राफेल के 'तूफान' में उड़ सकता है पूरा पाक और आधा चीन, जानें कैसे...
भारत और फ्रांस ने द्विपक्षीय संबंधों को नया आयाम देते हुए फ्रांस की कंपनी राफेल से 36 जेट विमान खरीदने का फैसला किया है। जानिए क्या है राफेल का इतिहास और क्या है इसकी खासियत जिस कारण भारत ने इसको खरीदने का फैसला किया?
नई दिल्ली। भारत ने फ्रांस के साथ द्विपक्षीय संबंधों को नया आयाम देते हुए फ्रांस की कंपनी राफेल से 36 जेट विमान खरीदने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस यात्रा के दौरान 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद पक्की कर दी है।
फ्रांस में राफेल का मतलब तूफान होता है। अगर राफेल की खासियतों पर नजर डालें तो भारतीय वायु सेना में इसको शामिल किए जाने के बाद पाकिस्तान और भारत इसके जद में आ जाएंगे और इसके तूफान में पाकिस्तान और चीन उड़ जाएंगे। रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने राफेल डील को अच्छा सौदा बताते हुए कहा कि ये सौदा बेहतर शर्तों पर किया गया एक बेहतरीन सौदा है और आने वाले दो वर्षों के भीतर राफेल लड़ाकू विमान शामिल कर लिए जाएंगे।
क्या है राफेल विमान की खासियत?
यह एक बहुउपयोगी लड़ाकू विमान है। दासौल्ट कंपनी अक्टूबर 2014 तक 133 विमानों का निर्माण कर चुकी है। इस प्रोजेक्ट की लागत 62.7 बिलियन है। एक विमान की लागत 70 मिलियन आती है। इसकी लंबाई 15.27 मीटर है और इसमें एक या दो पायलट बैठ सकते हैं।
जानकार बताते हैं कि राफेल ऊंचे इलाकों में लड़ने में माहिर है। राफेल एक मिनट में 60 हजार फुट की ऊंचाई तक जा सकता है। हालांकि अधिकतम भार उठाकर इसके उड़ने की क्षमता 24500 किलोग्राम है। विमान में ईंधन क्षमता 4700 किलोग्राम है। राफेल की अधिकतम रफ्तार 2200 से 2500 तक किमी प्रतिघंटा है और इसकी रेंज 3700 किलोमीटर है। इसमें 1.30 mm की एक गन लगी होती है जो एक बार में 125 राउंड गोलियां निकाल सकती है।
इसके अलावा इसमें घातक एमबीडीए एमआइसीए, एमबीडीए मेटेओर, एमबीडीए अपाचे, स्टोर्म शैडो एससीएएलपी मिसाइलें लगी रहती हैं। इसमें थाले आरबीई-2 रडार और थाले स्पेक्ट्रा वारफेयर सिस्टम लगा होता है। साथ ही इसमें ऑप्ट्रॉनिक सेक्योर फ्रंटल इंफ्रा-रेड सर्च और ट्रैक सिस्टम भी लगा है।
भारत ने 2012 में भी किया था राफेल डील
पीएम मोदी की इस यात्रा पर पूरे अंतर्राष्ट्रीय जगत की नजरें हैं। इसकी वजह है लड़ाकू विमान राफेल, जिसे लेकर भारत और फ्रांस अब तक आखिरी समझौते तक नहीं पहुंच सके थे। भारत ने 2012 में फ्रांस से 126 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने का फैसला किया था, लेकिन यह सौदा अब तक लटका हुआ है। अब मोदी सरकार ने 36 विमान खरीदने का फैसला किया है।
अमेरिका, जर्मनी और रूस चाहते हैं कि भारत उनसे लड़ाकू विमान खरीदे। अमेरिका भारत को एफ-16 और एफ-18, रूस मिग-35, जर्मनी और ब्रिटेन यूरोफाइटर टायफून और स्वीडन ग्रिपन विमान बेचना चाह रहे थे, लेकिन मोदी सरकार ने फिलहाल राफेल को खरीदने का फैसला किया है।
राफेल विमान का इतिहास
राफेल विमान फ्रांस की दासौल्ट कंपनी द्वारा बनाया गया 2 इंजन वाला लड़ाकू विमान है। 1970 में फ्रांसीसी सेना ने अपने पुराने पड़ चुके लड़ाकू विमानों को बदलने की मांग की। जिसके बाद फ्रांस ने 4 यूरोपीय देशों के साथ मिलकर एक बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान की परियोजना पर काम शुरू किया। बाद में साथी देशों से मतभेद होने के बाद फ्रांस ने इस पर अकेले ही काम शुरू कर दिया।
हालांकि इस पर काम 1986 में ही शुरू हो गया था, लेकिन शीत युद्ध की समाप्ति के बाद बदले समीकरणों में बजट की कमी और नीतियों में अड़ंगों के चलते ये परियोजना लेट हो गई। 1996 में पहला विमान फ्रांसीसी वायुसेना में शामिल होना था लेकिन ये 2001 में शामिल किया जा सका। यह लड़ाकू विमान तीन संस्करणों में उपलब्ध है। इसमें राफेल सी सिंगल सीट वाला विमान है जबकि राफेल बी दो सीट वाला विमान है। वहीं राफेल एम सिंगल सीट कैरियर बेस्ड संस्करण है।
राफेल को फ्रांसीसी वायुसेना और जलसेना में 2001 में शामिल किया गया। बाद में बिक्री के लिए इसका कई देशों में प्रचार भी किया गया, लेकिन खरीदने की हामी सिर्फ भारत और मिश्र ने भरी। राफेल को अफगानिस्तान, लीबिया, माली और इराक में इस्तेमाल किया जा चुका है। इसमें कई अपग्रेडेशन कर 2018 तक इसमें बड़े बदलाव की भी बात कही जा रही है।
भारत ने राफेल को क्यों चुना?
वित्तीय कारणों से भारतीय वायु ने लंबे टेस्ट के बाद राफेल को चुना। वायु सेना के पास एफ-16 और एफ-18, रूस मिग-35, यूरोफाइटर टायफून और ग्रिपन विमान का विकल्प था, लेकिन यूरोफाइटर टायफून सबसे महंगा है और मिग के बारे में अब संदेह होने लगा है। इस कारण भी राफेल को खरीदने का फैसला किया गया है।
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जानकार बताते हैं कि राफेल ऊंचे इलाकों में लड़ने में माहिर है और भारत तथा चीन के बीच हिमालय का ऊंचा इलाका है, जहां राफेल मददगार साबित होगा। हालांकि यूरोफाइटर टायफून इस मामले में राफेल से आगे है। वायुसेना के मुताबिक उड़ान भरते वक्त राफेल की रफ्तार 1912 किलोमीटर प्रति घंटा है और ये 3700 किलोमीटर तक जा सकता है। जबकि यह हवा से जमीन में मार करने में टायफून से ज्यादा कारगर माना जा रहा है।
राफेल खरीदने का एक और कारण यह भी है कि भारतीय वायुसेना राफेल बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी दासौल्ट का मिराज 2000 विमान पहले से इस्तेमाल कर रही है। कारगिल युद्ध में मिराज विमानों ने सफलतापूर्वक कार्य को अंजाम दिया था।
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