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    मतांतरण का मकड़जाल: खुद को पीड़ित बताकर बच नहीं सकते मतांतरित लोग, गुजरात हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी 

    Updated: Fri, 10 Oct 2025 06:00 AM (IST)

    गुजरात हाईकोर्ट ने कहा है कि मतांतरण का शिकार होने का दावा करने वाले लोग, यदि बाद में दूसरों का मतांतरण कराते हैं तो उन पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। कोर्ट ने यह टिप्पणी मतांतरण के आरोपितों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की। याचिकाकर्ताओं ने खुद को मतांतरण का शिकार बताया था। कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी और कहा कि उन पर प्रथम दृष्टया अपराध बनता है।

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    गुजरात हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी। (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। गुजरात हाईकोर्ट ने कहा है कि मतांतरण का शिकार होने का दावा करने वाले लोग अगर बाद में दूसरों का मतांतरण कराने की कोशिश करते हैं तो उन पर भी कानूनी कार्रवाई हो सकती है।

    जस्टिस निरजर देसाई की अदालत ने एक अक्टूबर को कई व्यक्तियों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि ''दूसरों को इस्लाम अपनाने के लिए प्रभावित करने, दबाव डालने और प्रलोभन देने'' के उनके कृत्य के कारण उनके खिलाफ प्रथम ²ष्टया अपराध बनता है। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि वे मूल रूप से हिंदू थे और अन्य व्यक्तियों द्वारा उनका मतांतरण किया गया था। इसलिए वे स्वयं मतांतरण के शिकार थे, न कि आरोपित।

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    आरोपित लोगों ने खटखटाया था हाई कोर्ट का दरवाजा

    कोर्ट ने कहा कि वे ''अन्य व्यक्तियों पर इस्लाम अपनाने के लिए दबाव डालने और उन्हें प्रलोभन देने'' में शामिल थे, जो प्रथम दृष्टया उनके विरुद्ध अपराध बनता है। मतांतरण कराने के आरोपित कई लोगों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और तर्क दिया था कि वे स्वयं मतांतरण के शिकार थे और उनके विरुद्ध दर्ज प्राथमिकी (एफआईआर) गलत थी। उन्होंने भरूच जिले के आमोद थाने में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद करने की मांग की।

    याचिका खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने क्या कहा था?

    उनकी याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा, ''जैसा कि प्राथमिकी और गवाहों के बयानों से देखा जा सकता है, अन्य व्यक्तियों को इस्लाम अपनाने के लिए प्रभावित करने, दबाव डालने और लुभाने के उनके कृत्य के कारण कोर्ट का विचार है कि पीड़ितों का मतांतरण प्रथम दृष्टया अपराध का संकेत देता है। इसलिए, यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि जिन व्यक्तियों को आरोपित बनाया गया है, जो मूल रूप से हिंदू हैं और बाद में इस्लाम अपना लिया, उन्हें प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों और जांच के दौरान आरोप-पत्र के रूप में एकत्रित सामग्री के आधार पर पीड़ित कहा जा सकता है।''

    कोर्ट भारतीय दंड संहिता की धारा 120 (बी) (आपराधिक षड्यंत्र), 153 (बी)(1)(सी) (विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना) और 295 (ए) (धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य) के तहत आरोपित कई व्यक्तियों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था।

    शिकायतकर्ता ने क्या लगाया था आरोप?

    एक शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि तीन व्यक्तियों ने उसके अंगूठे का निशान लेकर उसका मतांतरण करवाया और एक आरोपित को इस काम के लिए आर्थिक मदद मिल रही थी। प्राथमिकी के अनुसार, आरोपित बनाए गए तीन व्यक्तियों ने 37 हिंदू परिवारों के लगभग 100 लोगों को पैसे और अन्य प्रलोभन देकर इस्लाम कबूल करवाया था। जब शिकायतकर्ता ने विरोध किया तो उसे धमकाया गया, जिसके बाद उसने पुलिस से संपर्क किया। नौ लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था, जिसमें कुल 16 लोगों को आरोपित बनाया गया था। इनमें से कुछ ने प्राथमिकी रद करने के लिए हाईकोर्ट का रुख किया था।

    एक अन्य याचिका में याचिकाकर्ता (जो विदेशी नागरिक है) पर मतांतरण गतिविधियों के लिए धन मुहैया कराने का आरोप लगाया गया था। हाईकोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया उसके खिलाफ भी मामला बनता है।

    कोर्ट ने कहा, ''याचिकाकर्ता को कोई राहत नहीं दी जा सकती, खासकर तब जब वह एक विदेशी नागरिक होने के बावजूद अपराध दर्ज होने से पहले लगभग 25 बार भारत आ चुका है और प्राथमिकी दर्ज होने के बाद भी वह जांच में सहयोग नहीं कर रहा है। हमें इस याचिका पर विचार करने का कोई कारण नहीं दिखता।''

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