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    क्या भारत में बढ़ने वाला है जल प्रलय का खतरा? मौसम वैज्ञानिकों को भी चकमा दे रहा मानसून; जानिए क्या कहते हैं आंकड़े

    Updated: Mon, 18 Aug 2025 11:30 PM (IST)

    इस मानसून में जम्मू-कश्मीर हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में बादल फटने और बाढ़ की घटनाओं ने पहाड़ों पर भारी बारिश के खतरे को उजागर किया है। मौसम विज्ञानियों के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं जिनका पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है। बारिश कम होने पर भी तबाही अधिक हो रही है।

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    क्या भारत में बढ़ने वाला है जल प्रलय का खतरा?

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इस मानसून में हिमालयी राज्यों जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में बादल फटने, अचानक बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं ने एक बार फिर पहाड़ों पर कम समय के लिए भारी बारिश के खतरे को उजागर कर दिया है। इसमें यह भी संकेत मिलता है कि 'सामान्य' श्रेणी में मौसमी बारिश से ये अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि बादल फटने या अचानक बाढ़ की घटना नहीं होगी।

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    मौसम विज्ञानियों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते इस तरह के मामलों के बढ़ने की आशंका है। इनका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है। हिमालयी क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के हिसाब से काफी संवेदनशील है और आनेवाले वर्षों में आपदा की घटनाएं बढ़ने का खतरा बना रहेगा।

    बारिश सामान्य से कम, तबाही भयंकर

    मौसम विभाग के जिलावार बारिश के आंकड़ों पर गौर करें तो काफी विरोधाभासी तथ्य सामने आए हैं। तमाम जिलों में जहां भयावह बादल फटने या अचानक बाढ़ के मामले आए हैं, वहां सामान्य या सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई है। जम्मू डिवीजन में किश्तवाड़ और कठुआ और उत्तराखंड में उत्तरकाशी इसके उदाहरण हैं।

    जलवायु परिवर्तन से घटनाएं और बढ़ेंगी स्काईमेट वेदर के मौसम विज्ञान एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के उपाध्यक्ष महेश पलावत कहते हैं कि अगस्त मानसून का चरम महीना होता है, ऐसे में भारी बारिश असामान्य नहीं है। लेकिन कम होती खेती की जमीन, वनों की कटाई और अस्थिर ढलानों के कारण 50-60 मिमी की बारिश भी जलप्रलय जैसा आभास देती है।

    और बढ़ेंगी ऐसी घटनाएं- मौसम वैज्ञानिक

    उन्होंने चेतावनी दी कि वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण खराब मौसम की घटनाएं और बढ़ेंगी। अस्थिर ग्लेशियर और झीलों की बढ़ती संख्या से बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है। हाई रिजाल्यूशन वाले पूर्वानुमान उपकरणों की जरूरत आइआइटी कानपुर के कोटक स्कूल आफ सस्टेनेबिलिटी के डीन प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी ने कहा कि हिमालयी क्षेत्र पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र है और एक खास तरह का पैटर्न उभर रहा है। केवल औसत वर्षा के आंकड़े किसी चरम घटना का संकेत नहीं दे सकते।

    उन्होंने कहा कि पर्वतीय वर्षा और आंशिक रूप से पिघले ग्लेशियरों के कारण झीलें और जल निकाय अचानक फटने के लिए संवेदनशील हो गए हैं, जिससे बाढ़ आ सकती है। इसके लिए हाई रिजाल्यूशन वाले पूर्वानुमान उपकरण समय की सख्त जरूरत है। उन्होंने कहा कि तापमान में प्रत्येक डिग्री की वृद्धि के साथ वायुमंडल की नमी धारण करने की क्षमता 7 प्रतिशत बढ़ जाती है। ऊंचे बादल जब पर्वतीय भूभाग से बाहर नहीं निकल पाते हैं तो कम समय में एक छोटे से क्षेत्र में भारी बारिश कर सकते हैं।

    क्या होता है बादल फटना?

    मौसम विज्ञानियों के मुताबिक 20-30 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में घंटे भर के अंदर 100 मिमी से ज्यादा बारिश को बादल फटना कहा जाता है। ऐसी घटनाओं का सटीक पूर्वानुमान लगाना लगभग असंभव है।

    जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में अब तक केवल 86.5 मिमी बारिश हुई है, जबकि सामान्य बारिश 301.5 मिमी होती है, यानी 71 प्रतिशत की कमी। इसके बावजूद किश्तवाड़ इस साल सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में से है। कठुआ में इस मानसून में अब तक 854.6 मिमी बारिश दर्ज की गई है, जो सामान्य 898.6 मिमी से 5 प्रतिशत कम है। 17 अगस्त को बादल फटने से अचानक बाढ़ और भूस्खलन हुआ।

    उत्तराखंड के उत्तरकाशी में लगभग 'सामान्य' मौसमी वर्षा दर्ज की गई है, जो औसत से लगभग 3 प्रतिशत अधिक है। हालांकि, 5 अगस्त को ऊपरी खीर गंगा में बादल फटने से मची तबाही। जुलाई के अंत में रुद्रप्रयाग में केदारघाटी के कुछ हिस्सों में बादल फटने से तबाही। इस मानसून सीजन में अब तक जिले में 999.2 मिमी बारिश दर्ज की गई है, जो सामान्य 1,125.9 मिमी से 11 प्रतिशत कम है।

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