Jagran Exclusive: धन से किसका दिल भरता है? हमें तो बस उसका 'अम्मी मैं आ गया' वापस चाहिए
लाल किले के पास कार में हुए ब्लास्ट को दो हफ्ते बीत गए। पर लाल किले के पास हुए धमाके में मारे गए ई-रिक्शा चालक मोहसिन मलिक के परिवार का दर्द कम नहीं हो रहा। जांच एजेंसियों ने कई संदिग्धों को गिरफ्तार किया है और सरकार ने मुआवजे का एलान किया है, लेकिन मोहसिन की मां को आतंकियों के लिए मौत की सजा चाहिए। मोहसिन की पत्नी सुल्ताना ने बताया कि आखिरी कॉल पर क्या कहा था? यहां पढ़ें परिवार से बातचीत...

दीप्ति मिश्रा, नई दिल्ली। लाल किले के पास कार में हुए ब्लास्ट को दो हफ्ते बीत गए, लेकिन ब्लास्ट में मारे गए ई-रिक्शा चालक मोहसिन मलिक के परिवार के लिए वक्त जैसे थम-सा गया है। उनके घर की खामोशी में आज भी उस धमाके की गूंज सुनाई देती है, जिसने परिवार से मोहसिन को छीन लिया। दर्द, सदमा और सवाल- जैसे आंगन में पसर गए हैं। मां के आंसू नहीं रुकते तो पिता ने खामोशी ओढ़ ली है, कुछ बोलने या बताने की कोशिश करते हैं तो गला रुंध जाता है।
लाल किले धमाके पर कड़ी कार्रवाई करते हुए जांच एजेंसियों ने 20 से ज्यादा संदिग्धों को गिरफ्तार किया। दिल्ली सरकार ने राहत के तौर पर मृतकों के परिवार के लिए 10 लाख रुपये के मुआवजे का भी एलान किया। पर मोहसिन की मां कहती हैं- 'धन से किसका दिल भरता है? हमें तो बस उसका 'अम्मी मैं आ गया' वापस चाहिए था।' पिता की सूनी आंखें कह रही हैं- अब मेरा बेटा कभी वापस नहीं लौटेगा। लाल किला ब्लास्ट में मारे गए मेरठ के मोहसिन मलिक के परिवार से दैनिक जागरण की बातचीत यहां पढ़ें...
मेरठ के लोहिया नगर थाना क्षेत्र में आने वाले लखीपुरा की गली नंबर 26 का तीसरा मकान। नीचे सब्जी की दुकान। दुकान पर बैठे लोग देखते ही पूछते हैं- मोहसिन के घर जाना है, क्या? मैं हां में सिर हिलाती हूं तो हाथ से इशारा करते हुए सीढ़ी का रास्ता दिखा दिया जाता है। लोहे की सीढ़ी से मैं फर्स्ट फ्लोर पर पहुंचती हूं, जहां किराये के एक छोटे-से कमरे में मोहसिन का सात सदस्यों का परिवार रहता है। पिता रफीक मलिक बाहर ही थे, जो मेरे पीछे-पीछे घर में घुसते हैं तो छोटा भाई नदीम मेरे बैठने के लिए कुर्सी खींचता है।
मां संजीदा बेगम कमरे से बाहर आती हैं और पास पड़ी चारपाई पर बैठकर आंसू पोंछने लगती हैं। आसपास कुछ महिलाएं भी हैं और बच्चे भी, लेकिन सन्नाटा ऐसा कि मुझे भी कुछ पूछने से पहले हिम्मत जुटानी पड़ी है। पहला सवाल- कैसी हैं आप? जवाब में सिर्फ सिसकी सुनाई पड़ती है। यह सिसकी थी बेटा खोने वाली उस मां की, जिसको बेटे का न पूरा पार्थिव शरीर मिला और न मय्यत में शामिल होना नसीब हुआ। मैंने खामोशी को तोड़ते हुए अगला सवाल किया।

आपको कब और कैसे खबर मिली, क्या आपको ब्लास्ट के बारे में पहले ही पता चल गया था?
