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    कौन थे मशहूर वैज्ञानिक डॉ. श्रीनिवासन? होमी भाभा के साथ परमाणु प्रोग्राम की संभाली कमान, 95 साल की उम्र में निधन

    M R Srinivasan Passes Away भारत के परमाणु कार्यक्रमों को दिशा देने वाले वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एम.आर. श्रीनिवासन का 95 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने डॉ. होमी जहांगीर भाभा के साथ काम किया और भारत के पहले परमाणु अनुसंधान रिएक्टर ‘अप्सरा’ (Indian Nuclear Program) के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

    By Jagran News Edited By: Sakshi Pandey Updated: Tue, 20 May 2025 12:29 PM (IST)
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    वरिष्ठ वैज्ञानिक डा.एम.आर.श्रीनिवासन का 95 वर्ष की उम्र में निधन। फाइल फोटो

    जेएनएन, मुंबई। भारत के परमाणु कार्यक्रमों को दिशा प्रदान करने वाले वरिष्ठ वैज्ञानिक डा.एम.आर.श्रीनिवासन का मंगलवार को 95 वर्ष की उम्र में ऊटी में निधन (M R Srinivasan Passes Away) हो गया। उन्हें भारत के परमाणु कार्यक्रमों के जनक कहे जाने वाले महान वैज्ञानिक डा.होमी जहांगीर भाभा के साथ काम करने का अवसर मिला था। डॉ. भाभा के साथ डा. श्रीनिवासन ने भारत के पहले परमाणु अनुसंधान रिएक्टर ‘अप्सरा’ के निर्माण (Indian nuclear program) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसने अगस्त 1956 में पूर्णता प्राप्त कर ली थी।

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    होमी भाभा की योजनाओं को किया साकार

    1955 में जब डा. एम.आर श्रीनिवासन मुंबई स्थित भारतीय परमाणु प्रतिष्ठान में शामिल हुए, तब उनकी उम्र सिर्फ 25 वर्ष थी। उसी दौरान उन्हें भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक महान होमी जहांगीर भाभा (Homi Bhabha collaboration) के साथ काम करने का मौका मिला और वह भाभा की टीम का हिस्सा बने। जब 24 जनवरी 1966 को डा. भाभा का आल्प्स पर्वत श्रृंखला के बीच एक विमान दुर्घटना में निधन हो गया, उससे पहले उन्होंने आने वाले दशकों में क्या करना है, इसकी योजना बना ली थी। डा. श्रीनिवासन भाभा की इस योजना को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण कड़ी साबित हुए।

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    परमाणु कार्यक्रम की कमान संभाली

    होमी भाभा के समकक्ष रहे विक्रम साराभाई द्वारा भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र की कमान संभालने के बाद श्रीनिवासन ने डा.होमी सेठना के साथ मिलकर परमाणु कार्यक्रमों की कमान संभाली। डा. श्रीनिवासन परमाणु ऊर्जा आयोग (एईसी) के अध्यक्ष और परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) के सचिव भी रहे। वह भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (एनपीसीआईएल) के संस्थापक अध्यक्ष थे।

    डॉ. श्रीनिवासन का शुरुआती जीवन

    बेंगलुरु में जन्मे डा. मलूर रामासामी श्रीनिवासन (5 जनवरी 1930 - 20 मई 2025) का मंगलवार को ऊटी में 95 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे अपने पीछे एक समृद्ध विरासत छोड़ गए। उन्होंने मैसूर के इंटरमीडिएट कॉलेज से विज्ञान में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की, जहां उन्होंने अध्ययन के लिए संस्कृत और अंग्रेजी को अपनी भाषा के रूप में चुना।

    गैस टरबाइन प्रौद्योगिकी में विशेषज्ञता

    भौतिकी उनका पहला प्यार होने के बावजूद, उन्होंने एम. विश्वेश्वरैया द्वारा हाल ही में शुरू किए गए इंजीनियरिंग कालेज (वर्तमान में यूवीसीई) में प्रवेश लिया, जहां उन्होंने 1950 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने 1952 में अपनी मास्टर डिग्री पूरी की और 1954 में मैकगिल यूनिवर्सिटी, मॉन्ट्रियल, कनाडा से डाक्टर आफ फिलासफी की डिग्री प्राप्त की। उनकी विशेषज्ञता का क्षेत्र गैस टरबाइन प्रौद्योगिकी था।

    परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष बने

    डा. श्रीनिवासन 1955 में परमाणु ऊर्जा विभाग में शामिल हुए। अगस्त 1959 में उन्हें भारत के पहले परमाणु ऊर्जा स्टेशन के निर्माण के लिए प्रधान परियोजना इंजीनियर नियुक्त किया गया। डॉ. श्रीनिवासन ने राष्ट्रीय महत्व के कई प्रमुख पदों पर कार्य किया। 1987 में उन्हें परमाणु ऊर्जा आयोग का अध्यक्ष और परमाणु ऊर्जा विभाग का सचिव नियुक्त किया गया। उसी वर्ष, वे एनपीसीआईएल के संस्थापक-अध्यक्ष बने। उनके नेतृत्व में 18 परमाणु ऊर्जा इकाइयाँ विकसित की गईं।

    पद्म पुरस्कार से सम्मानित

    भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें पद्म श्री (1984), पद्म भूषण (1990) और पद्म विभूषण (2015) से सम्मानित किया गया। वह 1996 से 1998 तक भारत सरकार के योजना आयोग के सदस्य रहे, जहाँ उन्होंने ऊर्जा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विभागों का कार्यभार संभाला। वे 2002 से 2004 तक और फिर 2006 से 2008 तक भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य भी रहे।

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