भारत की वजह से ही अलग-अलग नामों से पुकारे जाते हैं विनाशकारी चक्रवात
हर वर्ष भारत समेत कई देशों को चक्रवातों का सामना करना पड़ता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन चक्रवातों के अजीबो-गरीब नामों के पीछे भारत जुड़ा हुआ है।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। भारत समेत पूरे विश्व में हर साल चक्रवातों का आना-जाना लगा रहता है। यह चक्रवात कई बार इतने विनाशकारी साबित होते हैं कि कई लोगों की मौत का कारण बन जाते हैं। इन चक्रवातों की वजह से हर साल लाखों का नुकसान होता है और कई लोग बेघर हो जाते हैं। भारत में एक बार फिर से 'मोरा' चक्रवात दस्तक देने वाला है। अगले 48 घंटों में इसका असर कई जगहों पर देखने को मिल सकता है। इन चक्रवातों का आने से रोका नहीं जा सकता है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि कभी मोरा, कभी हुद-हुद तो कभी वरदा या दूसरे चक्रवातों का नाम आखिर ऐसा क्यों होता है। इनके नामकरण के पीछे की वजह क्या होती है। यह सवाल अपने आप में बेहद दिलचस्प है क्योंकि इनके अजीबो-गरीब नामों को लेकर हर किसी के मन में कुछ चीजें जरूर आती होंगी। तो चलिए आज हम आपको इनके नामकरण के पीछे का सच समझाते हैं।
समझौते के तहत रखे जाते हैं इनके नाम
दरअसल तूफानों के नाम एक समझौते के तहत रखे जाते हैं। भारत की इसमें अहम भूमिका रही है। इनके नामकरण की इस पहल की शुरुआत अटलांटिक क्षेत्र में 1953 में एक संधि के माध्यम से हुई थी। अटलांटिक क्षेत्र में ह्यूरिकेन और चक्रवात का नाम देने की परंपरा 1953 से ही जारी है जो मियामी स्थित नैशनल हरिकेन सेंटर की पहल पर शुरू हुई थी। 1953 से अमेरिका केवल महिलाओं के नाम पर तो ऑस्ट्रेलिया केवल भ्रष्ट नेताओं के नाम पर तूफानों का नाम रखते थे। लेकिन 1979 के बाद से एक मेल व फिर एक फीमेल नाम रखा जाता है।
चक्रवातों का नाम रखने को भारत ने की थी पहल
हिन्द महासगर क्षेत्र में यह व्यवस्था साल 2004 में शुरू हुई जब भारत की पहल पर 8 तटीय देशों ने इसको लेकर समझौता किया। इन देशों में भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, मालदीव, श्रीलंका, ओमान और थाईलैंड शामिल हैं। अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार सदस्य देशों के नाम के पहले अक्षर के अनुसार उनका क्रम तय किया गया है। जैसे ही चक्रवात इन आठ देशों के किसी हिस्से में पहुंचता है, सूची में मौजूद अलग सुलभ नाम इस चक्रवात का रख दिया जाता है। इससे तूफान की न केवल आसानी से पहचान हो जाती है बल्कि बचाव अभियानों में भी इससे मदद मिलती है। किसी भी नाम को दोहराया नहीं जाता है। अब तक चक्रवात के करीब 64 नामों को सूचीबद्ध किया जा चुका है। कुछ समय पहले जब क्रम के अनुसार भारत की बारी थी तब ऐसे ही एक चक्रवात का नाम भारत की ओर से सुझाये गए नामों में से एक ‘लहर’ रखा गया था।
यह भी पढ़ें: नहीं मारा जाता तो हिजबुल का पोस्टर ब्वॉय बन जाता आतंकी सब्जार
कभी 'वरदा' तो कभी 'निलोफर' कभी आया 'हुदहुद'
पिछले वर्ष तमिलनाडु को वरदा चक्रवात का सामना करना पड़ा था। वरदा का अर्थ दरअसल लाल गुलाब होता है। लेकिन इसके नाम के अर्थ पर ज्यादा तवज्जो देने की जरूरत इसलिए नहीं है क्योंकि इनकी प्रकृति तबाही मचाने की ही होती है। जहां तक वरदा की बात है इसका नाम पाकिस्तान ने दिया था। इसकी वजह थी कि जिस वक्त यह चक्रवात आया था उस वक्त इसका नाम रखने की बारी पाकिस्तान की थी। उससे पहले ओमान ने चक्रवात का नाम एक पक्षी के नाम पर 'हुदहुद' दिया था। इससे भी पहले 'फालीन' चक्रवात का नाम थाईलैंड की ओर से सुझाया गया था। 2014 में म्यांमार ने इस इलाके में आए तूफान का नाम ‘नानुक’ तो वहीं पाकिस्तान ने नीलम, नीलोफर नाम दिया था।