मृतक ई-रिक्शा चालक मोहसिन की मां संजीदा बताती हैं- हम खा-पीकर लेट गए थे। हमको ब्लास्ट की कोई खबर नहीं थी। सोने ही वाली थी, तभी छोटे बेटे के पास दिल्ली से फोन आया है। फोन सुनते ही वो जिस तरह खड़ा हुआ, उसको देखकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। उसके कुछ बोलने से पहले ही मुझे अनहोनी की आशंका हो गई। बेटा बोला- अम्मी, दिल्ली में बम ब्लास्ट हो गया है और मोहसिन भाई का कुछ पता नहीं चल रहा है। मैं जा रहा हूं।' मैंने उसे साथ चलने को कहा तो बोला आप रुको मैं पहुंचकर बताता हूं और वो आनन-फानन निकल गया, लेकिन मेरा मन नहीं लग रहा था।
मेरठ के तारापुरी में बेटी और दामाद रहते हैं। उनको ब्लास्ट की खबर मिल गई थी। बेटी का फोन आया- अब्बू, अम्मी को लेकर यहां जाओ। यहीं से दिल्ली चलेंगे। हम इनके साथ भागते हुए बेटी के घर पहुंचे। तब तक बेटे का कॉल आ गया। बोला- आप और अब्बू मत आइए, हम लोग वहीं आ रहे हैं। उसकी आवाज से मैं समझ गई थी कि अब मेरा मोहसिन नहीं रहा। मैंने जिद की- 'हमको ले चलो। जब तक पहुंचे; तब तक छोटी बहू नाजिसा ने शिनाख्त कर ली थी। पोस्टमॉर्टम हुआ और सफेद कपड़े में लपेटकर दे दिया कि जाओ ले जाओ... फिर फफक पड़ती हैं। मैं भी कुछ देर मौन रहती हूं; फिर बातचीत का सिलसिला शुरू करती हूं।
आखिरी बार कब मिली थीं आप?
इस पर संजीदा बेगम कहती हैं- 15 दिन पहले घर आया था। एक हफ्ते पहले बात हुई थी। कह रहा था- आपके हाथ का बना खाना गोश्त खाने का मन कर रहा है, मैंने कहा- आजा, मैं बना दूंगी। मैं हर रविवार को कॉल करती थी, उस दिन बच्चे घर होते थे तो बेटा-बहू और पोता-पोती सबसे बात हो जाती थी। ब्लास्ट से एक दिन पहले वाले रविवार को कॉल किया था, लेकिन बेटे से बात नहीं हो पाई थी। अब तो कभी बात नहीं हो पाएगी। अब तो कभी नहीं आएगा.. आंसू गालों पर लुढ़क पड़ते हैं।

फिर आंसू पोंछते हुए कहती हैं- मोहसिन मंझला बेटा था। 2012 में दिल्ली की सुल्ताना से शादी कराई थी। मोहसिन और सुल्ताना की 11 साल की एक बेटी और 9 साल का बेटा है। शादी के बाद यहीं अपने पिता और भाइयों के साथ हैडलूम का काम करता था। पावर मशीनें आ गई हैं, इसलिए 12-13 घंटे लगातार मेहनत करने पर 400 रुपये मिलते। फिर मिनी मेट्रो (ई-रिक्शा) चलाने लगा।
दो साल पहले बोला- अम्मी यहां गुजारा नहीं हो रहा है, मैं दिल्ली चला जाता हूं। बहू और बच्चों को लेकर दिल्ली रहने लगा। वहां पहले कपड़ों का काम शुरू किया, लेकिन उसमें घाटा हो गया। फिर जैसे-तैसे जुगाड़ कर ई-रिक्शा खरीदा। तब से वही रहता था, लेकिन महीने में दो-तीन बार घर घूमने आता था। मैं जब भी फोन करती तो फोन उठाते ही मुझे चिढ़ाने के लिए कहता- 'तू तो वहां जाकर भूल गया है कॉल ही नहीं करता।' मैं कहती तू मेरा मजाक उड़ा रहा है। कहता- नहीं अम्मी, मैं तो सिर्फ आप जो बोलने वाली हो, वही कह रहा हूं।
कपड़ों का बेहद शौकीन था
मृतक ई-रिक्शा मोहसिन ने कभी कोई डिमांड नहीं की। जो खाने को मिला, वो खा लेता था। न घूमने का शौक, न किसी तरह का कोई ऐब। बस बचपन से ही कपड़ों का बहुत शौकीन था। जब छोटा था, तब भी कहीं रिश्तेदारी में शादी या किसी समारोह में जाना होता तो कहता- अम्मी, अगर नए कपड़े दिलाओगी तो ही जाऊंगा; वरना नहीं जाऊंगा। हर कार्यक्रम में नए कपड़े पहनना। हमेशा अच्छे कपड़े पहनकर रहता।
कपड़ों का शौक ऐसा था कि ब्लास्ट से एक दिन पहले एक निकाह में जाने के लिए भी नए कपड़े खरीदे। हमेशा अच्छे कपड़े पहनकर रहने वाले बेटे का शव भी पूरा नहीं मिला। पूरा शरीर लहूलुहान था। हाथ अलग हो गए थे, उठाकर पास रख दिए थे। फिर फफक पड़ती हैं और कहती हैं कि अब बात नहीं कर पाऊंगी। फिर आंसू पोंछते हुए कहती हैं- मुझसे मेरा बेटा छीनने वालों को भी मौत की सजा दी जाए। उनके घरों पर बुलडोजर चलाया जाए।
मोहसिन के पिता क्या बोले?
