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    धर्मेंद्र प्रधान ने ओडिशा के भद्रक में एकता पदयात्रा में लिया भाग, गोहिराटिकिरी बना चर्चा का केंद्र

    Updated: Sat, 22 Nov 2025 07:09 PM (IST)

    धामनगर की पवित्र भूमि पर केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने 'एकता पदयात्रा' में भाग लिया। उन्होंने कहा कि गोहिराटिकिरी ओडिशा के इतिहास का महत्वपूर्ण अध्याय है। उन्होंने सरदार वल्लभभाई पटेल और हरे कृष्ण महताब को श्रद्धांजलि अर्पित की। गोहिराटिकिरी में हनुमान मंदिर में दर्शन कर 500 वर्ष पुराने वृक्ष की पूजा की और इसे रमणीय तीर्थ बनाने की बात कही।

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    धर्मेंद्र प्रधान ने भद्रक में एकता पदयात्रा में लिया भाग (फोटो सोर्स- जेएनएन)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। धामनगर की पवित्र धरती अनेक धर्मप्रचारकों, दार्शनिकों और महापुरुषों के चरणों से पावन हुई है। यह भूमि अंतिम हिंदू राजा के वीरता की गाथा को संजोए हुए है, और पीठ पीछे वार करने वाले काला पहाड़ की कायरता की कहानी भी सुनाती है।

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    यहां के मंदिरों ने भारत की कला और स्थापत्य को समृद्ध किया है। इसी धरती पर कई वैभवशाली साम्राज्य स्थापित हुए और फिर समय के कठोर प्रवाह में विलीन भी हो गए। अनेक विदेशी आक्रमणकारियों के लिए ओडिशा एक रणभूमि बनता रहा।

    क्या कहता है इतिहास?

    इसी तरह, ओडिशा क राजनीतिक आकाश कभी सभ्यता के प्रकाश से चमका तो कभी विनाश के घने अंधकार में डूब गया। उत्थान और पतन के इस कठिन मार्ग पर एक क्षेत्र का इतिहास निरंतर आगे बढ़ता रहा- जो उत्कल के वीर हिंदू राजा मुकुंददेव के साहस, शौर्य और सामर्थ्य की गौरवशाली कहानी कहता है।

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    इतिहास गवाह है कि सारंगगढ़ के तत्कालीन सेनापति रामचंद्र भंज ने राजा मुकुंददेव के विरुद्ध, विद्रोह कर स्वयं को ओडिशा का राजा घोषित कर दिया। चारों ओर संकट के काले बादलों से घिर जाने के कारण राजा मुकुंददेव के भाग्य का आकाश पूरी तरह ढंक गया। कोई अन्य मार्ग न देखकर उन्होंने सुलैमान करानी से समझौता कर लिया।

    परंतु यह समझौता उन्हें संकट से बचा न सका, बल्कि परिस्थितियाँ और अधिक गंभीर होती चली गईं। सन् 1568 ईस्वी में अंततः राजा मुकुंददेव पराजित हुए और उनका निधन हो गया। इतिहास यह भी कहता है कि उनकी हत्या उनके ही लोगों द्वारा की गई और पीठ पीछे वार कर उन्हें मार दिया गया। इससे यह स्पष्ट होता है कि उत्कल के इस वीर हिंदू राजा पर सामने से आक्रमण करने का साहस किसी में नहीं था।

    केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी पहुंचे

    आज उसी पवित्र धरती पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान उपस्थित हैं। यह वह समय है जब भाषा के आधार पर बने स्वतंत्र राज्य ओडिशा की शताब्दी वर्षगांठ मनाए जाने में अब केवल एक दशक शेष है और साथ ही देश लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती भी मना रहा है।

    भारत को एक सशक्त और एकजुट राष्ट्र बनाने वाले तथा आधुनिक भारत की नींव रखने वाले महान पुरुष सरदार पटेल के इस पुण्य अवसर पर धामनगर की इस पवित्र भूमि के विकास और समृद्धि की नई योजनाएं बनाई जा रही हैं। सरदार पटेल ने पूरे देश की 560 रियासतों के साथ-साथ ओडिशा की 26 गड़जात रियासतों का भी एकीकरण किया था। उत्कल की इन रियासतों को एक सूत्र में पिरोने का नेतृत्व उत्कलकेशरी हरे कृष्ण महताब ने किया था।

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    विशाल भारत की कल्पना करने वाले लौह पुरुष के आत्मनिर्भरता के मंत्र के साथ आज पूरा भद्रक जिला उत्साह से दौड़ उठा। सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपनी अटूट राष्ट्रभक्ति, असाधारण नेतृत्व और दृढ़ संकल्प के बल पर अनेक रियासतों को एक सूत्र में बाँधकर अखंड भारत का निर्माण किया।

    उनका यह महान कार्य हम सभी के लिए एक कालजयी प्रेरणा है। जयंती समारोह की जनसभा को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अखंड भारत के शिल्पकार सरदार पटेल के गौरवशाली इतिहास को मंच से स्मरण किया और उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। उन्होंने उसी आदर्श से प्रेरणा लेकर सभी से अपनी मातृभूमि के खोए हुए गौरव को फिर से लौटाने के लिए समर्पित प्रयास करने का आह्वान किया।

    क्यों विख्यात है गोहिराटिकिरी?

    कलिंग के अंतिम हिन्दू राजा मुकुंद देव एक षड्यंत्र के शिकार हुए थे। कपट योजना की साज़िश और काला पहाड़ के आक्रमण के चलते ओड़िया अस्मिता को गहरी पराजय झेलनी पड़ी। यहाँ मुकुंद देव ने कभी समझौता नहीं किया, बल्कि साहसपूर्वक युद्ध किया। लेकिन पीछे से काला पहाड़ ने उन पर वार कर छुरा घोंपकर उनकी हत्या कर दी।

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    आत्मनिर्भरता के संकल्प को मजबूत करने हेतु यह एकता पदयात्रा समर्पित की गई। इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री द्वारा डॉ. हरेकृष्ण महताब और सरदार पटेल को भी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। भद्रक जिले के धामनगर स्थित गोहिराटिकिरी में बने हनुमान मंदिर में दर्शन का सौभाग्य प्राप्त कर उन्होंने वहाँ स्थित 500 वर्ष पुराने विशाल वृक्ष की पूजा-अर्चना की और गहन आध्यात्मिक शांति का अनुभव किया। उन्होंने कहा कि यह गोहिराटिकिरी स्थल अत्यंत रमणीय और श्रद्धा से परिपूर्ण तीर्थ के रूप में विकसित होगा।

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