CJI बोले- वंचित वर्ग की न्याय आवश्यकताओं को बढ़ाना जरूरी, उपराष्ट्रपति ने ग्लोबल साउथ के देशों को दी यह नसीहत
कानूनी सहायता तक पहुंच पर दो दिवसीय क्षेत्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि वंचित वर्ग की न्याय आवश्यकताओं को बढ़ाना जरूरी है। वहीं उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि अब समय आ गया है जब ग्लोबल साउथ देशों को भारत का अनुसरण करना चाहिए और उन पुराने औपनिवेशिक कानूनों की समीक्षा करने पर विचार करना चाहिए जो स्थानीय जनसंख्या के खिलाफ पूर्वाग्रह को कायम रखते हैं।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने सोमवार को कहा कि न्याय तक पहुंच केवल फैसलों में जन हितैषी न्यायशास्त्र तैयार करके हासिल नहीं की जा सकती, बल्कि इसके लिए अदालत के प्रशासनिक छोर से बुनियादी ढांचे में सुधार और कानूनी सहायता सेवाओं को बढ़ाने में सक्रिय प्रगति की आवश्यकता है।
'वंचित वर्ग की न्याय आवश्यकताओं को बढ़ाना जरूरी'
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि जजों के लिए मौजूदा केस के तथ्यों के मुताबिक न्याय करना चुनौती नहीं है, बल्कि प्रक्रिया को संस्थागत बनाना और वर्तमान से आगे देखना है। उन्होंने कहा हमारे देश की कम प्रतिनिधित्व वाली जनसंख्या (वंचित वर्ग) की न्याय आवश्यकताओं को बढ़ाना जरूरी है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह बात राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा ग्लोबल साउथ में कानूनी सहायता तक पहुंच आसान बनाने पर आयोजित पहले क्षेत्रीय सम्मेलन के शुभारंभ के मौके पर दिए संबोधन में कही।
'भारत का अनुसरण करें ग्लोबल साउथ के देश'
उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इसी मौके पर अपने संबोधन में औपनिवेशिक कानूनों की विरासत को ग्लोबल साउथ के देशों के कमजोर वर्गों के लिए बहुत बोझिल बताया। उपराष्ट्रपति ने इन कानूनों को स्थानीय आबादी के लिए बहुत ही दमनकारी और शोषणकारी बताते हुए जोर देकर कहा कि अब समय आ गया है, जब ग्लोबल साउथ के देशों को भारत के उदाहरण का अनुसरण करना चाहिए और उन पुराने औपनिवेशिक कानूनों की समीक्षा करने पर विचार करना चाहिए जो स्थानीय जनसंख्या के खिलाफ पूर्वाग्रह को कायम रखते हैं।
सम्मेलन के शुभारंभ सत्र में शामिल कानून मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अजुर्न राम मेघवाल ने न्यायिक प्रणाली के भीतर समस्याओं का समाधान करने के लिए अधिक टिकाऊ ढांचा बनाने पर जोर दिया। अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने वकीलों द्वारा कानूनी सहायता को सौतेले बच्चे की तरह लिए जाने की निंदा की और कहा कि हमें देखना होगा कि हम कानूनी सहायता के काम को गरिमा कैसे प्रदान करते हैं।
'कानूनी सेवा निगरानी की हो स्थापना'
वेंकटरमणी ने कहा कि सरकार को प्रदान की जाने वाली सेवाओं को ट्रैक करने के लिए कानूनी सेवा निगरानी स्थापित करनी चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने राजनीतिक मुफ्त रेवडयों को गैर राजनैतिक प्रयासों की ओर बढ़ाने पर जोर दिया।
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ने इंटरनेशल लीगल फाउंडेशन, यूएनडीपी और यूनीसेफ के साथ मिलकर दिल्ली में कमजोर लोगों के लिए गुणवत्तापूर्ण कानूनी सहायता तक पहुंच सुनिश्चित करना: ग्लोबल साउथ में चुनौतियां और अवसर विषय पर दो दिवसीय क्षेत्रीय सम्मेलन आयोजित किया है। इसी सम्मेलन के शुभारंभ के मौके पर दिए संबोधनों में ये बातें कही गईं। समारोह में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना व जी 20 के शेरपा अमिताभ कांत और भी गणमान्य लोग मौजूद थे।
'न्याय की हमारी अवधारणाएं भी बदल गई हैं'
प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि न्याय की अवधारणा को ऐतिहासिक रूप से पूरी तरह से संप्रभु राज्य की सीमाओं के भीतर लागू माना गया है। वर्तमान युग में अंतराराष्ट्रीय संबंधों के जटिल जाल को देखते हुए न्याय की हमारी अवधारणाएं भी बदल गई हैं।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में सभी देशों के साथ समान व्यवहार नहीं किया जाता है। हालांकि, कुछ राष्ट्र एकजुटता और अपनेपन की भावना साझा करते हैं। उन्होंने कहा कि यहां ग्लोबल साउथ जैसी सृजित की गई श्रेणियां सहयोग, संवाद और विचार विमर्श के महत्वपूर्ण बिंदु बन जाती हैं।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यह शब्द महज भौगोलिक नहीं है, बल्कि कुछ देशों के बीच राजनैतिक, भू-राजनैतिक और आर्थिक समानताओं पर आधारित है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अनुमान है कि 2030 तक चार सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में तीन ग्लोबल साउथ से होंगी।
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उपराष्ट्रपति ने प्रधान न्यायाधीश की सराहना की
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने संबोधन में लोगों की न्याय तक पहुंच आसान बनाने में प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा किये जा रहे प्रयासों की सराहना की। जी-20 के शेरपा अमिताभ कांत ने कहा कि कानूनी सहायता तक पहुंच एक विकल्प नहीं है बल्कि एक आवश्यकता है। ग्लोबल साउथ में बड़ी संख्या में लंबित मामलों को नवीन समाधानों की आवश्यकता है।
जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि इस सम्मेलन का उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण कानूनी सहायता तक पहुंच के लिए जमीनी स्तर पर समाधान खोजना है। सम्मेलन में कुल 17 सत्र होंगे और इसमें ग्लोबल साउथ के 17 देशों के चीफ जस्टिस शामिल हो रहे हैं।
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राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस संजय किशन कौल ने कानूनी सहायता में नालसा के प्रयासों का ब्योरा दिया और बताया कि इसकी समीक्षा समिति ने लंबे समय से जेल में बंद बीमार, बुजुर्ग और महिला अपराधियों को वर्गीकृत किया और 42000 कैदियों की रिहाई की सिफारिश की इसमें से 24000 कैदी रिहा हो चुके हैं और 26000 विचाराधीन कैदियों की रिहाई पर काम चल रहा है।
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