कंसोर्टियम ने एनजीटी को बताए गंगा सफाई विफलता के कारण
कंसोर्टियम ने गुरुवार को कहा कि अधिकरणों की बहुलता, राज्य सरकारों से सहायता में कमी और निगरानी के अभाव के चलते यह विफल हुआ।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सात आइआइटी के कंसोर्टियम ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (एनजीटी) को गंगा सफाई की विफलता के कारण बताए। कंसोर्टियम ने गुरुवार को कहा कि अधिकरणों की बहुलता, राज्य सरकारों से सहायता में कमी और निगरानी के अभाव के चलते यह विफल हुआ।
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कंसोर्टियम ने यह बात कही। पीठ में न्यायमूर्ति यूडी साल्वी भी सदस्य हैं। एनजीटी ने गंगा कार्य योजना-1 और 2 की विफलता के कारणों के बारे में विशेषज्ञ समिति से पूछा था। आइआइटी बांबे, दिल्ली, गुवाहाटी, कानपुर, खड़गपुर, मद्रास और रुड़की के कंसोर्टियम को गंगा नदी घाटी प्रबंधन (जीआरबीएम) कार्यक्रम को अंतिम रूप देने का काम सौंपा गया था।
कंसोर्टियम के कोऑर्डिनेटर आइआइटी कानपुर के प्रोफेसर विनोद तारे ने पीठ से कहा कि नमामि गंगे कार्यक्रम को जानकारी के द्वारा चलाया जाना चाहिए न कि केवल अनुभूति से। इसके लिए राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई अधिकरण हैं। सरकार के विभिन्न अंगों में प्रशासनिक इच्छा और समन्वय का अभाव है। एनजीटी ने पूछा कि क्या कंसोर्टियम ने स्वतंत्र रूप से गंगा प्रदूषण पर डाटा तैयार किया है। इस पर तारे ने कहा कि अधिकतर सूचना राज्य की विभिन्न संस्थाओं से लिये गए। उन्होंने कहा कि डाटा का सत्यापन नहीं किया गया। इस पर एनजीटी ने कहा कि अक्सर सरकारी डाटा गलत पाए जाते हैं।
तारे ने कहा कि गंगा पुनरुद्धार से जुड़े अधिकारियों और नौकरशाहों पर परियोजनाओं को लागू करने का हमेशा दबाव रहता है क्योंकि उनका कार्यकाल सीमित होता है। आइआइटी दिल्ली के प्रोफेसर एके गोसेन ने विफलता के लिए राज्य सरकारों की सहायता में कमी को जिम्मेदार बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि जब भी उनसे जानकारी मांगी जाती तो वे फाइलें देखने को कहते। हमारे बीच एकतरफा बातचीत होती था। हमने मंत्रालयों को सुझाव और सिफारिशें भेजीं लेकिन उन्होंने हमें कोई फीडबैक नहीं दिया।
आइआइटी कंसोर्टियम ने गंगा नदी घाटी प्रबंधन योजना 2015 पर रिपोर्ट पिछले साल मार्च में सरकार को सौंपी थी। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 2010 में कंसोर्टियम को यह योजना तैयार करने की जिम्मेदारी दी थी।
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