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    CJI करेंगे EVM सत्यापन मामले की सुनवाई, नोएडा में अधिक मुआवजे पर शीर्ष अदालत नाराज; SIT गठित की

    देश की शीर्ष अदालत ने नोएडा के जमीन मालिकों को अधिक मुआवजा देने के मामले में एसआईटी का गठन कर दिया है। जांच के बाद एसआईटी दो महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करेगी। वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने टीडीएस प्रणाली खत्म करने पर विचार करने से इंकार कर दिया है। अदालत ने कहा कि कई देशों में यह प्रथा लागू है।

    By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Fri, 24 Jan 2025 08:18 PM (IST)
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    सुप्रीम कोर्ट में आज कई मामलों की हुई सुनवाई।

    पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कन्नड़ अभिनेता दर्शन की जमानत को रद करने से इंकार कर दिया है। वहीं हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस्तेमाल की गई ईवीएम के सत्यापन की मांग करने वाली कांग्रेस नेताओं की याचिका को स्थगित कर दिया है। अब इस मामले की सीजेआई सुनवाई करेंगे।

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    नोएडा में अधिक मुआवजे देने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है। अदालत के आदेश पर अब मामले की जांच एसआईटी करेगी और दो महीने में सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट दाखिल करेगी।

    संभल में अवमानना पर हफ्तेभर बाद सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि वह संभल में संपत्तियों को तोड़ने के संबंध में अपने आदेश के कथित उल्लंघन के लिए अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की मांग वाली याचिका पर एक सप्ताह बाद सुनवाई करेगा। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस आगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ के समक्ष यह याचिका सुनवाई के लिए आई।

    याचिकाकर्ता मोहम्मद गयूर की ओर से पेश वकील ने सुनवाई के लिए कुछ समय का स्थगन मांगा और कहा कि बहस करने वाले वकील व्यक्तिगत परेशानी में हैं। इस पर पीठ ने कहा कि याचिका एक सप्ताह बाद सुनवाई के लिए पेश की जाए।

    वकील चांद कुरैशी के माध्यम से दायर याचिका में याचिकाकर्ता ने सर्वोच्च न्यायालय के 13 नवंबर के फैसले का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है।

    इस फैसले में अखिल भारतीय दिशा-निर्देश निर्धारित करके कहा गया था कि बिना कारण बताओ नोटिस के किसी भी संपत्ति को ध्वस्त नहीं किया जाना चाहिए और प्रभावितों को जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए।

    याचिका में दावा किया गया है कि उत्तर प्रदेश के संभल में अधिकारियों ने याचिकाकर्ता या उसके परिवार के सदस्यों को कोई पूर्व सूचना और अवसर दिए बिना 10-11 जनवरी को उसकी संपत्ति के एक हिस्से पर बुलडोजर चला दिया था।

    सुप्रीम कोर्ट का टीडीएस प्रणाली खत्म करने पर विचार से इनकार

    सुप्रीम कोर्ट ने आयकर अधिनियम के तहत स्त्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) ढांचे को खत्म करने की मांग वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इन्कार कर दिया और कहा कि यह ''हर जगह'' लगाया जाता है। हालांकि, खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को दिल्ली हाई कोर्ट में अपनी याचिका दायर करने की अनुमति दे दी।

    आप दिल्ली उच्च न्यायालय जा सकते हैं

    मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ के समक्ष शुक्रवार को अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय के माध्यम से दायर याचिका में टीडीएस प्रणाली को ''मनमाना और अनुचित'' करार दिया गया। लेकिन सीजेआई ने कहा, ''माफ कीजिए, हम इस पर विचार नहीं करेंगे.. यह बहुत ही खराब तरीके से तैयार किया गया है। हालांकि, आप दिल्ली उच्च न्यायालय जा सकते हैं।''

    कई देशों में टीडीएस लगाने की प्रथा

    उन्होंने कहा कि कई देशों में टीडीएस लगाने की प्रथा है। जबकि याचिका में इसे समाप्त करने की मांग की गई और कहा गया कि यह समानता सहित कई मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। इसने आयकर अधिनियम के तहत टीडीएस ढांचे को चुनौती दी, जिसके अनुसार करदाता को भुगतान के समय कर की कटौती करनी होती है और उसे आयकर विभाग में जमा करना होता है।

    कटौती की गई राशि को भुगतानकर्ता की कर देयता के विरुद्ध समायोजित किया जाता है। याचिका में केंद्र, विधि एवं न्याय मंत्रालय, विधि आयोग और नीति आयोग ने पक्षकार के रूप में याचिका दायर की है।

    कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न मामले में याचिका महत्वपूर्ण: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के लिए आंतरिक शिकायत समितियों (आइसीसी) के सदस्यों की नौकरी की सुरक्षा से जुड़ी याचिका महत्वपूर्ण है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार को नोटिस जारी करने के बावजूद न तो कोई पेश हुआ और न ही कोई जवाब दाखिल किया गया।

    पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, 'यह एक महत्वपूर्ण कारण है, जिसे इस मामले में उठाया गया है। हम इस पर गौर करेंगे। आप सॉलिसिटर जनरल को इसकी एक प्रति दें। अगर अगली तारीख पर कोई पेश नहीं होता है तो हम एक एमिकस नियुक्त करेंगे।' याचिकाकर्ता आईसीसी की पूर्व सदस्य जानकी चौधरी और पूर्व पत्रकार ओल्गा टेलिस हैं।

    अगले सप्ताह होगी सुनवाई

    पीठ ने अगले सप्ताह सुनवाई निर्धारित की है। सर्वोच्च न्यायालय छह दिसंबर को याचिका पर विचार करने के लिए सहमत हुआ था और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को नोटिस जारी किया था। याचिका में निजी कार्यस्थलों पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (पीओएसएच अधिनियम) के तहत गठित आंतरिक शिकायत समितियों के सदस्यों के लिए कार्यकाल की सुरक्षा और बदले की कार्रवाई से संरक्षण की मांग की गई है।

    दिल्ली सरकार के निलंबित अधिकारी की पत्नी को जमानत से इनकार

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली सरकार के निलंबित अधिकारी प्रेमोदय खाखा की पत्नी को जमानत देने से इनकार कर दिया। प्रेमोदय खाखा पर नवंबर 2020 से जनवरी 2021 के बीच अपने परिचित एक व्यक्ति की बेटी से कई बार कथित तौर पर दुष्कर्म करने का आरोप है। अगस्त 2023 में गिरफ्तार होने के बाद से वह न्यायिक हिरासत में हैं।

    उनकी पत्नी सीमा रानी ने कथित तौर पर लड़की को गर्भावस्था समाप्त करने के लिए दवाएं दीं। वह भी न्यायिक हिरासत में हैं। हालांकि, न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने याचिकाकर्ता को एक साल के बाद जमानत के लिए निचली अदालत में जाने की छूट दी। आरोपित की ओर से पेश वकील सुभाशीष सोरेन ने दलील दी कि आरोपित अगस्त 2023 से जेल में है और मामले में आरोप पहले ही तय हो चुके हैं। दिल्ली पुलिस के वकील ने जमानत का विरोध किया था।

    बंधुआ मजदूरों के अधिकारों से जुड़ी याचिका पर मतभेद नहीं: SC

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि बंधुआ मजदूर के रूप में तस्करी किये गए लोगों के मूल अधिकारों को लागू करने की याचिका पर कोई मतभेद नहीं है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस आगस्टीन जार्ज मसीह ने यह टिप्पणी की। इससे पहले अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 21 नवंबर 2024 के निर्देश के अनुपालन में एक समिति गठित की गई और इस मुद्दे पर सिफारिशें की गईं है।

    सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2024 के अपने आदेश में, केंद्र से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ एक बैठक बुलाने को कहा था ताकि बंधुआ मजदूरों की अंतरराज्यीय तस्करी के मुद्दे का समाधान किया जा सके। याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि वे इस मामले में अपने सुझाव देंगे, जिसके बाद पीठ ने सुनवाई दो सप्ताह बाद के लिए निर्धारित कर दी।

    नवंबर 2024 के अपने आदेश में पीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकील की इन दलीलों पर गौर किया कि मुक्त कराये गए बच्चों सहित बंधुआ मजदूरों को तत्काल वित्तीय सहायता देने के संबंध में विभिन्न कठिनाइयां पेश आईं। न्यायालय ने कहा था कि इस मुद्दे का समाधान केंद्र और सभी राज्यों को मिलकर करना चाहिए।

    नोएडा में अधिक मुआवजे पर सुप्रीम कोर्ट नाराज, एसआईटी गठित

    सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा के जमीन मालिकों को अधिक मुआवजा देने के मामले में जांच के लिए एसआईटी गठित कर दी है। सर्वोच्च अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से नियुक्त जांच समिति पर भी असंतोष जताया है। जस्टिस सूर्यकांत और एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ नोएडा के अधिकारियों द्वारा जमीन मालिकों को दिए गए अवैध मुआवजे के मुद्दे की जांच करने वाली यूपी सरकार की ओर से नियुक्त समिति से असंतुष्ट है।

    सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए एसआईटी नियुक्त की है। खंडपीठ ने भ्रष्टाचार के आरोपित नोएडा के कानूनी सलाहकार और विधि अधिकारी की अग्रिम जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया। इसमें कहा गया है कि आरोप कुछ जमीन मालिकों के पक्ष में भारी मात्रा में मुआवजा जारी करने से संबंधित है, जो अपनी अधिग्रहित भूमि के लिए इतना अधिक मुआवजा पाने के हकदार नहीं थे।

    एसआईटी में ये अधिकारी शामिल

    सर्वोच्च अदालत ने आईपीएस अधिकारी और लखनऊ जोन के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक एसबी शिराडकर, सीबीसीआईडी के महानिरीक्षक मोदक राजेश डीराव और यूपी स्पेशल रेंज सुरक्षा बटालियन के कमांडेंट हेमंत कुटियाल को शामिल करते हुए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया। 23 जनवरी को पीठ ने कहा कि विशेष जांच दल विभिन्न मुद्दों पर विचार करेगा।

