आज भी बरकरार है टाइटैनिक का आकर्षण, 13000 फीट की गहराई में छिपे हैं कई राज
ओशन गेट द्वारा बनाई गई टाइटन सबमरीन में बैठकर 5 लोग टाइटैनिक के मलबे को समुद्र की लगभग 13,000 फीट गहराई में देखने के लिए निकले थे, लेकिन उनकी पनडुब्बी इम्प्लोड

ओशन गेट द्वारा बनाई गई टाइटन सबमरीन में बैठकर 5 लोग टाइटैनिक के मलबे को समुद्र की लगभग 13,000 फीट गहराई में देखने के लिए निकले थे, लेकिन उनकी पनडुब्बी इम्प्लोड
14 अप्रैल, 1912 में हुए टाइटैनिक जहाज के हादसे को अब लगभग 111 साल हो चुके हैं। लेकिन सागर की तलहटी में मौत की नींद सो रहा टाइटैनिक का मलबा आज भी कई लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
इस आकर्षण के चलते अब तक कई लोग अपनी जान भी गंवा चुके हैं। फिर भी कुछ लोग आज भी समुद्र के नीचे लगभग 13,000 फीट की गहराई में जाकर इसे देखने की हिम्मत करने से पीछे नहीं हटते हैं।
हाल ही में Ocean gate नाम की एक कंपनी ने 5 लोगों को टाइटैनिक के मलबे (Titanic Wreck) को ये ऑफर दिया था। जिसमें करोड़ों रुपए लेकर समुद्र की गहराई में जाकर टाइटैनिक के मलबे को देखना तय किया गया था। लेकिन वो कहते हैं ना कि सबका नसीब एक जैसा बिल्कुल नहीं होता है।
ठीक ऐसा ही हुआ टाइटन सबमरीन (Titan Submarine) के साथ। टाइटैनिक का मलबा देखने पानी में उतरी टाइटन सबमरीन समुद्र में कुछ ही दूर पहुंची थी कि उसके गायब होने की खबरे सामने आने लगी। एक दिन बीता ही था और दूसरे दिन ये खबर सामने आई कि सबमरीन में सवार पांचों लोगों की मौत हो चुकी है। हालांकि उनकी मौत का कारण पानी की निचली सतह पर अत्यधिक दबाव के कारण विस्फोट होना बताया गया है।
साल 2022 में मैक्सिकन यूट्यूबर और अभिनेता एलन एस्त्रादा (youtuber alan estrada) को भी टाइटैनिक के मलबे (Titanic Wreck in Ocean) ने अपनी ओर आकर्षित किया था। जिसके बाद एलन ने टाइटैनिक का मलबा दिखाने वाली पनडुब्बी का सहारा लिया था।
आपको बता दें कि एलन एस्त्रादा एक यूट्यूबर हैं। वह "एलन अराउंड द वर्ल्ड" के नाम से एक लोकप्रिय यूट्यूब चैनल चलाते हैं और लोगों के बीच काफी मशहूर हैं।
एलन एस्त्रादा को समुद्र के अंदर की जाने वाली इस तरह की यात्राओं के बारे में कोरोना महामारी के दौरान जानकारी मिली थी। उस दौरान एलन अपने यूट्यूब चैनल के माध्यम से कुछ नया करने के तरीके ढूंढ रहे थे।
जिसके बाद उन्होंने इस पनडुब्बी की यात्रा को लेकर रिसर्च की और अपने लिए स्पॉन्सर्स जुटाए। फिर साल 2021 में जब एलन ने यात्रा के लिए आवेदन किया तो इस दौरान उन्हें एक करोड़ रुपए (सामान्य से दोगुने) का भुगतान किया गया था। लेकिन जुलाई 2021 में उनका पहला प्रयास असफल रहा।
अपने पहले प्रयास के बाद वह 3 अन्य यात्रियों और पायलट स्टॉकटन रश (ओशनगेट कंपनी के अध्यक्ष और पनडुब्बी के निर्माता) के साथ साल 2022 में टाइटन सबमरीन में सवार होकर टाइटैनिक के मलबे को देखने के लिए उतरे थे लेकिन तकनीकी समस्याओं के कारण उन्हें यात्रा शुरू होने के कुछ ही समय बाद सतह पर वापस लौटना पड़ा था।
