'सत्ता में बैठे लोगों के लिए धर्मनिरपेक्षता अपमानजनक बन गई है', सोनिया ने बताया लोकतंत्र के लिए क्यों जरूरी है सेक्युलरिज्म
कांग्रेस पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मंगलवार को एक लेख में केंद्र की भाजपा सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता को भारत के लोकतंत्र का मूलभूत स्तंभ बताया। साथ ही उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्ष शब्द का इस्तेमाल अब सत्ता में बैठे लोगों द्वारा अपमानजनक के रूप में किया जा रहा है। इसकी वजह से समाज में ध्रुवीकरण बढ़ रहा है।
पीटीआई, तिरुवनंतपुरम। कांग्रेस पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मंगलवार को एक लेख में केंद्र की भाजपा सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता को भारत के लोकतंत्र का मूलभूत स्तंभ बताया। साथ ही उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्ष शब्द का इस्तेमाल अब सत्ता में बैठे लोगों द्वारा 'अपमानजनक' के रूप में किया जा रहा है। इसकी वजह से समाज में ध्रुवीकरण बढ़ रहा है।
सोनिया गांधी ने मनोरमा ईयरबुक 2024 के लिए लिखे गए लेख में कहा, "वे कहते हैं कि'लोकतंत्र' के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन साथ ही वह लोग लोकतंत्र के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए सुरक्षा उपायों को कमजोर करते हैं। हमारे देश को सद्भाव की ओर ले जाने वाले रास्तों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है और इसके परिणाम पहले से ही देखे जा रहे हैं। समाज में ध्रुवीकरण बढ़ा है।"
लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता आपस में जुड़े हुए हैं- सोनिया
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता आपस में इस तरह से जुड़े है, जैसे एक पटरी पर दो ट्रेन और यह मौजूदा सरकार को एक सामंजस्यपूर्ण समाज का मार्गदर्शन करते हैं।
हम सभी इन शब्दों से परिचित
पूर्व कांग्रेस प्रमुख ने कहा, "हम सभी इन शब्दों से परिचित हैं, जिनका सामना हम अपनी बहसों, भाषणों, नागरिक शास्त्र की पाठ्यपुस्तकों और संविधान की प्रस्तावना में करते हैं। इससे परिचित होने के बावजूद इन अवधारणाओं के पीछे के गहरे अर्थ अक्सर स्पष्ट नहीं होते हैं।"
उन्होंने कहा, "इन शब्दों की स्पष्ट समझ हर किसी की नागरिक को भारत के इतिहास, वर्तमान समय की चुनौतियों और भविष्य के रास्ते को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगी।"
महात्मा गांधी ने 'सर्व धर्म सम भाव' में बताया धर्मनिरपेक्षता
सोनिया गांधी कहा कि धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या कई तरीकों से की जा सकती है, लेकिन भारत के लिए सबसे प्रासंगिक अर्थ वह है जो महात्मा गांधी ने अपने प्रसिद्ध शब्द 'सर्व धर्म सम भाव' में बताया है।
नेहरू भारत के बहु-धार्मिक समाज होने के प्रति सचेत थे
उन्होंने कहा, "गांधीजी सभी धर्मों की एकता को समझते थे। जवाहरलाल नेहरू भारत के एक बहु-धार्मिक समाज होने के प्रति गहराई से सचेत थे, इसलिए उन्होंने एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना के लिए लगातार प्रयास किया।"
उन्होंने यह भी कहा कि डॉ. बी आर अंबेडकर के नेतृत्व में भारत के संविधान निर्माताओं ने एक अद्वितीय धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र का निर्माण किया और इस विचार को विकसित किया और सरकार पर लागू किया।
धर्मनिरपेक्ष सद्भाव और समृद्धि को बढ़ावा देता है
लोकसभा सांसद ने कहा, "सरकार सभी धार्मिक मान्यताओं की सुरक्षा करती हैं। इनके पास अल्पसंख्यकों के कल्याण की रक्षा करने का भी विशेष प्रावधान हैं। भारतीय धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र का सिद्धांत समाज के सभी विविध समूहों के बीच सद्भाव और समृद्धि को बढ़ावा देना है।
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