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    कुछ रिश्तों के नाम नहीं होते... घर में काम करने वाली की पोती के नाम इंजीनियर ने सौंपी प्रॉपर्टी; गुजरात में अनोखा मामला

    Updated: Thu, 07 Aug 2025 02:07 PM (IST)

    गुजरात के गुस्ताद बोरजोरजी ने अपनी वसीयत अपनी पोती अमीषा मकवाना के नाम कर दी जिससे उनका खून का रिश्ता नहीं था। पेशे से इंजीनियर गुस्ताद की पत्नी का निधन 2001 में हो गया था और उनका कोई कानूनी उत्तराधिकारी नहीं था। अमीषा जो उनके घर काम करने वाली महिला की पोती थीं उनकी देखभाल करती थीं।

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    टाटा इंडस्ट्रीज में काम करते थे गुजरात के गुस्ताद बोरजोरजी। (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश के कई हिस्सों से कुछ ऐसी कहानियां देखने को मिलती हैं, जो आंखों को नम कर देती हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है गुजरात के गुस्ताद बोरजोरजी की। उन्होंने साल 2014 में आखिरी सांस ली।

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    अपने अंतिम समय में उन्होंने अपनी वसीयत एक ऐसी पोती के नाम की, जिससे उनका खून का रिश्ता तो नहीं था। लेकिन इससे बढ़कर एक रिश्ता था। पिछले हफ्ते ही अहमदाबाद शहर की एक अदालत ने वसीयत को मंजूरी दे दी।

    जानिए क्या है पूरा मामला

    दरअसल, गुजरात के अहमदाबाद के रहने वाले गुस्ताद बोरजोरजी ने 22 फरवरी 2014 को आखिरी सांस ली। अपने अंतिम समय में उन्होंने अपनी वसीयत को उन्होंने उनका देखभाल करने वाली महिला की पोती के नाम कर दिया। अब इस वसीयत को कोर्ट की हरी झंडी मिल गई है।

    जानकारी के अनुसार, पेशे से इंजीनियर गुस्ताद बोरजोरजी टाटा इंडस्ट्रीज में काम करते थे। उनका कोई कानूनी उत्तराधिकारी नहीं था। उनकी पत्नी का निधन साल 2001 में हो गया था। इसके बाद शाहीबाग स्थित 159 वर्ग गज का फ्लैट अमीषा मकवाना के नाम कर दिया। अमीषा मकवाना उस समय 13 साल की थी; और वह गुस्ताद बोरजोरजी के यहां काम करने वाली महिला की पोती है।

    पिता के जैसे रखा ख्याल 

    टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार, मकवाना की दादी इंजीनियर की देखभाल के लिए अपनी सेवाएं दीं। खाना बनाने से लेकर साफ सफाई तक की सेवाएं भी प्रदान कीं।

    मकवाना भी अपनी दादी के साथ इंजीनियर के घर पर रहती थी और उनका हाथ बटाती थी। इस दौरान इंजीनियर का एक गहरा रिश्ता उस 13 साल की बच्ची के साथ बन गया। खून का रिश्ता नहीं था, लेकिन अपनापन वाला रिश्ता बरकरार रहा और उन्होंने बच्ची की पढ़ाई समेत अन्य खर्चों का निर्वहन किया। अपने अंतिम दिनों में इंजीनियर ने वसीयत को अमीषा मकवाना के नाम कर दिया।

    नाबालिग होने के कारण मामला पहुंचा कोर्ट

    चूंकि जिस दौरान वसीयत को अमीषा के नाम किया गया वह नाबालिग थी। इसके बाद साल 2023 में मकवाना ने वसीयत की प्रोबेट के लिए वकील आदिल सैयद के माध्यम से शहर की सिविल अदालत का दरवाजा खटखटाया और साक्ष्य प्रस्तुत किए कि वह इंजीनियर के साथ रहती थी तथा उनकी मृत्यु तक उनकी देखभाल करती थी। उनकी बेटी के तौर पर उनका ध्यान रखा। सब कुछ देखने के बाद कोर्ट ने संपत्ति को आवेदक को दे दिया।

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