'सरकार के खिलाफ आदेश देने से कतराते हैं', ट्रिब्यूनलों के गैर-न्यायिक सदस्यों पर CJI ने उठाए सवाल
चीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि न्यायाधिकरणों के कुछ गैर-न्यायिक सदस्य सरकार के खिलाफ आदेश देने से हिचकिचाते हैं। उन्होंने सदस्यों से इस विषय पर विचार करने का आग्रह किया। उन्होंने प्रशासनिक ट्रिब्यूनल और न्याय वितरण प्रणाली से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर बात की। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सरकारी विभागों द्वारा अदालती आदेशों को चुनौती देने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने की आवश्यकता बताई।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। चीफ जस्टिस बीआर गवई ने शनिवार को कहा कि न्यायाधिकरणों के कुछ गैर-न्यायिक सदस्य, जोकि आमतौर पर पूर्व नौकरशाह होते हैं, सरकार के खिलाफ कोई भी आदेश पारित करने से कतराते हैं। उन्होंने इन सदस्यों से इस विषय पर विचार करने का अनुरोध किया।
केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के 2025 के 10वें अखिल भारतीय सम्मेलन में सीजेआई ने कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह की मौजूदगी में ट्रिब्यूनलों (न्यायाधिकरणों) और न्याय वितरण प्रणाली से जुड़े विभिन्न मुद्दों को उठाया।
'सदस्यों की प्रशिक्षित करने की जरूरत'
प्रधान न्यायाधीश गवई ने कहा कि प्रशासनिक ट्रिब्यूनल न्यायालयों से भिन्न होते हैं क्योंकि वे कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच एक विशेष स्थान रखते हैं तथा उनके कई सदस्य प्रशासनिक सेवाओं से आते हैं जबकि अन्य न्यायपालिका से आते हैं। उन्होंने कहा कि यह विविधता एक ताकत है क्योंकि यह न्यायिक कौशल और प्रशासनिक अनुभव को एक साथ लाती है, लेकिन यह आवश्यक है कि सदस्यों को लगातार प्रशिक्षित किया जाए और पात्रता तथा आचरण के समान मानकों का पालन कराया जाए।
'प्रशासन की बारीकियों से होना चाहिए परिचित'
उन्होंने कहा- 'न्यायिक सदस्यों को लोक प्रशासन की बारीकियों से परिचित होना चाहिए, जबकि प्रशासनिक सदस्यों को कानूनी तर्क-वितर्क का प्रशिक्षण आवश्यक है। मेरी बात को अन्यथा न लें क्योंकि आजकल आपको पता ही नहीं होता कि आप क्या कह रहे हैं और इंटरनेट मीडिया पर क्या आ रहा है।'
उन्होंने कहा कि न्यायिक शिक्षाविदों द्वारा आयोजित नियमित कार्यशालाएं, सम्मेलन और प्रशिक्षण कार्यक्रम इस संबंध में अमूल्य साबित हो सकते हैं और ट्रिब्यूनलों के सदस्यों की प्रभावशीलता को काफी बढ़ा सकते हैं। उन्होंने स्पष्ट पात्रता मानदंडों के साथ एक समान नियुक्ति प्रक्रिया की आवश्यकता पर भी जोर दिया, जिससे मनमानी के प्रश्न समाप्त होंगे और नागरिकों का न्यायाधिकरण में विश्वास मजबूत होगा।
सीजेआई ने की इस बात पर चिंता
सीजेआई ने ट्रिब्यूनलों के निर्णयों के खिलाफ अपीलों की बढ़ती संख्या पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए होता क्योंकि नौकरशाह कोई भी जोखिम लेने से डरते हैं और दोष अदालतों पर डालना चाहते हैं।
केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों से संबंधित सेवा मामलों में हाई कोर्टों में दायर अनावश्यक अपीलों से बचने के उपाय खोजने की जरूरत है। उन्होंने सभी संबंधित पक्षों से आग्रह किया कि कैट को अपने मूल कार्य को पूरा करने में मदद करें ताकि हाई कोर्टों में सेवा संबंधी लंबित मामलों की संख्या कम हो सके।
अदालती आदेशों के खिलाफ अपील की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की जरूरत: मेघवाल
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि सरकारी विभागों में अदालती आदेशों को चुनौती देने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कई बार अदालतों द्वारा ठोस फैसले दिए जाने के बावजूद सरकारी विभाग अपील दायर कर देते हैं। उन्होंने संकेत दिया कि कभी-कभी अधिकारी अपनी जान बचाने के लिए अदालत या कैट के आदेशों को चुनौती देने के लिए अपील दायर करते हैं, क्योंकि फैसलों में उनके द्वारा लिए गए निर्णयों पर सवाल उठाए गए होते हैं।
मेघवाल ने कहा कि उन्हें नियमित रूप से ऐसी फाइलें मिलती रहती हैं, जिनमें केंद्रीय विभाग ठोस अदालती आदेशों के खिलाफ अपील दायर करने की योजना बना रहे होते हैं। उन्होंने कहा कि कैट को ई-फाइ¨लग और डिजिटल सुनवाई जैसी नवीनतम तकनीकों का उपयोग करना चाहिए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों पर मुकदमों का बोझ कम करने में ट्रिब्यूनल की भूमिका की भी सराहना की।
(न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)
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