एक साल बाद वह फिर से दूसरे चालक दल और यात्रियों के साथ टाइटैनिक के मलबे को देखने के लिए रवाना हुए थे और इस बार एलन की यात्रा सफल हो गई।
एलन एस्त्रादा ने अपनी यात्रा को लेकर कई अनुभव (Experience Of titanic) साझा किए हैं। एलन ने बताया कि यात्रा करने से पहले उन्हें एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर करना पड़ा था। जिसमें लिखा था कि अटलांटिक महासागर (Atlantic Ocean) के तल में टाइटन पनडुब्बी जैसे प्रयोग के दौरान यात्रा में शामिल खतरों के लिए यात्री स्वयं जिम्मेदार हैं। इस दौरान हमने एक रिलीज और कई सारे कागजों पर साइन किया था। मुझे अच्छे से याद नहीं कि वो कितने थे।
उन्होंने कहा कि पनडुब्बी में सवार सभी लोग ये बात जानते थे कि हम किसी एम्यूजमेंट पार्क में नहीं जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि समुद्र की यात्रा के दौरान अगर हमारा संपर्क टूट जाए तो क्या होगा? उन्होंने कहा कि इस दौरान एक टॉलरेंस पीरियड होता है और अगर इस दौरान बाहरी जहाज से हमारा संपर्क दोबोरा नहीं जुड़ पाता है तो हमें अपने मिशन को वहीं खत्म करना पड़ता है। जिसके लिए हमें काफी बुरा लगता है।
उन्होंने आगे कहा कि उस वक्त हम समुद्र की गहराई में थे और हमारी पनडुब्बी का संपर्क हमारे बाहरी जहाज से टूट चुका था और टॉलरेंस टाइम भी बीतने ही वाला था और हम अपने मिशन को खत्म करने ही वाले थे लेकिन तभी हमारा संपर्क बाहरी जहाज से एक बार फिर से जुड़ गया। इसके बाद पूरी यात्रा के दौरान हमारा संपर्क हमारी बाहरी शिप से नहीं टूटा।
एस्त्रादा ने बताया कि दस्तावेजों में आप उन सभी चीजों को ध्यान से पढ़ते हैं जो हो सकती हैं। लेकिन हवाई जहाज पर चढ़ना भी एक जोखिम है। आखिर में जिन लोगों ने इसे सफलतापूर्वक पूरा किया, उनका कहना था कि जोखिम के बदले डूबे हुए टाइटैनिक को देखना बेहद सुखद है।
रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, एलन एस्त्रादा ने साल 2022 में टाइटैनिक के मलबे को देखने के लिए पनडुब्बी की यात्रा की थी। उन्होंने अपनी यात्रा को याद करते हुए बताया कि मैं भी टाइटैनिक के मलबे को देखने के लिए पनडुब्बी से गया था।
उस वक्त हमारे साथ भी एक बार ऐसा ही हुआ था जब जहाज का अपने समर्थन जहाज से संपर्क टूट गया था। यह काफी डरावना पल होता है। हालांकि कुछ ही क्षणों में हम फिर से जहाज के संपर्क में आ गया था।
एलन एस्त्रादा ने अपने 2 साल पहले के अनुभव को भी लोगों के साथ साझा किया है। उन्होंने बताया कि इस यात्रा में शामिल सभी लोग इस बात से पूरी तरह वाकिफ थे कि वो क्या जोखिम उठाने जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि मैंने कभी भी असुरक्षित महसूस नहीं किया। मुझे जोखिम के बारे में पूरी तरह से पता था। मुझे पता था कि अगर कुछ हुआ और गहराई में जाकर पनडुब्बी को नुकसान पहुंचता है तो शायद हम नोटिस भी नहीं कर पाएंगे।
