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प्रदूषण बढ़ने पर आरोप-प्रत्यारोप तो घटने पर श्रेय लेने की होड़, केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच सालों से चल रहा यह सिलसिला

दिल्ली-एनसीआर में जहरीली हवाओं से भगवान ही बचाएं क्योंकि सरकारों के वश में कुछ भी नहीं है। वायु प्रदूषण बढ़ने पर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच आरोप- प्रत्यारोप और घटने पर श्रेय लेने की होड़ रहती है। यह सिलसिला सालों से चल रहा है। हर साल अक्टूबर से दिसंबर तक ही इससे निपटने की तेजी दिखती है। बाद में सभी आंखे मूंद लेते है।

By Jagran NewsEdited By: Achyut KumarPublished: Fri, 10 Nov 2023 07:23 PM (IST)Updated: Fri, 10 Nov 2023 07:23 PM (IST)
दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने पर आरोप-प्रत्यारोप तो घटने पर श्रेय लेने की केंद्र और राज्य सरकार में रहती है होड़

अरविंद पांडेय, नई दिल्ली। Delhi Pollution: वायु प्रदूषण को लेकर पिछले कुछ सालों से दिल्ली-एनसीआर में जिस तरह की स्थिति देखने को मिल रही है, उसमें इस जानलेवा वायु प्रदूषण से सिर्फ भगवान ही बचा सकते है। केंद्र हो या फिर राज्य सरकार इनके वश में कुछ नहीं है। 

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हवाओं के साफ होने पर दोनों सरकारें लेती हैं क्रेडिट

यह जरूर है कि जब हवाएं साफ हो जाती है तो इसका श्रेय लेने के लिए दोनों ही दावेदारी ठोंकते दिखते है, लेकिन जैसे ही हवाओं की गुणवत्ता खराब होती है तो सभी अपना पल्ला झाड़ लेते है और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते है। इस साल भी केंद्र और राज्य सरकारों ने यही फार्मूला आजमाया। देखना होगा कि यह खेल कब तक चलता है और कब तक अपनी जिम्मेदारी से बचते है।

कागजों में ही हुई कोशिशें

यह बात अलग है कि दिल्ली-एनसीआर को जानलेवा हवाओं से बचाने की इस सालों में कोशिशें खूब हुई। भले ही यह कागजों में हुई। इस दौरान एक आयोग के गठन के साथ ही पराली प्रबंधन सहित वायु प्रदूषण पैदा करने वाले दूसरे सभी कारणों को खत्म करने लिए चार हजार करोड़ से अधिक पिछले चार सालों में खर्च किया जा चुका है।

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इसके तहत पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश को पराली खेतों में ही नष्ट करने के लिए दो लाख से ज्यादा मशीनें किसानों को व्यक्तिगत तौर पर और करीब 40 हजार मशीनें किराए पर मुहैया करने वाले किसान सहायता केंद्रों के जरिए मुहैया कराई गई है। बावजूद इसके पराली की समस्या की जस की तस है। यह जरूर है कि सभी राज्यों में पिछले सालों के मुकाबले में पराली जलने की घटनाओं में कमी आयी है, लेकिन जितनी जल रही है, वही दिल्ली-एनसीआर की सांस फूलाने के लिए काफी है।

पिछले सालों के मुकाबले इस साल हवा के साफ होने का दावा

केंद्र हो या राज्य सरकारें सभी का दावा तो यह भी है कि पिछले सालों के मुकाबले हवा साफ हो रही है। वर्ष 2016 में अच्छे दिनों यानी 365 दिनों में साफ हवाओं वाले दिनों की संख्या 110 थी, जबकि वर्ष 2023 में अब तक अच्छे दिनों की संख्या 206 रिपोर्ट हो चुकी है। हालांकि, इसके पीछे सरकारों की मशक्कत कम है, बल्कि भगवान की मेहरबानी ज्यादा है, क्योंकि जब भी वायु प्रदूषण की स्थिति गंभीर बनी, तब बारिश हो गई।

कृत्रिम कोयला बनाने की योजना

इसके साथ ही, पराली संकट के समाधान के लिए केंद्र ने कृत्रिम कोयला बनाने की एक योजना भी बनाई थी, जिसमें थर्मल पावर प्लांटों को अपने ईंधन में इसका 10 से 15 फीसद तक अनिवार्य रूप से इस्तेमाल भी करना था। केंद्र सरकार की ओर से कृत्रिम कोयला बनाने के करीब पांच करोड़ की लागत से छह प्लांट बनाने की अब तक मंजूरी दी गई है। इनमें से एक यूपी में और पांच पंजाब में लगाए जाने है।

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इसके साथ ही सड़कों की सफाई के दौरान उठने वाली धूल को थामने के लिए एंटी स्माग गन, स्मॉग टावर सहित सफाई मशीनों के लिए भी करोड़ों रुपए खर्च किए गए है, लेकिन अब तक न तो पराली, न धूल, न ही वाहन और उद्योगो से उठने वाले प्रदूषण से कोई राहत मिली है।

पराली जलने से जहरीली हो रही हवा

मौजूदा समय में दिल्ली-एनसीआर में जानलेवा हवाओं में पराली जलने की मात्रा जहां 38 फीसद है, वहीं वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण की मात्रा करीब 20 फीसद, धूल से होने वाले प्रदूषण की हिस्सेदारी करीब पंद्रह फीसद है। इसके साथ ही उद्योगों और भवन निर्माण आदि उठने वाले प्रदूषण की हिस्सेदारी भी इनमें शामिल है। सवाल यह है कि जब वायु प्रदूषण से निपटने के लिए इतने सारे कदम उठाए जा चुके है तो फिर हवाएं क्यों हो रही जहरीली।

कुछ इस तरह है अच्छे दिनों का दावा (एक जनवरी से छह नवंबर के बीच)

वर्ष अच्छे दिन
2016 110
2017 151
2018 156
2019 175
2020 224
2021 197
2022 160
2023 206

वायु प्रदूषण से निपटने के लिए हो चुकी है 100 से ज्यादा बैठकें

वायु प्रदूषण पर भले ही सरकार और इससे निपटने के लिए गठित आयोग का कोई नियंत्रण नहीं है, लेकिन इससे निपटने के लिए बैठकों को पूरे साल भर सिलसिला चलता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल के भीतर ही वायु प्रदूषण से निपटने के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की अगुवाई में केंद्र व राज्यों के साथ 100 से अधिक बैठकें की गई थी। इनमें 93 बैठकें सिर्फ समीक्षा बैठकें थी, जबकि दो आयोग की फुल बेंच मीटिंग थी। वहीं, आयोग की उप-समितियों ने भी छह बैठकें की है।


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