    पहला मुद्दा यह है कि क्या जमीन मालिकों को दिया गया मुआवजा, समय-समय पर न्यायालयों द्वारा पारित निर्णयों के अनुसार उनके हक से अधिक था। दूसरा, अत्यधिक भुगतान के लिए कौन से अधिकारी या कर्मचारी जिम्मेदार थे। तीसरा, क्या लाभार्थियों व नोएडा के अधिकारियों के बीच कोई मिलीभगत थी। चौथा, क्या नोएडा के समग्र कामकाज में पारदर्शिता, निष्पक्षता और जनहित के प्रति प्रतिबद्धता का अभाव है।

    जांच के दौरान किसी भी अन्य संबद्ध मुद्दे पर विचार के लिए स्वतंत्र

    एसआइटी को दो महीने के अंदर सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देते हुए पीठ ने कहा कि दल जांच के दौरान किसी भी अन्य संबद्ध मुद्दे पर विचार करने के लिए स्वतंत्र है। हालांकि पीठ ने लाभार्थियों, किसानों और जमीन मालिकों को जिन्हें अतिरिक्त मुआवजा दिया गया था, बिना उसकी अनुमति के किसी भी बलपूर्वक या दंडात्मक कार्रवाई से बचाया।

    14 सितंबर, 2023 को जब मामले की सुनवाई हुई तो पता चला कि मामले में दर्ज एफआईआर जमीन मालिकों को कथित तौर पर अधिक मुआवजे के भुगतान का एकमात्र मामला नहीं है, बल्कि ऐसे कई मामले हैं, जिनमें प्रथम दृष्टया, बाहरी विचारों और लेन-देन के आधार पर भुगतान किया गया।

    5 अक्टूबर, 2023 को राज्य सरकार ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि उसने मेरठ जोन के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक सहित तीन अधिकारियों की एक तथ्य-खोज समिति गठित की है, जो उन मामलों की जांच करेगी, जहां नोएडा ने प्राधिकरण के अधिकारियों और लाभार्थियों के साथ मिलीभगत और मिलीभगत से अवैध मुआवजा दिया हो।

    हरियाणा चुनाव ईवीएम सत्यापन मामले की सीजेआई करेंगे सुनवाई

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान इस्तेमाल की गई ईवीएम के सत्यापन की मांग करने वाली कांग्रेस नेताओं की याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ अब इस मामले पर 11 फरवरी को सुनवाई करेगी।

    दरअसल, हरियाणा के पूर्व मंत्री और पांच बार के विधायक करण सिंह दलाल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर ईवीएम के सत्यापन के लिए स्पष्ट नीति बनाने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की है।

    शुक्रवार को यह याचिका जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ के समक्ष पेश की गई, लेकिन पीठ ने कहा कि इस याचिका को मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की पीठ के समक्ष पेश किया जाए। जिसके बाद अब मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ईवीएम सत्यापन की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करेगी।

    याचिका में की गई ये मांग

    याचिका में कहा गया है कि ईवीएम सत्यापन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म बनाम केंद्र सरकार मामले में जो आदेश दिया था, उनका पालन किया जाए। दलाल ने लखन कुमार सिंगला के साथ मिलकर ये याचिका दायर की है।

    याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि चुनाव आयोग को निर्देश दिया जाए कि वे ईवीएम की ब‌र्न्ट मेमोरी या ईवीएम के चार भागों कंट्रोल यूनिट, बैलेट यूनिट, वीवीपैट और सिंबल लोडिंग यूनिट के माइक्रोकंट्रोलर की जांच कराने का प्रोटोकाल लागू करें। याचिकाकर्ता का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद चुनाव आयोग ने अभी तक इसे लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी नहीं किए हैं।

    अभिनेता दर्शन की जमानत रद करने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को हत्या के एक मामले में कन्नड़ अभिनेताओं दर्शन थुगुदीपा, पवित्रा गौड़ा और अन्य को दी गई जमानत रद करने से इन्कार कर दिया। हालांकि, इसके खिलाफ कर्नाटक सरकार की चुनौती की जांच पर सहमति व्यक्त की और नोटिस जारी किया।

    दर्शन को कथित तौर पर गौड़ा को अश्लील संदेश भेजने के बाद उसी वर्ष आठ जून को अपने प्रशंसक रेणुकास्वामी की हत्या के आरोप में 11 जून 2024 को गिरफ्तार किया गया था।

    न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कर्नाटक हाई कोर्ट के जमानत आदेश के खिलाफ राज्य की याचिका पर दर्शन और अन्य को नोटिस जारी किया। शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य सरकार को आशंका है कि अन्य सह-अभियुक्त हाई कोर्ट के आदेश का फायदा उठाएंगे।

    पीठ ने स्पष्ट किया कि अभियोजन पक्ष के हितों की रक्षा के लिए अगर कोई सह-अभियुक्त जमानत के लिए प्रार्थना करता है, तो संबंधित अदालत हमारे समक्ष चुनौती दिए गए आदेश पर भरोसा नहीं करेगी। दायर की गई किसी भी जमानत याचिका का फैसला उसकी योग्यता के आधार पर किया जाएगा।

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