अटलांटिक महासागर में लगभग 13,000 फीट की गहराई में पड़े टाइटैनिक का मलबा दिखाने के लिए निकली टाइटन पनडुब्बी का मलबा अब निकाल लिया गया है। टाइटन सबमरीन की तलाश बीते कई दिनों से जारी थी।
टाइटन का मलबा निकालने के साथ ही यह भी दावा किया गया है कि मलबे के ही बीच मानव अवशेष मिले हैं। बता दें कि इस पनडुब्बी में कुल 5 लोग सवार थे। चार दिन की खोज के बाद टाइटैनिक के मलबे के पास में ही 12 हजार फीट की गहराई में पनडुब्बी का मलबा मिला था।
मलबे को निकालने के बाद अब इसकी जांच की जाएगी कि आखिर पनडुब्बी में विस्फोट होने की वजह क्या रही होगी। तट से रवाना होने के एक घंटे बाद ही सबमरीन का संपर्क टूट गया था। बता दें कि यह सबमरीन 22 फीट लंबी थी।
कोस्ट गार्ड चीफ जैसन न्यूबेयर ने कहा कि टाइटन में किस वजह से विस्फोट हुआ यह पता लगाने के लिए अभी बहुत काम बाकी है। इसको समझने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि आगे इस तरह का हादसा ना हो।
इस हादसे के बाद से लोगों के मन में ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब अब तक उन्हें नहीं मिल सका है। लोग जानना चाहते हैं कि आखिर टाइटैनिक के मलबे में ऐसा क्या है जो आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। ऐसे हादसे होने के बाद लोगों को क्यों नहीं बचाया जा पाता है। तो आज हम इन्हीं सवालों का जवाब पाने के लिए बात करने जा रहे हैं अपनी विशेषज्ञ और भारत की पहली महिला मरीन पायलट रेशमा निलोफर नाहा से।
मरीन पायलट रेशमा निलोफर नाहा ने बताया कि (How deep is the sea?) महासागर की सबसे गहरी जगह 11,034 मीटर (36,201 फीट) मापी गई है और यह प्रशांत महासागर की मारियाना ट्रेंच में चैलेंजर डीप नामक स्थान पर है।
उन्होंने कहा कि हैरानी वाली बात यह है कि ये स्तर भी समुद्र का अंतिम स्तर नहीं है क्योंकि साइंटिस्ट अभी तक समुद्र का सिर्फ 5% का अनुमान लगा पाए हैं बाकी के 95% समुद्र का अनुमान लगा पाना अभी भी बाकी है। वहीं, कुछ समुद्र माउंट एवरेस्ट से भी गहरे हैं। अलग-अलग समुद्र की गहराई अलग-अलग होती है।
महासागर के सबसे गहरे हिस्से (Which is the deepest sea on earth?) को चैलेंजर डीप (challenger deep) कहा जाता है और यह पश्चिमी प्रशांत महासागर के नीचे मारियाना ट्रेंच (Mariana Trench) के दक्षिणी छोर पर स्थित है, जो अमेरिकी क्षेत्रीय द्वीप गुआम से कई सौ किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में चलता है। चैलेंजर डीप लगभग 10,935 मीटर (35,876 फीट) गहरा है।
