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    कैसे सिर्फ केरल तक सिमट कर रह गई CPI, 100 साल का राजनीतिक सफर

    Updated: Fri, 26 Dec 2025 08:33 PM (IST)

    भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) 26 दिसंबर को अपना शताब्दी वर्ष मना रही है। 1925 में कानपुर में स्थापित यह पार्टी कभी राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी थी, ल ...और पढ़ें

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     CPI के 100 साल का राजनीतिक सफर

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआइ) 26 दिसंबर को अपना शताब्दी वर्ष मना रही है। सीपीआइ की स्थापना 1925 में कानपुर में आयोजित सम्मेलन से हुई थी। देश में कभी सड़क से लेकर संसद तक में प्रभावी भूमिका निभाने वाली सीपीआइ की मौजूदगी वर्तमान में वैचारिक स्तर पर ही दिखती है।

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    चुनावी राजनीति में उसकी भूमिका सिर्फ केरल तक सीमित हो गई है, जहां उसकी वामदलों के साथ गठबंधन की सरकार है। आइये नजर डालते हैं पार्टी के 100वर्ष के सफर पर।

    इस वजह से कानपुर में पड़ी नींव

    1925 में कानपुर में एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय लाहौर, बंबई (अब मुंबई), कलकत्ता (अब कोलकाता) और मद्रास में सक्रिय भारतीय कम्युनिस्ट समूहों ने लिया।
    कानपुर में औद्योगिक श्रमिकों की अच्छी खासी संख्या थी। उसी समय कानपुर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन भी आयोजित हो रहा था।

    इसके अलावा, कानपुर में ही ब्रिटिश सरकार ने 1923 में भारतीय कम्युनिस्टों के खिलाफ कानपुर बोल्शेविक षड्यंत्र का मामला दर्ज किया था। तीन कम्युनिस्ट नेताओं एस वी घाटे, एसए डांगे और मुजफ्फर अहमद को चार साल की सजा सुनाई गई थी।

    कभी वैश्विक राजनीति में था दबदबा

    भारत में कुछ ही राजनीतिक दल ऐसे हैं जो सीपीआइ के शुरूआती वर्षों जितनी महत्वपूर्ण विरासत का दावा कर सकते हैं। पार्टी ने 1957 में वैश्विक राजनीतिक इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया, जब ईएमएस नंबूथिरीपाद ने केरल में विश्व की पहली लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई कम्युनिस्ट सरकार का नेतृत्व किया। इस क्षण ने सीपीआइ को संसदीय वामपंथी राजनीति में अग्रणी बना दिया, जिसमें विचारधारा और चुनावी वैधता का अनूठा संगम था।

    वैचारिक विभाजन और सीपीआइ (एम) का उदय

    1964 के वैचारिक विभाजन के बाद स्थिति पूरी तरह बदल गई, जिसके परिणामस्वरूप सीपीआइ (एम) का गठन हुआ। केरल में, सीपीआइ (एम) लगातार आगे बढ़ती हुई प्रमुख वामपंथी शक्ति के रूप में उभरी, जबकि सीपीआइ को अपनी संगठनात्मक गहराई और राजनीतिक प्रभाव को बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ा।

    इसके बावजूद, सीपीआइ ने बदलते गठबंधनों के माध्यम से केरल की सत्ता राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना जारी रखा। सी अच्युत मेनन के नेतृत्व में, पार्टी ने 1969 और फिर 1970 में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकारें बनाईं।

    कांग्रेस से अलगाव

    1980 में एक निर्णायक मोड़ आया, जब सीपीआइ ने कांग्रेस से संबंध तोड़कर वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) के साथ मजबूती से गठबंधन कर लिया और उसकी दूसरी सबसे बड़ी घटक पार्टी बनकर उभरी। यह स्थिति आज तक बरकरार है।

    पार्टी वर्तमान में केरल में सत्तारूढ़ एलडीएफ का हिस्सा है, जिसके पास चार कैबिनेट पद और उपाध्यक्ष का पद है, और तमिलनाडु में डीएमके के नेतृत्व वाले गठबंधन के घटक के रूप में सत्ता में बनी हुई है।

    लगातार कम होता जा रहा है प्रभाव

    राष्ट्रीय स्तर पर, सीपीआइ का प्रभाव लगातार कम होता जा रहा है। वर्तमान में लोकसभा और राज्यसभा में इसके दो-दो सांसद, तीन राज्यों में लगभग 20 विधायक और विधान परिषदों में नाममात्र की उपस्थिति है। केवल केरल, तमिलनाडु और मणिपुर में राज्य पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त सीपीआइ काफी कमजोर हो गई है।

    (न्यूज एजेंसी आईएएनएस के इनपुट के साथ)