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    कारगिल युद्ध से पहले हुई थी वाजपेयी-शरीफ सरकार में गुप्त वार्ता, इस फॉर्मूले पर हुआ था विमर्श

    Updated: Sat, 19 Jul 2025 09:44 PM (IST)

    अभिषेक चौधरी की किताब के अनुसार 1999 में कारगिल युद्ध से पहले अटल बिहारी वाजपेयी और नवाज शरीफ की सरकारों ने चिनाब फार्मूला पर विचार किया था। इस फार्मूले में चिनाब नदी के किनारे बसे जिलों को हिंदू और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में बांटकर जम्मू-कश्मीर का विभाजन करने का प्रस्ताव था। हालांकि नियंत्रण रेखा को अंतर्राष्ट्रीय सीमा बनाने जैसे विकल्पों पर सहमति नहीं बन पाई और यह योजना विफल रही।

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    कारगिल युद्ध से पहले हुई थी वाजपेयी-शरीफ सरकार में गुप्त वार्ता। (फाइल फोटो)

    पीटीआई, नई दिल्ली। भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध शुरू होने से कुछ हफ्ते पहले अटल बिहारी वाजपेयी और नवाज शरीफ की सरकारों ने गुप्त वार्ता के जरिए कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए 'चिनाब फार्मूला' पर विमर्श किया था।

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    इस फार्मूले के तहत चिनाब नदी के दोनों किनारों पर आबाद जिलों को हिंदू एवं मुसलमान बहुल क्षेत्रों के हिसाब से बांटकर जम्मू-कश्मीर का विभाजन किए जाने का प्रस्ताव था।

    अभिषेक चौधरी की किताब में सामने आई ये बात

    अभिषेक चौधरी की किताब ''बिलीवर्स डिलेमा: वाजपेयी एंड द हिंदू राइट्स पाथ टू पावर'' में इस बात को उजागर किया गया है। यह किताब चौधरी की पुरस्कृत बेस्टसेलर ''वाजपेयी: द एसेंट ऑफ द हिंदू राइट'' की अगली कड़ी है। इस किताब के अनुसार, वाजपेयी की 1999 की ऐतिहासिक पाकिस्तान यात्रा और लाहौर घोषणा के बाद दिल्ली के एक होटल में सेवानिवृत्त पाकिस्तानी राजनयिक एवं भारत में पूर्व उच्चायुक्त नियाज नाइक और भारतीय वार्ताकार आरके मिश्रा के बीच कई गुप्त बातचीत हुई थी।

    किताब में कही गई ये बात

    इस किताब में कहा गया है, ''मार्च, 1999 के आखिरी हफ्ते में शरीफ के दूत नियाज नाइक, आरके मिश्रा के साथ बातचीत शुरू करने के लिए दिल्ली के एक होटल में गुप्त रूप से ठहरे थे। अगले पांच दिनों तक उन्होंने कश्मीर पर एक 'असंभव' प्रस्ताव पर चर्चा की।''

    वाजपेयी ने हालांकि ''नवाचार'' के माध्यम से कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए दोनों को प्रोत्साहित किया। कई दौर के प्रयास और त्रुटि के बाद मिश्रा और नाइक ने जम्मू-कश्मीर के विभाजन के लिए एक ''पहचान योग्य भौगोलिक सीमा'' पर विमर्श किया जिसे ''चिनाब फार्मूला'' कहा गया।

    सुझाया गया था ये फार्मूला

    किताब के अनुसार, ''नाइक द्वारा सुझाए गए फार्मूले में चिनाब नदी के पश्चिम भाग के सभी मुस्लिम-बहुल जिलों को पाकिस्तान को देने का प्रस्ताव था; जबकि नदी के पूर्वी हिस्से के सभी हिंदू-बहुल जिलों को भारत के पास रखना था।''

    समाधान के लिए चर्चा में संबंधित पक्षों में कश्मीरियों को भी शामिल करने का प्रस्ताव था। बहरहाल, कुछ विकल्पों पर दोनों में सहमति नहीं बन पाई जिनमें प्रमुख रूप से शामिल थे - ''नियंत्रण रेखा को अंतरराष्ट्रीय सीमा बनाना (नाइक द्वारा अस्वीकृत), कश्मीर के लिए स्वायत्तता (नाइक द्वारा अस्वीकृत), कश्मीर की स्वतंत्रता (मिश्रा द्वारा अस्वीकृत), और क्षेत्रवार जनमत संग्रह (मिश्रा द्वारा अस्वीकृत)''।

    किताब के अनुसार, एक अप्रैल को इस्लामाबाद लौटने से पहले नाइक ने वाजपेयी से मुलाकात की जिन्होंने नवाज शरीफ के लिए एक गुप्त संदेश भेजा - ''गर्मियों के महीनों के दौरान घुसपैठ और सीमा पार से गोलाबारी रोकें''। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, और गुप्त कूटनीति के आगे बढ़ने के साथ ही समस्याएं भी पैदा होने लगीं।

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