संजीदा के पास ही बैठे उनके शौहर और मोहसिन के पिता रफीक मलिक अभी तक एक शब्द नहीं बोले- लेकिन उनका गम उनकी आंखों से बयां हो रहा था। अब मैं उनसे मुखातिब होती हूं। आपकी आखिरी बातचीत कब हुई थी? रफीक मलिक बताते हैं- 15 दिन पहले घर आया था। तभी बातचीत हुई थी। फोन पर कम ही बात करता था, क्योंकि बेटा ई-रिक्शा चलाता था तो डर लगता था- अगर मोबाइल पर बात करते हुए चलाएगा, तो कहीं कोई दुर्घटना न हो जाए, कहीं चालान न कट जाए। इसलिए घर पर होने पर ही बात करता था।

मोहसिन को दफनाने को लेकर भी कुछ तनातनी हुई थी, वो क्या मामला था?
पिता रफीक कुछ देर मौन रहते हैं। पैर के अंगूठे से जमीन को खुरेचने की कोशिश करते हैं। फिर डबडबी आंखों से जवाब देते हैं- मोहसिन का शव आ गया था। मय्यत की तैयारी हो रही थी। तभी बहू और उसके परिवार वाले आए और हंगामा करने लगे। कहने लगे- 'हम दिल्ली में दफनाएंगे; वहां मोहसिन की यादें हैं, यहां क्या है?'
मैंने समझाने की कोशिश की कि दिल्ली में तुम किराये के मकान में रहती हो। मेरे अम्मी-अब्बू, दादा-दादी और न जाने कितनी पीढ़ियां यहीं दफन हैं, तो मोहसिन के पुरखे-परिवार, बचपन और शादी की यादें; सबकुछ तो यहीं है। पूरा मेरठ इकट्ठा हुआ था, लेकिन बहू ने किसी की एक नहीं सुनी और शव ले गई, तो क्या करते.. फिर खामोशी पसर जाती है। पहले से कोई पारिवारिक विवाद था क्या? जवाब आता है- नहीं।
मोहसिन ने आखिरी कॉल पर क्या कहा था?
फिर दरियागंज में चांदनी महल थाना क्षेत्र में किराये के मकान में रह रही मोहसिन की पत्नी सुल्ताना बेगम से फोन पर बात होती है। इद्दत पूरी कर रही सुल्ताना कहती हैं, एक दिन पहले ही मेरे मामू के यहां निकाह था तो हम लोग वहां गए थे। हररोज सुबह-सुबह स्कूल के बच्चों को छोड़ने जाते थे। फिर आकर नाश्ता करते थे। उसके बाद थोड़ी देर सोते थे और फिर 11 से 11:30 बजे फिर रिक्शा लेकर निकल जाते। शाम को 9 बजे तक घर आ जाते थे।
उस दिन बच्चों को स्कूल छोड़कर आए तो मैंने मना किया था- आज रिक्शा लेकर मत जाओ। आराम कर लो, नींद पूरी कर लो। लेकिन नहीं माने। दोपहर 12:30 बजे चले गए। मेरी शाम को 5:24 पर बात हुई तो बोले- 'जाम में फंसा हूं। सवारी को लेकर जा रहा हूं, उसके बाद घर ही आऊंगा।'
उसके बाद मैं घर के काम में लग गई। रात के 8:20 बजे मेरा भाई आया। बोला- मोहसिन भाई कहां हैं? लाल किले के पास बम फट गया है। मैं घबरा गई। मैंने कॉल किया। लगातार रिंग जा रही थी, लेकिन फोन नहीं उठा रहा था, जबकि आज तक उन्होंने कभी मेरा फोन मिस नहीं किया था। मुझे चक्कर-सा आ गया। लगा जैसे आसमान सिर पर गिर पड़ा।
बेटी ने मैसेज किया- '' अब्बू, जल्दी से कॉल करो, अम्मी परेशान हो रही हैं।' पूरा परिवार ढूंढने निकल गया। सबको पता चल गया था, लेकिन मुझे किसी ने नहीं बताया कि मेरी दुनिया उजड़ चुकी है। हम तो कमाने-खाने और बच्चों का भविष्य बनाने आए थे। मेरा घर उजड़ गया। मेरा तो सब लुट गया। ऐसा लग रहा है, जैसे-अभी-अभी फोन पर बात हुई है और वो थोड़ी ही देर में सवारी छोड़कर आते होंगे।
मोहसिन का शव मेरठ से दिल्ली क्यों लाया गया?
