फिर से बिजली संशोधन विधेयक को लेकर संशय, दो बार संसद में पेश हो चुका है बिल; अब कहां अटका मामला?
बिजली संशोधन विधेयक, 2003 में व्यापक संशोधन का उद्देश्य बिजली वितरण व्यवस्था में बदलाव, क्रॉस-सब्सिडी को खत्म करना और बाजार आधारित बिजली कारोबारी व्यव ...और पढ़ें

केंद्र सरकार वर्ष 2014 से अभी तक दो बार संसद में पेश कर चुकी है
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। देश के बिजली क्षेत्र में, खास तौर पर बिजली वितरण व्यवस्था में आमूल-चूल बदलाव करने, बिजली क्षेत्र में क्रास-सब्सिडी की व्यवस्था (एक खास वर्ग से ज्यादा वसूलना, कुछ अन्य वर्ग को सस्ती या फ्री बिजली देना) को खत्म करने, देश में सही मायने में पूरी तरह से एक बाजार आधारित बिजली कारोबारी व्यवस्था बनाना, बिजली शुल्क तय करने में किसी भी तरह की राजनीतिकरण को रोकने की बात करने के उद्देश्य से बिजली कानून, 2003 में व्यापक संशोधन करने वाले इस विधेयक को लेकर असमंजस बरकरार है।
केंद्र सरकार वर्ष 2014 से अभी तक दो बार संसद में पेश कर चुकी है। दो बार इस विधेयक को संसदीय समितियों को भेजा गया और तीन बार अलग से इसका ड्राफ्ट तैयार किया गया, फिर भी कभी राज्यों के विरोध की वजह से तो कभी कुछ अन्य वजहों से सरकार इस पर दो टूक कदम नहीं उठा पाई। हद तो यह है कि केंद्र सरकार ने कुछ ही हफ्तों के भीतर सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (शांति) बिल, 2025 को अंतिम रूप भी दे दिया और उसे पारित भी करा लिया लेकिन बिजली संशोधन विधेयक, 2025 पर मशविरा का दौर चलता ही जा रहा है।
अगले साल पेश होगा बिल
चालू साल में शीतकालीन सत्र समाप्त होने के बाद तो इस विधेयक को अब अगले वर्ष बिजली संशोधन विधेयक, 2026 के नाम से ही पेश किये जा सकेगा। पिछले शुक्रवार को केंद्रीय बिजली मंत्री मनोहर लाल की अध्यक्षता में हुई बिजली मंत्रालय की सलाहकार समिति की बैठक में उक्त विधेयक को लेकर विस्तार से चर्चा हुई। चर्चा को लेकर जो बातें सामने आई हैं उससे यह लगता है कि प्रस्तावित विधेयक के जिन प्रस्तावों को लेकर राज्यों का विरोध था वह अभी तक खत्म नहीं हो पाया है। राज्य सरकारों में शुरू से ही इस विधेयक को लेकर एक आपत्ति है कि यह उन्हें आम जनता और किसानों को सब्सिडी देने के अधिकार से वंचित कर देगा।
वर्ष 2014 में जब पहली बार यह विधेयक तत्कालीन बिजली मंत्री पीयूष गोयल ने पेश किया था तब 12 राज्य सरकारों ने इसी आधार पर इसका विरोध किया था। तब विरोध करने वाले अधिकांश राज्य गैर-भाजपाई थे। इनमें से कई राज्यों में अब भाजपा की सरकारें हैं लेकिन राज्यों का विरोध बहुत कम नहीं हुआ है। इस विरोध के पीछे राजनीति भी है। केंद्र सरकार के स्तर पर बार-बार यह सफाई दी गई है कि राज्यों की तरफ से बिजली सब्सिडी देने के अधिकार पर कोई रोक नहीं लगाई जा रही। पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा आदि में श्रम संगठन इसे शुरू से ही 'निजीकरण की रोडमैप' बता रही हैं। केरल, पंजाब व पश्चिम बंगाल इसे संघीय ढांचे के खिलाफ भी बताती हैं।
उपभोक्ताओं के लिए लागत में कोई वृद्धि नहीं होगी
शुक्रवार (18 दिसंबर, 2025) की बैठक में, 'बिजली मंत्री ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकारें घरेलू और कृषि उपभोक्ताओं जैसे प्राथमिकता प्राप्त उपभोक्ता समूहों को सब्सिडी प्रदान करना जारी रख सकती हैं और ऐसे उपभोक्ताओं के लिए लागत में कोई वृद्धि नहीं होगी। इससे यह सुनिश्चित होता है कि वित्तीय अनुशासन और उपभोक्ता कल्याण साथ-साथ चलें।' केंद्र सरकार की तरफ से जारी सूचना के मुताबिक, 'उन्होंने स्पष्ट किया कि निजीकरण, लागत में वृद्धि या कर्मचारियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंकाओं का कोई आधार नहीं है। उपभोक्ताओं या कर्मचारियों के किसी भी वर्ग पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े, यह सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त नियामकीय और नीतिगत उपाय किए जाएंगे।'
बिजली मंत्री मनोहर लाल की तरफ से इस बैठक को बिजली संशोधन विधेयक पर राज्यों की सहमति हासिल करने की अंतिम कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। लेकिन इस आश्वासन का कम से कम पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, केरल जैसे गैर भाजपाई सरकारों पर कोई फर्क पड़ने की संभावना नहीं है। अप्रैल-मई, 2026 में पश्चिम बंगाल, केरल, असम और तमिलनाडु में चुनावों को देखते हुए अब अगले वर्ष मानसून सत्र में ही इसे पेश किये जाने की संभावना है।

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