Anti-Defection Law: पार्टी बदली तो सदन से चली जाएगी सदस्यता, किसी देश में लचीला तो कहीं सख्त है दलबदल कानून
Anti-Defection Law अमेरिका ब्रिटेन कनाडा केन्या दक्षिण अफ्रीका सिंगापुर बांग्लादेश और यूरोप में क्या है दलबदल कानून (Defection law)। क्या भारत की तरह अमेरिका और अन्य देशों में भी विधायक और एमपी पार्टी बदल लेते है? अगर पार्टी बदल भी लेते है तो क्या इस पर कोई कानूनी कार्रवाई होती है? कहीं लचीले तो कहीं इसको लेकर काफी सख्त कानून है।जानिए इसको लेकर क्या कहता है अलग-अलग देशों का कानून?

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क।Anti Defection Law: देश में 2024 लोकसभा चुनाव से पहले ही सरगर्मी बढ़ गई है। सत्ताधारी भाजपा को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए विपक्षी पार्टियां लगातार बैठकें कर रही हैं। पहले बिहार की राजधानी पटना और अब कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में प्रमुख विपक्षी पार्टियों की बैठक हुई। आगे होने वाली बैठकों में तय किया जाएगा कि 2024 में होने वाला लोकसभा चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ा जाएगा?
इस बीच महारष्ट्र में भी सियासी उलटफेर देखने को मिला। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) से कई नेताओं ने पलायन कर लिया। एनसीपी के पूर्व नेता अजित पवार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार में बतौर डिप्टी सीएम शामिल हो गए। अजित पवार के साथ 8 अन्य एनसीपी के विधायकों ने भी मंत्री पद की शपथ ली।
आखिर क्यों पाला बदलते है विधायक?
आमतौर पर चुनाव से ऐन पहले विधायक और एमपी पाला बदल लेते हैं। इन विधायकों और मंत्रियों पर पार्टी द्वारा कोई कार्रवाई भी नहीं होती है। जिन विधायकों और मंत्रियों ने पार्टी छोड़ी, उनके खिलाफ पार्टी कुछ भी नहीं कर सकती है, क्योंकि अब वो उनकी पार्टी का हिस्सा ही नहीं रहे। भारत में ऐसे नेताओं पर दलबदल कानून (Anti Defection Law) भी तभी लागू होता है, जब दलबदल करने वाले नेताओं की संख्या दो–तिहाई से कम हो।
1957 से 1967 के बीच कई सांसदों और विधायकों ने पार्टी बदली, जिसके बाद 1985 में राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) की सरकार दलबदल कानून लेकर आई। इस कानून के मुताबिक, अगर कोई विधायक या सांसद अपनी मर्जी से पार्टी छोड़ता है तो और दूसरी पार्टी में शामिल हो जाता है तो उसे अयोग्य करार दिया जा सकता है। इसके अलावा अगर कोई विधायक या सांसद पार्टी व्हिप का पालन नहीं करेगा तो उसकी सदस्यता भी जा सकती है।
भारत के अलावा अन्य देशों में क्या है दलबदल कानून?
भारत के दलबदल कानून को जानने के बाद क्या आपके मन में भी ऐसे सवाल उठ रहे हैं कि आखिर अमेरिका और अन्य देशों में इसको लेकर क्या कानून हैं? क्या भारत की तरह अमेरिका और अन्य देशों में भी विधायक और एमपी पार्टी बदल लेते है? अगर पार्टी बदल भी लेते है तो क्या इस पर कोई कानूनी कार्रवाई होती है? आइये इन सवालों के जवाब आपको यहां देते हैं...
अमेरिका
नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कीनेथ जांदा(Kennth Janda) ने अमेरिका और अन्य देशों के दलबदल कानून पर एक रिसर्च की है। इस रिसर्च का नाम है (Law Against Party Switching, Defecting or Floor Crossing in National Parliament)। इसके पेज नबंर 9में उल्लेख किया गया है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में टू पार्टी सिस्टम है। 1947 से 1994 तक सदन और सीनेट में 20 सदस्य कार्यरत थे, जिन्होंने पद पर रहते हुए अपनी पार्टियां बदल ली। डेमोक्रेटिक पार्टी के 16 प्रतिनिधित्व रिपब्लिकन पार्टी में शामिल हो गए।
धीरे-धीरे डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रतिनिधित्व रिपब्लिकन पार्टी में शामिल होते चले गए और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अल्पसंख्यक पार्टी कहे जाने वाली पार्टी रिपब्लिकन ताकतवर होता चला गया। इस पार्टी में और मजबूती तब आई जब 1994 के राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी ने भारी बहुमत के साथ जीत हासिल की।
क्या अमेरिका में है दलबदल कानून?
