'I Love You कहना यौन उत्पीड़न नहीं, जब तक कि...', ये बोलते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने आरोपी को कर दिया बरी
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने पॉक्सो और एससी/एसटी अधिनियम के तहत एक युवक को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि सिर्फ आई लव यू कहना यौन उत्पीड़न नहीं है जब तक यौन इरादा साबित न हो। निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की अपील खारिज की क्योंकि अभियोजन पक्ष आरोपी की मंशा या पीड़िता की उम्र साबित करने में विफल रहा।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम और एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत आरोपी एक युवक को बरी कर दिया। अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि केवल आई लव यू कहना यौन उत्पीड़न नहीं माना जाएगा, जब तक कि स्पष्ट यौन इरादा स्थापित न हो जाए।
जस्टिस संजय एस. अग्रवाल की एकल पीठ ने निचली अदालत के फैसले को बरकार रखा और राज्य सरकार की ओर से दायर अपील को खारिज कर दिया। अपील में कहा गया कि अभियोजन पक्ष आरोपी की मंशा या पीड़िता की उम्र साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत पेश करने में विपल रहा।
जानिए क्या है पूरा मामला?
ये मामला धमतरी जिले के कुरुद थाना क्षेत्र का है, जहां 15 साल की एक स्कूली छात्रा ने आरोप लगाया है कि जब वह घर लौट रही थी तो आरोपी ने उसे देखा और आई लव यू कहा। उसने यह भी दावा किया कि युवक ने पहले भी कई मौकों पर उसका उत्पीड़न किया। उसकी शिकायत के आधार पर पुलिस ने बीएनएस की धारा 354डी (पीछा करना) और 509 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना) के साथ-साथ पॉक्सो अधिनियम की धारा 8 और एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(2) (वीए) के तहत मामला दर्ज किया।
हाई कोर्ट कैसे पहुंचा मामला?
पहले ये मामला निचली अदालत में पहुंचा तो वहां से आरोपी को राहत देते हुए कोर्ट ने बरी कर दिया, जिसके बाद राज्य सरकार ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी। सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने पाया कि न तो पीड़िता और न ही उसके दोस्तों की गवाही से आरोपी के किसी यौन इरादों का पता चलता है। अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि आरोपी को पीड़िता की जाति के बारे में पता था, जिससे एससी/एसटी अधिनियम का आरोप निराधार साबित होता है।
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