Move to Jagran APP

जंगल में जाएंगे, बर्फ में जाएंगे, हेलिकॉप्टर से जाएंगे, हाथी-घोड़े से जाएंगे; 'अंतिम मतदाता' तक पहुंचने के लिए चुनाव आयोग ने कसी कमर

चुनाव आयोग की इस पूरी कवायद के पीछे यही सोच है कि एक भी वोटर अपने मताधिकार से वंचित न रह जाए। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के अनुसार मतदान दल को ईवीएम लेकर सबसे दूर कठिन और दुर्गम इलाकों से गुजरना पड़ता है। इसके पीछे मकसद यही है कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी मतदाता न छूटे।

By Jagran News Edited By: Siddharth Chaurasiya Published: Thu, 28 Mar 2024 06:00 AM (IST)Updated: Thu, 28 Mar 2024 06:00 AM (IST)
लोकसभा चुनावों में मतदान प्रक्रिया को संपन्न कराने के लिए चुनाव आयोग अपनी तैयारियों में जुटा हुआ है।

पीटीआई, नई दिल्ली। लोकसभा चुनावों में मतदान प्रक्रिया को संपन्न कराने के लिए चुनाव आयोग अपनी तैयारियों में जुटा हुआ है। गिर के जंगलों से लेकर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों और जंगलों के बीच स्थित गांवों में मतदान कराने के लिए चुनाव आयोग और मतदान कर्मियों को काफी मशक्कत का सामना करना पड़ता है। इसके लिए चुनाव आयोग की टीमें जंगलों और बर्फ से ढके पहाड़ों को पार करते हुए, लाइफ जैकेट पहनकर नदियों को पार करते हुए, मीलों तक ट्रैकिंग करते हुए और घोड़ों और हाथियों पर ईवीएम लेकर सुदूर कोने और सबसे दुर्गम स्थान पर पहुंचती हैं।

loksabha election banner

चुनाव आयोग की इस पूरी कवायद के पीछे यही सोच है कि एक भी वोटर अपने मताधिकार से वंचित न रह जाए। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के अनुसार, मतदान दल को ईवीएम लेकर सबसे दूर, कठिन और दुर्गम इलाकों से गुजरना पड़ता है। इसके पीछे मकसद यही है कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी मतदाता न छूटे। इसी महीने उन्होंने चुनावों का एलान करते हुए कहा, "हम अतिरिक्त मील चलेंगे ताकि मतदाताओं को ज्यादा न चलना पड़े। हम बर्फीले पहाड़ों और जंगलों में जाएंगे। हम घोड़ों और हेलीकाप्टरों और पुलों पर जाएंगे और यहां तक कि हाथियों और खच्चरों पर भी सवारी करेंगे, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि हर वोटर अपना वोट डाल सके।"

यह भी पढ़ें: Chunavi किस्‍से: पहले चुनाव में मतदान के बाद क्‍यों लौटी थीं फूलों से सजी-सिंदूर से सनी पेटियां? चुनाव आयोग ने बताई वजह

मणिपुर में 94 विशेष मतदान केंद्र

लोकसभा चुनावों में मणिपुर के आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों के लिए राहत शिविरों में मतदान करने के लिए कुल 94 विशेष मतदान केंद्र स्थापित किए जाएंगे। पिछले साल मई से मणिपुर में मैतेयी और आदिवासी कुकी समुदायों के बीच जातीय संघर्ष में 200 से अधिक लोगों की जान चली गई है। 50 हजार से ज्यादा विस्थापित लोग इन बूथों पर मतदान करने के पात्र होंगे जो राहत शिविरों में या उसके निकट स्थापित किए जाएंगे।

ताशीगंग में सबसे ऊंचा मतदान केंद्र

चुनाव आयोग के रिकार्ड के अनुसार, हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति में ताशीगंग में दुनिया का सबसे ऊंचा मतदान केंद्र है। इस मतदान केंद्र की ऊंचाई समुद्र तल से 15,256 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। चुनाव आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, गांव के सभी 52 मतदाता कड़ाके की ठंड के बावजूद 12 नवंबर, 2022 को अपने वोट का प्रयोग करने आए। हिमाचल प्रदेश में 65 मतदान केंद्र 10,000 से 12,000 फीट की ऊंचाई पर थे और 20 मतदान केंद्र समुद्र के लेवल से 12,000 फीट की ऊंचाई पर थे।