अमेरिका में एक विधायक अपनी इच्छा और पसंद के अनुसार मतदान कर सकता है, पार्टी की ओर से पार्टी की तर्ज पर मतदान करने का कोई दबाव नहीं है। बता दें कि अमेरिका ने न केवल दलबदल का अनुभव किया है, बल्कि दलबदल विरोधी कानून के बिना भी काम किया है। अमेरिका, भारत की तुलना में एक अलग संसदीय मॉडल का पालन करता है। अमेरिका की राष्ट्रपति शासन प्रणाली है लेकिन, उनके पास अभी दो सदन हैं जो भारतीय सदनों के समान विधेयकों पर मतदान करते हैं।
हालांकि, अमेरिका में दलबदल को नियंत्रित करने वाला कोई कानून नहीं है, लेकिन पार्टी अनुशासन अभी भी अमेरिका की राजनीति में एक बहुत महत्वपूर्ण रोल निभाती है। जब अमेरिका के सदनों में किसी कानूनों को लेकर चर्चा होती है तो पार्टी के सभी सदस्यों को एकमत होना पड़ता है। इससे पार्टी की एकजुटता नजर आती है। पार्टियों में आत्म-अनुशासन सिद्धांत का पालन किया जाता है।
किसी कानून पर पार्टियों में आंतरिक रूप से चर्चा होती है। जब इसके लिए मतदान होता है तो यह देखा जाता है कि सभी विधायक पार्टियों के उच्च अधिकारियों के अनुसार मतदान हो और एक विधेयक पर एकजुट होकर मतदान किया जाए।
अमेरिका में दलबदल प्रक्रिया
अगर विधायक पार्टी के अनुसार वोट नहीं करते हैं तो उन्हें आंतरिक रूप से मंजूरी दे दी जाती है और संविधान में मौजूद किसी भी कानून के तहत उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। इसको लेकर कई बार अदालत में चुनौती भी दी गई है। भले ही दलबदल प्रक्रिया अमेरिका में आंतरिक रूप से शासित होती है, जबकि भारत में इसे संसद द्वारा निपटाया जाता है।
यूनाइटेड किंगडम (UK) में लचीला है दलबदल कानून
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 105 भारतीय संसद में विधायकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, उसी तरह ब्रिटिश संसद में बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार इंगिलश बिल ऑफ राइट्स के अनुच्छेद 9 में दर्ज किया गया है। यहां दलबदल विरोधी के लिए कोई अलग कानून नहीं है जो अमेरिका की तरह ब्रिटिश संसद को नियंत्रित करता हो।
- विधेयकों पर मतदान के दौरान उठने वाले सभी मुद्दों को अमेरिका की तरह पार्टी के सदस्यों के बीच आंतरिक रूप से सुलझाया जाता है। ब्रिटेन में सत्ता पक्ष और विपक्ष अलग-अलग बैठते हैं। वहीं, अगर कोई सदस्य अपनी सीट छोड़ दूसरी तरफ बैठ जाता है तो इसे दल परिवर्तन माना जाता है।
- ब्रिटेन में दलबदल नियम लचीले हैं। आमतौर पर इस पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती। पार्टी बदलने पर न तो सदस्यता जाती है और न ही सीट खाली कर दोबारा चुनाव लड़ना पड़ता है। ब्रिटेन में सत्ता पक्ष संसद के बायीं ओर और विपक्ष दायीं ओर बैठता है।
यूरोप में दलबदल को लेकर सख्त कानून
यूरोप के सभी देशों में इसको लेकर सख्त कानून हैं। अगर कोई सदस्य पार्टी बदलता है तो उसकी संसद से सदस्यता समाप्त हो जाती है। इसे देश के कानून का उल्लंघन माना जाता है।
बांग्लादेश में इस्तीफा की आ जाती है नौबत
बांग्लादेश में कोई भी जन प्रतिनिधि दलबदल नहीं कर सकता। कानून इसकी इजाजत भी नहीं देता। बांग्लादेश के संविधान के अनुच्छेद 70 के अनुसार, अगर कोई जन प्रतिनिधि सदन में अपनी पार्टी के खिलाफ वोट करता है या पार्टी बदलता है, तो उसे सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ सकता है।
बांग्लादेश के अलावा, केन्या, दक्षिण अफ्रीका और कई अन्य देशों में भी जन प्रतिनिधियों को दलबदल की इजाजत नहीं है।
केन्या में सीट करनी पड़ती है खाली
केन्या में अगर कोई पार्टी सदस्य अपनी पार्टी छोड़ता है, तो उसे अपनी सीट खाली करनी पड़ती है। संविधान के आर्टिकल 40 में इसका उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया है कि अगर पार्टी सदस्य अपनी पार्टी छोड़ेगा तो उसे अपनी संसद की सीट खाली करनी होगी। इसका फैसला स्पीकर करेंगे और सदस्य इसके खिलाफ हाई कोर्ट में अपील कर सकते हैं।
सिंगापुर में पार्टी बदलना नामुमकिन
सिंगापुर में अगर कोई सदस्य पार्टी छोड़ता है या पार्टी द्वारा हटा दिया जाता है, तो उसे अपनी सीट खाली करनी होगी। संविधान के अनुच्छेद 46 के अनुसार, ऐसे किसी भी सदस्य की अयोग्यता का निर्णय संसद करेगी।
दक्षिण अफ्रीका में सदन की सदस्यता हो जाती है खत्म
दक्षिण अफ्रीका में अगर कोई सदस्य अपनी पार्टी छोड़ता है तो उसकी सदस्यता अपने आप खत्म हो जाती है। इसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 47 में किया गया है।
कनाडा में भी यूके जैसा हाल
यूके की तरह कनाडा में भी इसके नियम लचीले हैं, लेकिन आम तौर पर सरकार बनाने या गिराने के लिए कोई अवसरवादी दलबदल नहीं होता है। वहां दलबदल का मतलब 'क्रॉसिगं द लाइन' को माना जाता है। ब्रिटेन की तरह कनाडा में भी सत्ता पक्ष और विपक्ष अलग-अलग बैठते हैं।
वहीं, अगर कोई सदस्य अपनी सीट छोड़कर दूसरी पाली में बैठ जाता है तो इसे दल परिवर्तन माना जाता है। ब्रिटेन और कनाडा में पिछले कुछ सालों में ऐसा कई बार हुआ है, लेकिन किसी भी जन प्रतिनिधि को पैसे या पद के लालच में पार्टी बदलते नहीं देखा गया है।

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