कोलकाता से विदेशों में दुर्गा मूर्तियों की रिकॉर्ड तोड़ निर्यात, 300 से ज्यादा दुर्गा प्रतिमाएं भेजी गईं विदेश
कोलकाता के कुम्हारटोली से इस साल दुर्गा की 300 से अधिक मूर्तियाँ विदेश भेजी गईं जो 2024 के 240 के रिकॉर्ड को पार कर गईं। रूस से आर्डर न आने के बावजूद अमेरिका ऑस्ट्रेलिया ब्रिटेन जापान संयुक्त अरब अमीरात जर्मनी और इटली से आर्डर मिले। ज्यादातर मूर्तियां फाइबरग्लास से बनी हैं जो टिकाऊ हैं। मूर्तिकारों के अनुसार इस बार पारंपरिक मूर्तियों की मांग अधिक है।

राज्य ब्यूरो, जागरण, कोलकाता। महानगर के कुम्हारों के एक संघ के अनुसार, उत्तर कोलकाता स्थित प्रसिद्ध मिट्टी के शिल्पकारों की कालोनी कुम्हारटोली से इस साल देवी दुर्गा की 300 से अधिक मूर्तियां विदेश भेजी गईं। यह संख्या 2024 के 240 के रिकार्ड को पार कर गई।
पिछले साल रूस से मूर्ति का कोई आर्डर नहीं आया था, शायद भू-राजनीतिक स्थिति के कारण, लेकिन कुम्हारटोली को 2025 में रूस से, साथ ही अमेरिका, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, जापान, संयुक्त अरब अमीरात, जर्मनी, इटली और सिंगापुर जैसे देशों से भी मूर्तियों के आर्डर मिले थे। विदेश भेजने के परिवहन के लिए तैयार की जाने वाली ज्यादातर मूर्तियां फाइबरग्लास से बनी होती हैं, क्योंकि वे ज्यादा टिकाऊ होती हैं और उन्हें भेजना आसान होता है।
इस साल 300 से ज्यादा मूर्तियां विदेश भेजी गईं
कुम्हारटोली मृतशिल्पी समिति के एक प्रवक्ता ने कहा कि इस साल विदेश भेजी गई मूर्तियों की संख्या पहले ही 300 के आंकड़े को पार कर चुकी है। पिछले साल यह संख्या लगभग 240 थी। महामारी के दौरान गिरावट के बाद, हाल के वर्षों में कुम्हारटोली से विदेशों में भेजी जाने वाली दुर्गा मूर्तियों की संख्या में वृद्धि हुई है।
प्रवक्ता ने बताया कि इससे पहले, दुर्गा पूजा के लिए लगभग 100 मूर्तियां विदेश भेजी जाती थीं। विदेशों में, आयोजक आमतौर पर कुछ वर्षों तक एक ही मूर्ति का उपयोग करके त्योहार मनाते हैं। पांच दिवसीय दुर्गा पूजा उत्सव इस वर्ष 28 सितंबर से शुरू होगा। एक शिल्पकार कौशिक घोष ने कहा कि उन्होंने 37 फाइबरग्लास मूर्तियां बनाई हैं और उन्हें रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर, संयुक्त अरब अमीरात, आस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों में भेजा है।
इस वर्ष रूस भी भेजी गई है प्रतिमा
घोष ने कहा कि पिछले साल, यूक्रेन के साथ युद्ध के कारण रूस में दुर्गा पूजा समिति मूर्ति का आर्डर नहीं दे सकी थी। इस साल, उन्होंने पूजा का आयोजन करने का फैसला किया, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। उन्होंने बताया कि शिपमेंट जनवरी से शुरू हुआ और मार्च-अप्रैल में इसमें तेजी आई, और आखिरी मूर्ति जून की शुरुआत में भेजी गई। उन्होंने आगे बताया कि इस बार सभी आयोजकों ने मूर्ति का 'सवेकी' (पारंपरिक) रूप चुना है।
उन्होंने बताया कि कम से कम छह मूर्तियां अकेले अमेरिका में फ्लोरिडा, कैलिफोर्निया, लास एंजिल्स, वाशिंगटन में भेजी गई हैं। एक अन्य प्रमुख मूर्तिकार, मिंटू पाल, जिन्होंने अमेरिका और ब्रिटेन के अलावा कनाडा, जर्मनी, फ्रांस, पोलैंड, इटली में लगभग 25 मूर्तियां भेजी हैं, ने कहा कि पारंपरिक मूर्तियों की मांग ज्यादा है।
ब्रिटेन और अमेरिका में भेजी मूर्तियां
पाल ने कहा कि पिछले साल कोलकाता में सामुदायिक दुर्गा पूजा की तर्ज पर एक खास थीम को पेश करने के कुछ प्रयोगों के विपरीत, इस साल पारंपरिक रूप का चलन है। हर साल, बंगाल में कई पूजा आयोजक एक थीम चुनते हैं, मुख्यतः सामाजिक मुद्दे और समसामयिक घटनाएँ, और उसे दर्शाने के लिए अपने शामियाने, मूर्तियों और प्रकाश व्यवस्था का उपयोग करते हैं। मूर्तिकार बिकाश पाल ने कहा कि उन्होंने जहाज के जरिए ब्रिटेन और अमेरिका के विभिन्न हिस्सों में 10 मूर्तियां भेजी हैं।
मूर्तियों की कीमत के बारे में पूछे जाने पर, मूर्तिकारों ने बताया कि इसकी शुरुआत डेढ़ लाख रुपये से होती है और इसकी ऊंचाई 6-8 फीट है। इसमें पैकेजिंग और यात्रा का खर्च शामिल नहीं है।
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