दिल्ली-गुरुग्राम के जाम से कैसे मिलेगी मुक्ति? नई व्यवस्था बनाने की सिफारिश
समिति ने लगभग दो सौ पृष्ठ की अपनी रिपोर्ट में अमृतकाल की राह में शहरों में तेजी से गंभीर होती कुत्तों की समस्या तक को छुआ है और यह सुझाव दिया है कि उन्हें शहरी नियोजन का हिस्सा बनाया जाए। देश में कुत्तों की संख्या 6.2 करोड़ है। न उन्हें मारा जा सकता है और न उनका बंध्याकरण समाधान है।

मनीष तिवारी, नई दिल्ली। शहरी नियोजन में सुधार के लिए गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने शहरों में वाहनों की भीड़भाड़ को सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बताते हुए इस समस्या के समाधान के लिए पूरी तरह नई व्यवस्था बनाने की सिफारिश की है। समिति के अध्यक्ष और साबरमती रिवर फ्रंट के पूर्व प्रमुख केशव वर्मा ने बुधवार को अपनी अंतिम रिपोर्ट वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को सौंप दी।
विडंबना यह है कि शहरी सुधार के तौर-तरीके बताने वाले केशव वर्मा दिल्ली से अहमदाबाद लौटते हुए खुद गुरुग्राम और आईजीआई एयरपोर्ट के बीच शाम को व्यस्त समय में ट्रैफिक जाम के शिकार हो गए। 20-22 मिनट का सफर पूरा करने में उन्हें डेढ़ घंटे लगे और वह किसी तरह सवा नौ बजे निर्धारित अपनी उड़ान में सवार हो सके।
तकनीकी रूप से सक्षम प्रणाली की जरूरत
पूर्व आईएएस केशव वर्मा ने दैनिक जागरण को बताया कि शहरों की भीड़भाड़ बहुत बड़ी समस्या है। यह केवल ट्रैफिक पुलिस के सहारे नहीं दूर होगी। इसके लिए कुशल और तकनीकी रूप से सक्षम प्रणाली की जरूरत है। एक नया ढांचा बनाना होगा, जिसमें ट्रैफिक फ्लो, मोबिलिटी और इन्फोर्समेंट के लोग मिलकर काम करें।
उनके अनुसार, हर साल 16 लाख नए वाहन सड़कों पर आ रहे हैं। इसे देखते हुए समिति ने शहरों में ट्रैफिक प्रबंधन के लिए क्रांतिकारी बदलाव की जरूरत रेखांकित की है। केशव वर्मा ने कहा-यह भ्रम है कि ट्रैफिक की समस्या का समाधान सड़कों को चौड़ा करने से होगा। हमें संस्थागत सुधार करने होंगे।
समिति ने दिए अहम सुझाव
- समिति ने शहरी परिवहन के लिए सब जगह मेट्रो सेवाओं की मांग की प्रवृत्ति से असहमति जताते हुए केवल पचास लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में मेट्रो सेवाओं को उपयुक्त माना है।
- मेट्रो के बजाय शहरों को पर्याप्त यात्री बसों से लैस करने का सुझाव दिया गया है। समिति का एक अन्य अहम सुझाव शहरों में पैदल यात्रियों के अधिकार को सुनिश्चित करने का है।
- इसके लिए समिति ने मोटर वाहन कानून में संशोधन की सिफारिश की है ताकि पैदल यात्रियों को भी ट्रैफिक की परिभाषा में शामिल किया जा सके। केशव वर्मा के मुताबिक, सड़कों के संदर्भ में इस सोच को स्थापित करना जरूरी है कि वे केवल कारों के लिए नहीं हैं।
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