मार्फिन से बनी दवाओं पर सख्ताी, कैंसर और एड्स पीड़ित रोगियों के लिए बनी रोड़ा
असहनीय दर्द से कराहते मरीजों की बढ़ती तादाद एक नया अंतरराष्ट्रीय गतिरोध बन गई है। भारत सहित दुनिया के अधिकांश देशों में कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों के गंभीर चरण पर पहुंच चुके इन मरीजों को यादातर मामलों में मॉर्फीन (अफीम के अर्क से बनने वाले) आधारित
नई दिल्ली। असहनीय दर्द से कराहते मरीजों की बढ़ती तादाद एक नया अंतरराष्ट्रीय गतिरोध बन गई है। भारत सहित दुनिया के अधिकांश देशों में कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों के गंभीर चरण पर पहुंच चुके इन मरीजों को यादातर मामलों में मॉर्फीन (अफीम के अर्क से बनने वाले) आधारित दवाएं नहीं मिल रहीं। ऐसे में ‘अंतरराष्ट्रीय औषधि नीति आयोग’ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इनको लेकर बेवजह की सख्ती बंद कर इनको अनावश्यक दर्द से मुक्ति दिलाएं।
मलेशिया की राजधानी क्वालालंपुर में रविवार को शुरू हुए ‘इंटरनेशनल हार्म रिडक्शन कांफ्रेंस’ में ‘अंतरराष्ट्रीय औषधि नीति आयोग’ आज अपनी रिपोर्ट पेश करेगा। आयोग के सदस्यों में शामिल आनंद ग्रोवर ने ‘दैनिक जागरण’ से फोन पर बातचीत में कहा, ‘यह स्थिति खतरनाक है। मॉर्फीन आधारित 92 फीसदी दवाओं का उपयोग दुनिया की सिर्फ 17 फीसदी आबादी के लिए हो रहा है। भारत जैसे अधिकांश देशों में इसकी जरूरत वाले मरीजों को यादातर यह उपलब्ध नहीं हो पा रही।’ भारत में ऐसी दवाओं की बिक्री की इजाजत को थोड़ा आसान बनाने के लिए पिछले साल संसद में नारकोटिक्स कानून (नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रापिक सब्सटेंसेज) में बदलाव किया गया है। लेकिन गृह मंत्रलय ने इस संबंध में अभी नियमों को अधिसूचित नहीं किया है।
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स्वास्थ्य संबंधी मामलों में संयुक्त राष्ट्र के पूर्व विशेष रिपोर्टर ग्रोवर कहते हैं, ‘भारत के लिए सिर्फ कानून में संशोधन काफी नहीं है। इसके बावजूद कोई कंपनी इन दवाओं को बनाने के लिए सामने आएगी, यह कहना मुश्किल है। इनको लेकर भारी भय का माहौल है। पंजाब में पिछले दिनों भी पुलिस ने दो मनोचिकित्सकों तक को गिरफ्तार कर लिया। ऐसे में कौन मुसीबत मोल लेगा?’
भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआइ) कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि न तो इन दवाओं को बनाना मुश्किल है और न ही महंगा। लेकिन नियम इस तरह बनाए गए हैं, जिनमें जरूरतमंद मरीजों को तो ये नहीं मिल पाते। मगर गैरकानूनी रूप से लोग इनका खूब उपयोग कर रहे हैं। डब्लूएचओ का अनुमान है कि इन दवाओं के उपलब्ध नहीं होने से दुनियाभर में कई करोड़ लोग हर वर्ष असहनीय दर्द का शिकार होते हैं।
अगले वर्ष संयुक्त राष्ट्र आम सभा का विशेष सत्र दवाओं के विषय पर ही बुलाया जाना है। अंतरराष्ट्रीय औषधि नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस मौके का उपयोग इस अंतरराष्ट्रीय गतिरोध की पहचान करने के लिए किया जा सकेगा और साथ ही इन दवाओं को मरीजों तक पहुंचाने की महत्वाकांक्षी योजना पर काम भी शुरू हो सकेगा। संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान और ब्राजील, स्विटजरलैंड, कोलंबिया सहित कई देशों के पूर्व राष्ट्राध्यक्ष अंतरराष्ट्रीय औषधि आयोग के सदस्य हैं। आयोग ने अपनी रिपोर्ट ‘अनावश्यक दर्द व पीड़ा का अंतरराष्ट्रीय गतिरोध’ में कहा है कि इन दवाओं का उपलब्ध नहीं होना अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों और औषधि नियंत्रण कानूनों का उल्लंघन है।
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