CJI धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ के समक्ष चुनौतियों का अंबार, बदलनी होगी ‘तारीख पर तारीख’ वाली कार्यसंस्कृति
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को दो वर्ष का कार्यकाल मिला है। इसलिए उम्मीद है कि वह आवश्यक सुधारों को मूर्त रूप देने में सक्षम होंगे देश की अदालतें ‘तारीख पर तारीख’ वाली कार्यसंस्कृति के लिए बदनाम हैं। तारीख पर तारीख वाली सुप्रीम कोर्ट की छवि को बदलना होगा।

नई दिल्ली, योगेश कुमार गोयल। जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआइ) का दायित्व संभाल लिया है। उन्होंने अयोध्या मामले, आइपीसी की धारा 377 के अंतर्गत समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने, आधार योजना की वैधता और सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने जैसे तमाम ऐतिहासिक फैसले सुनाए हैं। नवाचार को प्रोत्साहन देने में भी वह खासे उदार रहे हैं। उन्हीं के निर्देशन में न्यायपालिका के पहले सूचना तकनीकी केंद्र की रूपरेखा तैयार हुई और इलाहाबाद हाई कोर्ट के डिजिटलीकरण का कार्य भी उन्होंने ही शुरू कराया था।
कोरोना महामारी ने और बढ़ाया अदालतों का बोझ
हालांकि, देश के 50वें सीजेआई के रूप में जस्टिस चंद्रचूड़ का कार्यकाल आसान नहीं होगा। उनके समक्ष कई चुनौतियां होंगी। सबसे बड़ी चुनौती तो अदालतों में लंबित मामलों के बोझ को कम करने की होगी। उन्होंने स्वयं पुणे में 25 अगस्त, 2022 को इंडियन ला सोसायटी के कार्यक्रम में कहा था कि हम सभी जानते हैं कि अदालतों में कितने ही मामले लंबित हैं। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार वर्ष 2010 से 2020 के बीच सभी अदालतों में लंबित मामलों में 2.8 फीसद वार्षिक की दर से वृद्धि हुई है और 2020 से 2022 के बीच कोविड महामारी ने तो इस बोझ को और बढ़ा दिया है।
भारतीय अदालतों में करोड़ों मामले लंबित
इस समय करीब 4.83 करोड़ मामले लंबित हैं। इनमें जिला अदालतों में ही 4.1 करोड़ से भी ज्यादा मुकदमे लंबित हैं। विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या करीब 59 लाख हैं। इनमें करीब 13 लाख मामले तो 10 साल पुराने हैं। केवल सुप्रीम कोर्ट में ही 72 हजार से भी ज्यादा मामले लंबित हैं। अदालतों में जजों की कमी के कारण 1.12 लाख से ज्यादा तो ऐसे मामले हैं, जो 30 वर्षों से लंबित हैं। ऐसे में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के समक्ष इतनी बड़ी संख्या में लंबित मामलों का समाधान निकालने की गंभीर चुनौती है। साथ ही अदालतों में खाली पड़े जजों के पद भरना, अदालतों के कामकाज की शैली में सुधार लाना, अदालती प्रक्रिया को सरल बनाने की दिशा में भी उन्हें निर्णायक पहल करनी होगी।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को दो वर्ष का लंबा कार्यकाल मिला
आमतौर पर मुख्य न्यायाधीश का कार्यकाल छोटा ही होता है, लेकिन न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को दो वर्ष का लंबा कार्यकाल मिला है। इसलिए उम्मीद बंधी है कि इस दौरान वह इन आवश्यक सुधारों को मूर्त रूप देने में सक्षम हो सकेंगे। जस्टिस चंद्रचूड़ ने न्याय व्यवस्था को अधिक पारदर्शी तथा आम नागरिकों के लिए सरल बनाने की बात कही है। देश की अदालतें ‘तारीख पर तारीख’ वाली कार्यसंस्कृति के लिए बदनाम हैं। तारीख पर तारीख वाली सुप्रीम कोर्ट की छवि को बदलना होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि न्याय प्रणाली में आमजन का भरोसा और ज्यादा बढ़ाने के लिए वह ठोस कदम उठाएंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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