए।
हमने ग्रीन अरावली वॉल आंदोलन भी शुरू किया, मुद्दा यह है कि अरावली रेंज की परिभाषा सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में दो बातें कहीं, जिन्हें लोग छिपा रहे हैं। भूपेंद्र यादव ने पर्यावरण, वन मंत्रालय के ग्रीन अरावली वॉल आंदोलन की सराहना की।
90 प्रतिशत क्षेत्र सुरक्षित
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा- अरावली पहाड़ियों और अरावली रेंज में क्या शामिल है? तो दुनिया भर के भूविज्ञानी, जो भूविज्ञान में काम करते हैं, रिचर्ड मर्फी द्वारा दी गई एक मानक परिभाषा को स्वीकार करते हैं कि 100 मीटर ऊंची पहाड़ी को पहाड़ माना जाता है। सिर्फ उसकी ऊंचाई ही उसे पहाड़ के रूप में परिभाषित नहीं करती। ऊंचाई से लेकर जमीन के स्तर तक, पूरे 100 मीटर की सुरक्षा की जाती है और 90 प्रतिशत क्षेत्र सुरक्षित है।
100 मीटर का मतलब पहाड़
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि 100 मीटर का मतलब है पहाड़ की चोटी से लेकर जमीन के स्तर तक और उस बिंदु तक जहां उसका स्थायी आधार जमीन पर स्थित है, जिसमें पूरी संरचना शामिल है। अब तक, अरावली क्षेत्र में स्पष्ट परिभाषा की कमी के कारण, खनन परमिट में अनियमितताएं थीं। 58 प्रतिशत क्षेत्र कृषि भूमि है। फिर हमारे शहर, हमारे गांव, हमारी बस्तियां हैं। इसके अलावा, हमारे पास हमारा संरक्षित क्षेत्र है, जिसका लगभग बीस प्रतिशत संरक्षित क्षेत्र है। आप वहां कुछ भी नहीं कर सकते।
साइंटिफिक प्लान
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने अरावली पहाड़ियों के इलाकों में माइनिंग लीज के बारे में बात करते हुए कहा कि नई माइनिंग के लिए, सुप्रीम कोर्ट की योजना है कि पहले एक साइंटिफिक प्लान होगा, इसमें ICFRE शामिल होगा। उसके बाद ही इस पर विचार किया जाएगा। लेकिन मैं बहुत साफ तौर पर कह रहा हूं कि 0.19 प्रतिशत से ज्यादा इलाके में यह संभव नहीं होगा। माइनिंग पहले से ही चल रही थी। उसी आधार पर परमिशन दी जा रही थी। लेकिन वहां जो हो रहा था वह गड़बड़ी और अवैध माइनिंग थी। प्रतिबंधित और वर्जित क्षेत्रों को साफ तौर पर परिभाषित करके, आप सख्त पालन सुनिश्चित कर सकते हैं।
सिर्फ पेड़ लगाना ही काफी नहीं
वहीं, पेड़ लगाने के बारे में उन्होंने कहा कि इसका कोई विकल्प नहीं हो सकता, इसलिए अरावली रेंज को सुरक्षा की जरूरत है। सिर्फ चारों ओर पेड़ लगाना ही काफी नहीं है, इस इकोलॉजी में घास, झाड़ियां और औषधीय पौधे शामिल हैं, जो एक इकोलॉजिकल सिस्टम का हिस्सा हैं और हमारे मंत्रालय द्वारा बनाए गए इंटरनेशनल बिग कैट अलायंस का भी। तो, बिग कैट अलायंस का मतलब सिर्फ यह नहीं है कि हम बाघों का संरक्षण करें। बल्कि एक बाघ तभी किसी जगह पर जिंदा रह सकता है, जब उसका शिकार और उसे सपोर्ट करने वाला पूरा इकोलॉजिकल सिस्टम भी मौजूद हो और हिरण और दूसरे जानवर तभी जिंदा रहेंगे जब उनके लिए घास और दूसरी वनस्पति होगी।
सिर्फ पेड़ों की बात नहीं...
इसीलिए हमने 29 से ज्यादा नर्सरी स्थापित की है और हम उन्हें हर जिले में फैलाने की योजना बना रहे हैं। हमने पूरे अरावली रेंज के हर जिले में स्थानीय वनस्पतियों का अध्ययन किया है और इकोसिस्टम में छोटी घास से लेकर बड़े पेड़ों तक सब कुछ शामिल है। इसीलिए मैं सिर्फ पेड़ों की बात नहीं करता मैं पूरी इकोलॉजी की बात करता हूं।
'शहरीकरण की ऐसी कोई योजना नहीं है
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि शहरीकरण की ऐसी कोई योजना नहीं है। यह योजना पूरी तरह से सिर्फ अरावली की सुरक्षा के लिए है, मैं ऐसे कई शहरों के नाम बता सकता हूं जो पहले से ही अरावली में हैं। यह सदियों से इंसानों के रहने की जगह रही है। राज्यों को परिभाषा के आधार पर कड़े नियम बनाने होंगे, और 90% इलाके में माइनिंग संभव नहीं है। मैं आपको सबसे बड़े माइनिंग जिलों का हिसाब बता रहा हूं, जिसमें राजसमंद और उदयपुर शामिल हैं। वहां भी अगर आप औसत लें, तो एक प्रतिशत से भी कम, शायद सिर्फ 0.1 प्रतिशत इलाके में ही माइनिंग की इजाज़त दी जा सकती है। वह भी तब तक नहीं होगा जब तक राज्य सरकारें कोई प्लान नहीं बनातीं। अवैध माइनिंग पूरी तरह से बंद कर दी जाएगी। कोर्ट जो भी नियम और कानून तय करेगा, हम उन्हें पूरी तरह से लागू करेंगे। (समाचार एजेंसी ANI के इनपुट के साथ)

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।