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अगर आपका शरीर संक्रमित हो जाए, तब भी मन को रखें स्वस्थ : आचार्य प्रशांत

आचार्य प्रशांत वर्तमान कोरोना संकट के बारे में कहते हैं कि यह संकट हमारी भोगवादिता का नतीजा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 23 May 2020 02:55 PM (IST)Updated: Sat, 23 May 2020 03:38 PM (IST)
अगर आपका शरीर संक्रमित हो जाए, तब भी मन को रखें स्वस्थ : आचार्य प्रशांत
अगर आपका शरीर संक्रमित हो जाए, तब भी मन को रखें स्वस्थ : आचार्य प्रशांत

स्मिता। कोरोना संकट के समय अशांति और तनाव से भरे लोगों के मन पर जिन आध्यात्मिक विचारकों का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है, उनमें से एक हैं आचार्य प्रशांत। लाइफ एजुकेशन सिखाने वाले आचार्य प्रशांत न केवल एक आध्यात्मिक विचारक हैं, बल्कि उनकी पहचान पशु अधिकार कार्यकर्ता के रूप में भी की जाती है। वे अब तक दर्शन व अध्यात्म पर 25 से अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं।

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इनमें से कुछ प्रमुख हैं-माइलस्टोन टू सक्सेस, फियर, द नेकेड स्काई ऑफ फ्रीडम, गगन दमदमा बाजिया, आध्यात्मिक भ्रांतियां, भागे भला न होएगा आदि। “अद्वैत इन एवरीडे लाइफ” इनकी सबसे लोकप्रिय पुस्तकों में से एक है। आचार्य प्रशांत वर्तमान कोरोना संकट के बारे में कहते हैं कि यह संकट हमारी भोगवादिता का नतीजा है। ऐसी अंधी भोगवादिता, जो हमसे कहती है कि हम शरीर मात्र हैं और जीवन का उद्देश्य है खाना-पीना, मौज करना, सुख मनाना, भोग करना। मूल रूप से तो भोगवादिता के त्याग से ही इस संकट का मुकाबला किया जा सकता है। अब जब बहुत देर हो चुकी है, तो हमें इस आपदा से भी कुछ-न-कुछ सीखना होगा। एक बातचीत :

इस समय पॉजिटिव कैसे रहा जाए?

इस समय घर में अकेले रहने का जो दौर है, उसका सदुपयोग करें। आप क्वारंटीन भी हो जाएं, फिर भी उस समय का सदुपयोग करें। सुंदरतम साहित्य पढ़ें, अपने ढर्रों से मुक्त होने का संकल्प करें। अगर आपका शरीर संक्रमित हो जाए, तो भी मन को संक्रमित न होने दें।

निराशा से भरे मन को किस तरह ध्यान-अध्यात्म की तरफ मोड़ा जा सकता है?

मन द्वैत में जीता है। आशा और निराशा दोनों ही द्वैत के सिरे हैं। अगर मन निराश है, तो उसे अपनी इसी अवस्था का ईमानदारी से अवलोकन करना होगा। उसे स्वयं से यह पूछना होगा कि क्या यह निराशा होती, अगर उसने पहले अंधी आशाएं नहीं पाली होतीं? उसे निराशा से उठ रही पीड़ा से भागने से नहीं, बल्कि उसमें गहरा डूबने से शांति मिलेगी।

अभी दिन भर में कितनी देर तक मेडिटेशन किया जाए?

मेडिटेशन, यानी ध्यान सतत होना चाहिए। अगर ध्यान समय या स्थान से सीमित कर दिया गया, तो समय खत्म होते ही और स्थान बदलते ही, वह टूट भी जाएगा। ध्यान को सांस की तरह होना होगा। लगातार, बिना किसी अवरोध के। जब मन लगातार, अपने ध्येय पर केंद्रित होता है, सिर्फ उसी अवस्था को ध्यान कहते हैं।

वर्तमान समय में पौराणिक कथाओं के माध्यम से किस तरह तनाव का प्रबंधन किया जाए?

तनाव दो तरफा खिंचाव का परिणाम होता है। मन को एक तरफ माया खींचती है और दूसरी ओर सत्य। तनाव से मुक्ति का एक ही उपाय है - मन को जहां शांति मिलेगी, उसे उसी ओर जाने दिया जाए। मन तनावमुक्त केवल सत्य को समर्पित होकर ही हो सकता है। सभी पुराणों एवं पौराणिक कथाओं का आधार है- वेदांत। मन को उपनिषदों और अन्य ग्रंथों की ओर अग्रसर होना चाहिए, वहीं उसे हर विकार से मुक्ति मिलेगी।

धर्म और विज्ञान किस तरह एक-दूसरे से संबंधित हैं?

विज्ञान पूरे तरीके से धार्मिक है, क्योंकि धर्म है सत्य को जानना और विज्ञान भी सत्य को ही जानना चाहता है। विज्ञान एक छोटी-सी चूक कर देता है, जिस कारण उसे अध्यात्म से एक कदम पहले ही रुक जाना पड़ता है। विज्ञान सत्य को बाहरी वस्तुओं में ढूंढता है। वह सत्य को ढूंढने वाले वैज्ञानिक के मन को, उसकी चेतना को, शोध के दायरे से बाहर रखता है। इस भेद को हटा दें, तो धर्म और विज्ञान का आपस में गहरा संबंध है।

किस तरह झूठ की दीवार गिराकर जीवन को अध्यात्म की तरफ मोड़ा जा सकता है?

झूठ को साफ-साफ 'झूठ' जान लेना ही अध्यात्म की ओर पहला कदम है। जब हम अपने जीवन के झूठों को साफ-साफ देखकर, उनमें समय और ऊर्जा का निवेश रोक देते हैं, तब जीवन में सत्य का उदय होने लगता है।

(आचार्य प्रशांत सोशल मीडिया पर भी विख्यात हैंl ट्विटर पर उनके फॉलोअर्स की संख्या लगभग 90 हजार है l वहीं इंस्टाग्राम पर 1.5 लाख से अधिक फॉलोअर्स हैं और फेसबुक पर उन्हें 13 लाख से अधिक लोग फॉलो करते हैं। साथ ही उनके हिंदी और अंग्रेजी दोनों यूट्यूब चैनल मिलाकर 9 लाख से ज्यादा फॉलोअर्स हैंl )


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