मारियाना ट्रेंच के तल पर 1,086 Bar पानी दबाव होता है। bar पानी के दबाव मापने की एक इकाई है, जैसे हम तापमान मापने के लिए डिग्री सेल्सियस का उपयोग करते हैं। कभी-कभी दबाव को 'साई' में भी मापा जाता है (और समुद्र के सबसे गहरे बिंदु पर यह 15,750 साई होता है।)
इस सवाल का जवाब देते हुए हमें पायलट नाहा ने बताया कि बहुत सारे अभियान हुए हैं और मैं आपको मारियाना ट्रेंच के कुछ अभियानों के बारे में भी बता सकती हूं। मारियाना ट्रेंच सबसे गहरी खाइयों में से एक है।
उन्होंने कहा कि आज तक कई सबमरीन समुद्र के अंदर तक गई हैं और 7 से 8 ऑटोमेटेड सबमरीन (automated submarine in ocean) भी गई हैं। ये 11,000 मीटर है और फीट में पानी के अंदर (37800 फीट) है और अगर हम सबमरीन की बात करें तो कई सबमरीन को इस हिसाब से ही बनाया जाता है कि वो इतने गहरे पानी में आसानी से उतर सकें।
उन्होंने आगे कहा कि समुद्र की गहरी सतह तक उतरने के लिए सबमरीन की बाहरी परत को जिसे हमें (शैल) भी कहते हैं उसे टाइटेनियम (Titanium element) और एक तरह के मजबूर मैटेरियल से ही बनाया जाता है, जो समुद्र में उतरने के बाद तेज पानी का दबाव झेल सकें।
इस सवाल के जवाब में पायलट रेशमा ने कहा कि अगर हम बात करें ओशन गेट द्वारा बनाई गई टाइटन सबमरीन की तो इस कंपनी ने एक मजबूत सबमरीन का निर्माण नहीं किया था।
रेशमा निलोफर ने आगे कहा कि एक किसी भी जहाज का या सबमरीन का एक ISO सर्टिफिकेशन कराया जाता है। जो कंपनी खुद कराती है। जिसके बाद उनका प्रोडक्ट सर्टिफाइड हो जाता है।
इस प्रोसेस से ये कन्फर्म हो जाता है कि आप इस ऑपरेशन के लिए सही और सुरक्षित हैं। उन्होंने कहा कि एक प्रेशर कुकर का भी ISO सर्टिफिकेशन (Quality Standards) कराया जाता है।
इस सवाल का जवाब देते हुए नाहा ने कहा कि नई-नई टेक्नोलॉजी आती रहती हैं लेकिन जब इनका उपयोग होता है तब उसका ISO सर्टिफिकेशन किया जाता है। उसके बाद उसका ट्रायल किया जाता है। ह्यूमन ट्रायल भी किया जाता है।
कई बार ह्यूमन ट्रायल ना करके ऐसे भी उसे पानी के अंदर उतारा जाता है और देखा जाता है कि वह कैसे काम कर रही है। जब वो टेस्ट पास कर लेती है तब उसे उपयोग में लिया जाता है। लेकिन टाइटन सबमरीन का क्लास टेस्ट किया ही नहीं गया था।
वहीं, दूसरी तरफ हॉलीवुड फिल्म निर्देशक जेम्स कैमरून ने, जिन्होंने 1997 की फिल्म टाइटैनिक का निर्देशन किया था, ने अब तक कई बार समुद्र की सतह पर जाकर टाइटैनिक के मलबे का चक्कर लगाया है। उन्होंने भी कई बार मीडिया के सामने ये बात कही है कि ओशन गेट की जिस टीम ने टाइटन सबमर्सिबल का निर्माण किया था उसमें कॉस्ट कंटिग की गई है।
उन्होंने मीडिया के सामने ये बात कही है कि ओशन गेट को "प्रमाणित नहीं किया गया क्योंकि उन्हें पता था कि वे पास नहीं होंगे"। कम पैसे में सबमरीन बनाई गई और सबमरीन में जाने से पहले कुछ कागजों पर साइन कराए गए और बिना किसी सेफ्टी चेक के साथ वो सब समुद्र की सतह में टाइटैनिक के मलबे को देखने के लिए निकल गए।
