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मूनलाइटिंग के कानूनी और गैर कानूनी होने को लेकर छिड़ी बहस, नियमों के उल्लंघन में कंपनी कर सकती है कार्रवाई

सुप्रीम कोर्ट के वकील अशोक अरोड़ा ने कहा मूनलाइटिंग पेशेगत कदाचार तो है ही लेकिन टेक्नोलाजी और सीक्रेट शेयर करने पर आपराधिक कृत्य भी होगा। प्रशासनिक तौर पर संस्था के नियम आपको कुछ निश्चित चीजें करने से रोकते हैं तो नियमों के उल्लंघन में कंपनी कार्रवाई कर सकती है।

By Jagran NewsEdited By: Ashisha Singh RajputPublished: Fri, 28 Oct 2022 10:42 PM (IST)Updated: Fri, 28 Oct 2022 10:42 PM (IST)
इनफोसिस के पूर्व एचआर हेड मोहन दास पाई इसे महज सर्विस कांट्रेक्ट या एग्रीमेंट का उल्लंघन मानते हैं।

नई दिल्ली, माला दीक्षित। मूनलाइटिंग यानी एक नौकरी में रहते हुए दूसरी कंपनी के लिए काम करना आजकल आइटी सेक्टर में काफी चर्चा में है। कुछ कंपनियों ने मूनलाइटिंग पर अपने सैकड़ो कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है। ऐसे में मूललाइटिंग के कानूनी और गैर कानूनी होने को लेकर बहस छिड़ गई है। विशेषज्ञों की माने तो मून लाइटिंग सर्विस रूल का उल्लंघन या अनैतिक तो हो सकता है लेकिन अभी इसे नियमित करने या रोकने का कोई कानून नही है।

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पूर्व विधि सचिव पीके मल्होत्रा ने बताया

मूनलाइटिंग के कानूनी पहलू पर पूर्व विधि सचिव पीके मल्होत्रा कहते हैं कि कोई भी चीज कानूनी है या गैर कानूनी ये इस बात पर निर्भर करती है कि क्या कोई कानून है जो इसे नियमित या निषिद्ध करता है। अगर सरकार ने इस बारे में कोई कानून बनाया नहीं तो फिर उसके गैर कानूनी होने का सवाल कहां से आता है।

कामकाज के बारे में गोपनीयता

प्रशासनिक तौर पर देखा जाए तो संस्था के नियम आपको कुछ निश्चित चीजें करने से रोकते हैं तो नियमों के उल्लंघन में कंपनी आप पर कार्रवाई कर सकती है। प्रत्येक संस्थान अपने कामकाज के बारे में गोपनीयता बनाए रखना चाहता है। अगर कोई कर्मचारी दूसरी कंपनी में भी काम करता है तो पूरी संभावना होती है कि वह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जानते हुए या अनजाने में कुछ ऐसी जानकारी साझा कर सकता है जो उसे नहीं करनी चाहिए। ऐसा करना उस कंपनी के नियमों का उल्लंघन है।

मूनलाइटिंग के अनैतिक होने की बात पर मल्होत्रा कहते हैं कि अगर कंपनी ने स्पष्ट तौर पर इसकी मनाही नहीं की है और कर्मचारी दूसरा काम करता है तो मुद्दा नैतिकता और अनैतिकता का आता है। जब तक कंपनी विशेष तौर पर दूसरे काम की इजाजत नहीं देती तबतक इस तरह की प्रैक्टिस को हतोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि अगर कुछ भी न हो तो भी उस व्यक्ति की कार्य क्षमता तो प्रभावित होती ही है।

सर्विस कांट्रेक्ट या एग्रीमेंट का उल्लंघन

इनफोसिस के पूर्व एचआर हेड मोहन दास पाई इसे महज सर्विस कांट्रेक्ट या एग्रीमेंट का उल्लंघन मानते हैं। उनका कहना है कि एम्प्लायमेंट नियोक्ता और कर्मचारी के बीच एक कांट्रेक्ट है। अगर कांट्रेक्ट में यह नहीं लिखा है कि आप दूसरों के साथ काम कर सकते हैं या नहीं, तो कर्मचारी नौकरी के बाहर भी काम कर सकता है। लेकिन अगर एग्रीमेंट में लिखा है कि आप इस नौकरी में रहते किसी और के साथ काम नहीं करेंगे तो आप दूसरा काम नहीं कर सकते।

वे कहते हैं कि कांट्रेक्ट में सीधे तौर पर मनाही नहीं है और कर्मचारी दूसरा पार्ट टाइम काम करता है तो भी उसे ये ध्यान रखना होगा कि मूल कंपनी की इटलेक्चुअल प्रापर्टी या कोई उपकरण या सुविधा का उपयोग उसमें न हो और न ही मूल नौकरी के काम के घंटें में दूसरा काम होगा।

प्रतिस्पर्धी के साथ काम करना

पाई कहते हैं कि अभी कुछ कंपनियां कह रही हैं कि अगर आप नौकरी के घंटों के बाद दूसरी गैर प्रतिस्पर्धी कंपनी के साथ काम करना चाहते हो, तो हमारी मंजूरी लें फिर काम करें। ये एक बहुत ही उत्तम सल्यूशन है। फ्री टाइम में वह कुछ भी कर सकता है। लेकिन कुछ भी करने का मतलब प्रतिस्पर्धी के साथ काम करना या तय काम के घंटों में काम करना नहीं है। ये ब्रीच आफ एग्रीमेंट है, ब्रीच आफ ट्रस्ट है, चीटिंग है, अनैतिक है।मूनलाइटिंग के दंडनीय अपराध होने पर सुप्रीम कोर्ट के वकील अशोक अरोड़ा कहते हैं कि इसे आपराधिक कृत्य माना जाएगा कि नहीं ये बात मूनलाइटिंग की प्रकृति पर निर्भर करेगी।

मून लाइटिंग क्रिमनल या सिविल अपराध है

किस तरह की मून लाइटिंग है उस पर निर्भर करेगा कि अपराध क्रिमनल है या सिविल। जैसे अगर कोई मूल कंपनी की टेक्नलाजी या सिक्रेट दूसरी कंपनी के साथ शेयर करता है तो यह आपराधिक मामला है जो कि आइपीसी की धारा 409 के तहत ब्रीच आफ ट्रस्ट (विश्वास भंग) में आयेगा जिसमें 10 साल तक के कारावास की सजा हो सकती है। जैसे कि किसी बैंकर या एजेंट के द्वारा धोखा करना होता है जिसे विश्वास में चीजें दी जाती हैं।

लेकिन अगर कोई किसी और कंपनी में भी पार्ट टाइम काम करता है लेकिन पहली कंपनी की टेक्नेलाजी या सीक्रेट शेयर नहीं करता तो वह क्रिमिनल अपराध नहीं है सिर्फ सर्विस रूल का उल्लंघन है और कंपनी इसके लिए उसे दंडित कर सकती है। ये दीवानी मामला होता है।

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