सुल्ताना का कहना है-
तीन साल पहले सास-ससुर ने मेरठ वाला घर बेच दिया और किराये के मकान में रहने लगे। हमको हिस्सा भी नहीं दिया। मैडम जी! अब वो जमाना नहीं बचा, जब बच्चों का पेट भरने का इंतजाम कर दो और पल गए बच्चे। अब बच्चों को खाने के साथ-साथ पढ़ाना-लिखाना भी जरूरी है। मेरा मायका पुरानी दिल्ली में है। मैं बच्चों को लेकर यहां आ गई। 8 महीने मम्मी के पास रही। बच्चों का दाखिला करवा दिया।
उसके बाद मोहसिन आए थे। मुझे बिना खबर किए मेरी ससुराल वाले मेरे पति का शव ले गए। वहां दफनाने की तैयारी होने लगी। मैं यहां। मेरे बच्चे यहां तो पति को वहां क्यों दफनाऊंगी। मैं यहां से वहां उनकी कब्र पर कैसे जा पाऊंगी। अगर मैं वहां रहूं तो मेरे बच्चे क्या खाएंगे? इसलिए मैं शव यहां लेकर आ गई और उसके बाद ससुराल से कोई नहीं आया।

Viral video- 'इस्लाम में आत्महत्या हराम; पर आत्मघाती बम बनाना..', इस पर आपका क्या कहना है?
दिल्ली ब्लास्ट के आरोपी उमर नबी के Viral Video का मोहसिन के पूरे परिवार ने विरोध किया। मोहसिन के अम्मी-अब्बू, भाई नदीम मलिक और पत्नी सभी ने कहा- दिल्ली ब्लास्ट के आरोपी ने जो कहा है, वो पूरी तरह गलत है। उसकी बात का इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं है। कुरान शरीफ में कहीं भी ऐसा नहीं लिखा है। आतंकवाद और खून-खराबा की कीमत हमेशा बेगुनाह ही चुकाते हैं। आतंक न तो मजहब देखता है, न उम्र- बस मां-बाप के आंगन सूने कर देता है। बसे-बसाए घर उजाड़ देता है। मां-बाप से बच्चे, पत्नी से सुहाग और बच्चों से पिता का साया छीन लेता है। इस्लाम में आत्महत्या हराम और निर्दोषों की हत्या घोर पाप है।
सजा पर एक सुर में परिवार- आतंकियों को फांसी दो
हमलावरों के साथ क्या होना चाहिए? इस परिवार कहता है कि उनको कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए। इतने लोगों को मारने वालों को मौत की सजा होनी चाहिए।
बता दें कि 10 नवंबर की शाम लाल किले के पास कार में ब्लास्ट हुआ था। इसमें मरने वालों की संख्या 15 हो गई है। एलएनजेपी हॉस्पिटल में अभी भी कई घायलों का इलाज चल रहा है। जांच एजेंसियों ने कार्रवाई करते हुए 20 से ज्यादा संदिग्धों को गिरफ्तार किया । दिल्ली को दहलाने की साजिश रचने से लेकर उस अंजाम देने वालों में आत्मघाती हमलावर डॉ. उमर उन नबी, युवाओं का ब्रेनवॉश करने वाली लेडी सर्जन डॉ. शाहीन, कार देने वाला आमिर राशिद अली, आतंकी डॉक्टरों के मददगार दो मौलवी इस्तियाक और इरफान अहमद आदि नाम शामिल हैं।
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दिल्ली सरकार की ओर से मृतकों के परिजनों को 10 लाख, स्थायी रूप से अक्षम लोगों को पांच लाख और गंभीर रूप से घायलों को दो लाख रुपये का मुआवजा देने का एलान किया गया है।
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