प्रकृति से मिला उत्तम उपहार है तांबा, संसार मे मौजूद सभी धातुओं में से है सबसे पवित्र, जानें क्यों
सदियों से भारतीय जीवनशैली में तांबे का अपना स्थान रहा है। कोविड-19 में जब हम भारतीयों की जीवनशैली को सर्वोचित माना गया तो इस तारीफ में तांबे के गुणों की भी हिस्सेदारी है।
रेणु जैन। भारतीय जीवन में सनातन काल से तांबे से बने विभिन्न उपकरणों या सामानों का उपयोग चला आ रहा है। तांबा धार्मिक कार्यों में शुभ माना जाता है। प्राचीन काल से ही मंदिरों में तांबे की घंटियां मौजूद रही हैं। रसोई के बर्तनों से लेकर पूजा-पाठ में कांसे की थाली, ताम्रपत्र (जिस पर धार्मिक श्लोक अंकित होते थे), तांबे की छोटी-बड़ी मूर्तियों आदि का प्रयोग किया जाता रहा है। कुल-मिलाकर तांबा मनुष्यों के उपयोग में सभ्यता के प्रारंभ से लेकर आज तक कई जगह उपयोग में आता रहा है।
हमेशा रहे सदाबहार
तांबा प्रकृति द्वारा मनुष्यों को मिला उत्तम उपहार है। संसार मे मौजूद सभी धातुओं में से इसे सबसे पवित्र माना गया है इसीलिए इसे सूर्य ग्रह की धातु माना जाता है। फिलहाल कोरोना वायरस के खौफ ने पूरी दुनिया को डरा रखा है। तब सभी ने माना कि तांबे के बर्तन में रखे पानी व इसमें भोजन करना सेहत के लिए फायदेमंद होगा। दरअसल, तांबे में तमाम प्रकार के बैक्टीरिया नष्ट करने की क्षमता होती है। इसके अलावा तांबा सैकड़ों वर्षों तक उसी तरह काम करता है जैसा पहले दिन करता था। आयुर्वेद में भी कहा जाता है कि तांबे के बर्तनों का उपयोग करने पर ये बर्तन बार-बार हमारी त्वचा के संपर्क में आते हैं, जो हमें कई बीमारियों से बचाते हैं। जो लाभ स्वर्ण भस्म, रजत भस्म के प्रयोग से मिलता है, वही लाभ तांबे के लगातार संपर्क में रहने से मिलता है। प्राचीन काल से भारतीय रसोई में इन बर्तनों का बहुत महत्व रहा है।
कई रोगों को रखे दूर
तांबे के बर्तनों में रखा पानी अमृत समान माना जाता है। कई तरह के घातक जीवाणुओं और विषाणुओं को मारने वाले इन बर्तनों में भोजन करना आरोग्यप्रद रक्त व त्वचा रोगों से बचाव करने वाला बताया गया है। प्लीहा तथा यकृत के रोगों के लिए भी तांबा रामबाण है। एक विशेष बात यह भी है कि तांबे के बने बर्तनों में भोजन करना रुचि, बुद्धि, मेधावर्धक और सौभाग्य प्रदाता बताया जाता है। एक शोध के अनुसार, तांबा इम्यून सिस्टम को मजबूत करने तथा नई कोशिकाओं के निर्माण में भी मदद करता है।
इतिहास भी है पुराना
भारत मे तांबे का भंडार है लेकिन मिस्र के इतिहास में तांबे के इस्तेमाल का जिक्र 3200 ईसा पूर्व से मिलता है। चीन में दिल तथा पेट के इलाज के लिए तांबे के सिक्कों के इस्तेमाल का भी उल्लेख मिलता है। वहां सदियों से पेचिश तथा हैजा जैसी बीमारियों के इलाज में सिक्कों का उपयोग होता आया है। कई समुदायों में आज भी तांबे के सिक्के, बर्तनों और सजावट के सामानों को शुभ माना जाता है।
कुछ रस्में ऐसी भी
कई समुदायों में वधु पक्ष वाले वर पक्ष को तांबे के बड़े बर्तन में धान या मिठाई भरकर देते हैं। तो वहीं, कुछ समुदायों में तोहफे के रूप में तांबे की परात, गिलास, लोटा, कटोरा व घड़ा जैसे बर्तन भेंट किए जाते हैं, जिसे शुभ माना जाता है। एक परंपरा यह भी है कि कन्या जब ससुराल पहुंचती है तथा गृह प्रवेश करती है तो उस समय तांबे की थाली में कुमकुम-चावल से आरती तथा तिलक लगाया जाता है। अपने विशेष कारणों व गुण के कारण वर्तमान में इन रस्मों का चलन फिर से लौटने लगा है। अब तो नए-नए डिजाइनों में तांबे के बर्तनों के सेट मिलने लगे हैं। यही नहीं, अब कई परिवारों में ये बर्तन नई साज-सज्जा के साथ डाइनिंग टेबल की शोभा बढ़ाने लगे हैं। तांबे से बनी मूर्तियों का प्रचलन भी घर के हॉल तथा गार्डन की खूबसूरती बढ़ाने लगी हैं।
न्यू यॉर्क की स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी अमेरिकन क्रांति के दौरान फ्रांस और अमेरिका की दोस्ती का प्रतीक मानी जाती है। 1886 में फ्रांस ने यह मूर्ति अमेरिका को दी थी। रोचक बात यह है कि यह विश्वप्रसिद्ध मूर्ति भी तांबे की ही बनी है।
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