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    फिर नंबर वन बने जागरण को सर्वे नामंजूर

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    Updated: Thu, 30 Jan 2014 12:49 AM (IST)

    देश के सभी समाचार पत्रों के बीच दैनिक जागरण ने लगातार 26वीं बार पहले पायदान पर अपना कब्जा बरकरार रखा है। हालांकि, आइआरएस के जून-दिसंबर, 2013 सर्वेक्षण के मुताबिक देश के ज्यादातर अखबारों की रीडरशिप घटी है, लेकिन बावजूद इसके दैनिक जागरण को देश का नंबर एक अखबार घोषित किया गया है।

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    नई दिल्ली, जेएनएन । देश के सभी समाचार पत्रों के बीच दैनिक जागरण ने लगातार 26वीं बार पहले पायदान पर अपना कब्जा बरकरार रखा है। हालांकि, आइआरएस के जून-दिसंबर, 2013 सर्वेक्षण के मुताबिक देश के ज्यादातर अखबारों की रीडरशिप घटी है, लेकिन बावजूद इसके दैनिक जागरण को देश का नंबर एक अखबार घोषित किया गया है।

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    आइआरएस की ओर से सर्वेक्षण एजेंसी एसी नील्सन ने यह जो सब्जबाग दिखाया था कि वह कंप्यूटरीकृत वैज्ञानिक आधार पर सर्वे करेगी उस पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। यही कारण है कि दैनिक जागरण सर्वेक्षण की प्रक्रिया और उसके नतीजों का विरोध करता है। इस सर्वेक्षण में रीडरशिप को लेकर बहुत विसंगतियां है और वह सर्कुलेशन की वास्तविकता को नकारता है, जबकि सर्कुलेशन ही रीडरशिप का मूल आधार और उसकी आत्मा होता है।

    आइआरएस-2013 के सर्वेक्षण में जो वास्तविक स्थिति दिखाने की कोशिश की गई है वह हकीकत से बड़ी हद तक दूर है। सर्वेक्षण के नतीजों ने अखबारों के सर्कुलेशन को हाशिये पर ले जाने का काम किया है। सर्वेक्षण के लिए जो पद्धति अपनाई गई है उस पर सवालिया निशान इसलिए लग गए हैं, क्योंकि वह इस नतीजे पर पहुंचता है कि किसी शहर में एक अखबार की एक प्रति को तो 10-12 लोग पढ़ते हैं, लेकिन दूसरे अखबार की एक प्रति को महज दो-तीन लोग और वह भी उसे जो उस शहर का शीर्ष अखबार है। बतौर उदाहरण कानपुर में दैनिक जागरण की एक प्रति को पढ़ने वालों की संख्या दो ही बताई गई है। वहीं प्रतिद्वंद्वी अखबार की एक प्रति को पढ़ने वालों की संख्या 11 बताई गई है। यही विसंगति वाराणसी में भी है। यहां दैनिक जागरण की एक प्रति पढ़ने वालों की औसत संख्या 2.6 बताई गई है और प्रतिद्वंद्वी अखबार की एक प्रति को 4.8 पाठक दिए गए हैं। सभी राज्यों के कुछ इलाकों में इसी तरह के हास्यास्पद आकलन किए गए हैं।

    कई जगहों पर निकटतम प्रतिद्वंद्वी अखबार वहां के अग्रणी अखबार का महज 30 फीसद है, लेकिन आइआरएस ने उन जगहों पर प्रतिद्वंद्वी को नंबर एक बता दिया है। इन्हीं विसंगतियों के चलते सर्वेक्षण के नतीजे सवालों के घेरे में आ गए हैं। दैनिक जागरण ने सर्वेक्षण के नतीजों पर सख्त एतराज जताया है।

    पढ़ें: जागरण अखबार ही नहीं उपहार भी

    दैनिक जागरण का कहना है कि आइआरएस, 2013 में उसे भले ही नंबर एक अखबार घोषित किया गया हो, लेकिन इसके बावजूद वह इसकी अनदेखी नहीं कर सकता कि यह मौजूदा समय का सबसे ज्यादा खामियों भरा सर्वेक्षण है। दैनिक जागरण सच्चाई के साथ है और इसी कारण इस सर्वेक्षण से असहमत है।

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