निलोफर ने कहा कि जेम्स कैमरून ने कहा है कि मुझे उस तकनीक पर बहुत ज्यादा शक था जिसका वे उपयोग कर रहे थे। मैं उस मामले में नहीं पड़ सकता था। उन्होंने कहा कि टाइटन का निर्माण कार्बन फाइबर और टाइटेनियम से किया गया था। जो ज्यादा मजबूत नहीं होता है।
रेशमा नाहा ने इस सवाल के जवाब में कहा कि व्यक्तिगत तौर पर मैं ऐसी चीजों पर पैसा बर्बाद करने के सख्त खिलाफ हूं। उन्होंने आगे कहा कि टाइटन सबमरीन में जितने लोग भी सवार थे वो सिर्फ उनका शौक था तो वो चले गए। उनके पास पैसा था। दुनिया में आज भी कई लोग हैं जिन्हें खाना तक नहीं मिलता है तो मुझे लगता है कि अगर ज्यादा पैसा है तो उसे किसी अच्छे काम में लगाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारत में और भी कई अच्छी चीजें एक्सप्लोर करने के लिए मौजूद हैं। दूसरी तरफ अगर कोई किसी तरह की रिसर्च या जांच के लिए जाता है तो सोचा भी जा सकता है लेकिन सिर्फ समुद्र के अंदर 13,000 फीट पर पड़े टाइटैनिक के मलबे को देखने के लिए लोग करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं तो मैं पर्सनली इससे सहमत नहीं हूं।
इस सवाल के जवाब में निलोफर ने कहा कि पानी की गहराई के आधार पर दो मुख्य क्षेत्र हैं पहला फोटिक जोन और दूसरा एफोटिक जोन। फोटिक जोन पानी का ऊपरी हिस्सा (200 मीटर) होता है। वहीं, एफोटिक जोन 200 मीटर से अधिक गहरा पानी है। आप जितना गहराई में जाएंगे, पानी उतना ही गहरा होता जाएगा।
इस सवाल के जवाब में रेशमा निलोफर ने बताया कि वे लोग इतने ज्यादा दबाव के साथ कई घंटों तक पानी में रहे, जिसके कारण उनकी सबमरीन पर इसका काफी असर पड़ा होगा। टाइटन सबमरीन कार्बन फाइबर से बनी थी ना कि टाइटेनियम मैटल से, तो सबमरीन के बाहरी हिस्से पर अत्यधिक दबाव पड़ता है जिसे वो झेल नहीं पाते हैं और आखिर में उनमें इम्पलोड या एक्सप्लोड हो जाता है। अगर हम टाइटन सबमरीन की बात करें तो इसमें इम्प्लोड हुआ था।
इस सवाल के जवाब में रेशमा नाहा ने कहा कि टाइटैनिक का मलबा न्यूफाउंडलैंड के तट से लगभग 370 समुद्री मील (690 किलोमीटर) दूर दक्षिण-दक्षिणपूर्व में लगभग 12,500 फीट (3,800 मीटर) की गहराई पर स्थित है। यह दो मुख्य टुकड़ों में स्थित है। उन दोनों टुकड़ों में लगभग 2,000 फीट (600 मीटर) की दूरी है।
पिछले करीब एक साल से लगभग हर दिन, रेशमा निलोफर नाहा समंदर से एक छोटे पायलट जहाज पर समुद्र की लहरों को नाप रही हैं जहां कभी दिन के उजाले में और कभी गहरे अंधेरे में बड़े जहाजों में चढ़ना, जहाजों को चलाना, नेविगेट करना और बर्थिंग करना उनके इस पेशे का हिस्सा है। नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित भारत की पहली महिला रिवर पायलट ने न केवल तेज़ हवाओं, खराब मौसम में हर बाधा को पार किया है बल्कि समाज में लिंग-आधारित बाधाओं को भी सीधा चुनौती दी हैं।