जब नाम ने ही ला दिया था श्री लंका में तूफान
2013 में श्रीलंका सरकार ने एक तूफान का नाम ‘महासेन’ रख दिया था जिसको लेकर काफी विवाद भी हुआ था। इसकी वजह थी कि महासेन श्रीलंका के इतिहास में समृद्धि और शांति लाने वाले राजा के तौर पर दर्ज हैं, जिनके नाम पर एक विनाशकारी तूफान का नाम रख दिया गया था। बाद में सरकार ने यह नाम वापस ले लिया था।
ना सरकार, ना सीएम, दो नदियों की साजिश और डूब जाएगा 'माजूली'
क्या होता है ट्रॉपिकल साइक्लोन
चक्रवात में तेज हवाओं का चलना बेहद आम बात मानी जाती है। बैरो आइलैंड जो कि ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पश्चिमी तट पर स्थित एक द्वीप है तेज हवाओं के लिए मशहूर रहा है। यहां पर चलते वाली हवा की रफ्तार 408 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार तक भी रिकॉर्ड की गई है। यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है। जिस वक्त यह रिकॉर्ड किया गया था उस वक्त इसकी वजह ओलिविया नामक ट्रॉपिकल साइक्लोन रहा था। इस तरह का चक्रवात उस वक्त उठता है जब समुद्र की सतह पर वाष्प कम दबाव का क्षेत्र बनाते हैं। यह विषुवत्त रेखा या इक्वेटर की ओर सफर करती है। जब यह चक्रवात दक्षिण प्रशांत महासागर से उत्पन्न होते हैं तो इन्हें चक्रवात कहा जाता है।
टॉरनेडो और थंडरस्टार्म
वहीं सायक्लोन नाम का उपयोग मौसम विज्ञान में ज्यादा बड़े तूफान के मामले में किया जाता है। हिंदी में ये चक्रवात या बवंडर कहलाते हैं। यूं टॉरनेडो नाम स्पेनिश शब्द 'ट्रोनाडा" से बना है जिसका मतलब है 'थंडरस्ट्रॉम।" टॉरनेडो अलग-अलग साइज के हो सकते हैं। इनके आने का पता लगाने के लिए 'पल्स डॉप्लर राडार" की मदद ली जाती है और इन्हें नापने के लिए कई तरह की फ्यूजिटा या टॉरो जैसी स्केल्स का उपयोग किया जाता है। टॉरनेडो में हवा तेज़ी से ज़मीन से उठती है और थंडरस्टॉर्म का रूप लेती है. तेज़ी से घूमती हुई हवा कॉलम के रूप में होती है, जब यह पानी के संपर्क में आता है तब झरने की तरह पानी गिरना शुरू हो जाता है, जिसे वॉटरस्पाउट कहते हैं। टॉरनेडो सबसे खतरनाक और हिंसक वायुमंडलीय तूफान होता है। अमेरिका में यह सबसे अधिक आते हैं।
यह भी पढ़ें: पाकिस्तान के सालाना बजट में मकान, पानी, रोजगार से बढ़कर हैं हथियारों का खर्च
कहां से आए तूफानों के शब्द
वहीं जब यह उत्तरी प्रशांत महासागर में उत्पन्न होते हैं तो इन्हें टायफून कहते हैं और अगर यह अटलांटिक महासागर में उत्पन्न होते हैं तो ह्यूरिकेन कहते हैं। इस तूफान का नाम संत अना के नाम पर रखा गया था। वहीं सैन फेलिप ह्यूरीकेन का नाम संत फेलिप के नाम पर रखा गया। अब तक नैंसी टायफून को सबसे विनवाशकारी माना जाता है। प्रशांत महासागर से उठने वाले इस टायफून ने 170 लोगों की जान ले ली थी। टायफून नाम दरअसल अरबी भाषा के 'तूफान" शब्द से लिया गया है जिसे हिंदी और उर्दू में भी उपयोग में लाया जाता है। तूफान शब्द असल में ग्रीक मायथोलॉजी में तूफान के एक राक्षस 'टायफोन" से भी जुड़ता है। वहीं ह्यूरीकेन शब्द स्पेनिश भाषा से आया है और तूफानों के देवता 'हुराकान" को दर्शाता है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।