नाव ही एकमात्र साधन

मेघालय के पश्चिमी जैंतिया हिल्स जिले के कामसिंग गांव में नदी के किनारे बने मतदान केंद्र पर मतदान कर्मियों को लाइफ जैकेट पहननी पड़ी और गोताखोरों के साथ जाना पड़ा। सुपारी की खेती और सौर ऊर्जा पर निर्भर रहने वाले इस गांव में मेघालय का सबसे दूरस्थ मतदान केंद्र है जहां गाड़ी से नहीं पहुंचा जा सकता है। यह जोवाई में जिला मुख्यालय से 69 किमी दूर और तहसील कार्यालय अमलारेम से 44 किमी दूर स्थित है।

चुनाव आयोग के अनुसार, इस गांव तक केवल छोटी देशी नावों द्वारा ही पहुंचा जा सकता है। वहीं भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित एक गांव तक पहुंचने में एक घंटे का लंबा सफर तय करना पड़ता है। गांव में रहने वाले 23 परिवारों के 35 मतदाताओं, 20 पुरुष और 15 महिलाओं के लिए गांव में एक मतदान केंद्र स्थापित किया गया था। मतदान कर्मियों को लाइफ जैकेट पहननी पड़ी और उनके साथ कुछ गोताखोर भी थे।

यह भी पढ़ें: Chunavi Kisse: जब एक सीट पर एक ही नाम के 11 उम्‍मीदवारों ने लड़ा चुनाव, चौंक गए थे मतदाता; कुछ ऐसा आया था परिणाम

एक वोटर के लिए मतदान के इंतजाम

चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित चुनावों पर पुस्तक ''लीप ऑफ फेथ'' के अनुसार, 2007 से गिर के जंगलों में स्थित बानेज में सिर्फ एक मतदाता महंत हरिदासजी उदासीन के लिए एक विशेष मतदान केंद्र स्थापित किया गया है। वह इलाके में स्थित एक शिव मंदिर में पुजारी हैं। मंदिर के पास वन कार्यालय में एक बूथ बनाया गया है। बूथ स्थापित करने और अकेले मतदाता को अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए आवश्यक व्यवस्था हेतु एक समर्पित मतदान दल नियुक्त किया जाता है।

बाणेश्वर महादेव मंदिर गिर जंगल के अंदर स्थित है। गिर का जंगल एशियाई शेरों का अंतिम जीवित प्राकृतिक आवास है। जंगली जानवरों के डर से राजनीतिक दल इस क्षेत्र में प्रचार नहीं करते हैं। 10 लोगों वाली मतदान टीम ने एक मतदाता के लिए बूथ स्थापित करने के लिए 25 किलोमीटर की यात्रा की। चुनाव आयोग की किताब के मुताबिक, हरिदास उदासीन महंत भरतदास दर्शनदास के उत्तराधिकारी हैं, जो नवंबर, 2019 में निधन से पहले लगभग दो दशकों तक मतदान केंद्र में एकमात्र मतदाता थे।

चार दिनों में 300 मील की यात्रा

अरुणाचल प्रदेश के मालोगम में अकेले मतदाता वाले गांव में पहुंचने के लिए चुनाव कर्मियों ने 2019 में घुमावदार पहाड़ी सड़कों और नदी घाटियों के माध्यम से चार दिनों में 300 मील की यात्रा की। मालोगम अरुणाचल प्रदेश में जंगली पहाड़ों में एक सुदूर गांव है जो चीन की सीमा के करीब है। इसी तरह गिर सोमनाथ जिले के तलाला क्षेत्र में 14वीं और 17वीं शताब्दी के बीच भारत आए पूर्वी अफ्रीकियों के वंशज सिद्दियों के लिए भी मतदान केंद्र बनाए गए हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इस इलाके में ऐसे 3,500 से अधिक मतदाता हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.