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    जैव-विविधता पर गहराता संकट, यदि अब भी इसे रोका न गया तो विनाश अवश्यंभावी है

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Wed, 16 Sep 2020 08:57 AM (IST)

    जैव-विविधता का यह विशाल स्वरूप पारिस्थितिक-तंत्र को संतुलित रखने तथा मानव जीवन को अनुकूल बनाने में काफी मददगार साबित हुआ है।

    जैव-विविधता पर गहराता संकट, यदि अब भी इसे रोका न गया तो विनाश अवश्यंभावी है

    सुधीर कुमार। हाल में वल्र्ड वाइड फंड फॉर नेचर ने लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट-2020 जारी की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक बीते पांच दशकों में धरती की 68 फीसद जैव-विविधता नष्ट हो चुकी है, जबकि इसी अवधि के दौरान प्रत्येक 10 जैव-विविध प्रजातियों में से सात का विनाश हो गया। जैव-विविधता के गहराते संकट को लेकर यह एक चिंतित करने वाली रिपोर्ट है। यूं तो जैव-विविधता की प्रचुरता के लिहाज से भारत आदिकाल से ही एक संपन्न देश रहा है। मौटे तौर पर देश में पौधों की लगभग 45 हजार और जीवों की तकरीबन 91 हजार प्रजातियां मौजूद हैं।

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    जैव-विविधता का यह विशाल स्वरूप पारिस्थितिक-तंत्र को संतुलित रखने तथा मानव जीवन को अनुकूल बनाने में काफी मददगार साबित हुआ है। हालांकि असंतुलित आíथक विकास तथा जलवायु परिवर्तन की वजह से इनमें से पौधों और जीवों की कई प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं, जबकि कइयों का अस्तित्व खतरे में है। कुछ समय पहले आरटीआइ के जरिये जैव-विविधता प्राधिकरण से मिली जानकारी के मुताबिक, देश में जीवों की 148 तथा वनस्पतियों की 132 प्रजातियां यानी कुल 280 प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं। मानव समाज के लिए यह एक चेतावनी है। ऐसी अवस्था में मनुष्य भी अपना अस्तित्व खो देगा।

    जैव-विविधता से तात्पर्य धरती पर मौजूद जीवों और वनस्पतियों की विभिन्न प्रजातियों से है। जैव-विविधता के बिना धरती पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। सजीवों की विविधता ही धरती पर जीवन के लिए अनुकूल परिवेश का निर्माण करती है। हालांकि बढ़ती जनसंख्या, पर्यावरण प्रदूषण, दावानल तथा इंसानों के बढ़ते लालच की वजह से जैव-विविधता का बड़ी तेजी से क्षरण भी हो रहा है। जैव-विविधता का संरक्षण इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे मानव समुदाय का अस्तित्व जुड़ा है। आज जिस गति से पृथ्वी पर से पौधों और जीवों की प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं, उससे आने वाले समय में धरती पर बाधा-रहित जीवन यापन करना कतई आसान नहीं होगा। अत: जैव-विविधता को सहेजना राष्ट्रीय दायित्व है।

    स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र तथा जीवन अनुकूल परिवेश की स्थापना के लिए जैव-विविधता का होना बेहद जरूरी है, लेकिन जागरूकता के अभाव के कारण इसको कई स्तर पर विघटित किया जा रहा है। इसके संरक्षण के प्रति हमारी निष्क्रियता ठीक नहीं। हम अनेक स्तरों पर इसके संरक्षण के निमित्त प्रयास कर सकते हैं। मानवीय गतिविधियों पर लगाम लगाने के साथ इसके संरक्षण हेतु समाज में जागरूकता की अलख जगानी होगी, तभी हम जलवायु परिवर्तन के खतरे का सामना कर पाएंगे। जैव-विविधता में गिरावट एक गंभीर पर्यावरणीय मुद्दा है, जिस पर अतिशीघ्र ध्यान देने की जरूरत है।

    (लेखक बीएचयू में अध्येता हैं)