'रिश्ते में अब पुनर्मिलन की गुंजाइश नहीं', 14 साल से अलग रह रहे पति-पत्नी के मामले में HC की अहम टिप्पणी
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने विवाह विवाद में पति की अपील स्वीकार करते हुए विवाह रद्द कर दिया और पत्नी को 15 लाख रुपये का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। पत्नी द्वारा दहेज उत्पीड़न और अन्य आरोप लगाए गए थे जिसके कारण पति को मानसिक पीड़ा हुई। न्यायालय ने कहा कि बिना उचित कारण के वैवाहिक जीवन से दूरी बनाना क्रूरता है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ की उच्च न्यायालय ने शादी के विवाद से जुड़े एक मामले में अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने पति की अपील की स्वीकार करते हुए शादी को समाप्त करने और पत्नी को 15 लाख रुपये स्थायी गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया।
दरअसल, पूरा मामला कोरबा जिले के कटघोरा क्षेत्र का है। यहां पर एक दंपती साल 2011 से अलग रह रहे थे। दंपती के बीच विवाद का मामला कोर्ट में विचाराधीन था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पति की अपील स्वीकार करते हुए फैमिली कोर्ट के आदेश को निरस्त किया और पति को तलाक की डिक्री प्रदान की।
कोर्ट ने की अहम टिप्पणी
इस मामले की सुनवाई के जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद ने की। मामले की सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि पत्नी वर्षों से अलग रह रही है और उसने पति व ससुराल पक्ष पर दहेज प्रताड़ना समेत कई मुकदमे दर्ज कराए थे।
कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि बिना पर्याप्त कारण वैवाहिक जीवन से दूरी बनाना पति के प्रति क्रूरता की श्रेणी में आता है। न्यायालय ने पत्नी और बेटी के भविष्य को देखते हुए पति को आदेश दिया कि वह 15 लाख रुपये का स्थायी गुजारा भत्ता अदा करे।
जानिए क्या है पूरा मामला
बता दें कि एसईसीएल में माइनिंग सरदार के पद पर काम कर रहे एक युवक की शादी फरवरी 2020 में हुई। कुछ समय बाद दंपती ने एक बेटी को जन्म दिया। कुछ समय बाद ही दंपती के बीच विवाद बढ़ता चला गया। विवाद तलाक तक पहुंच गया। पति का आरोप था कि पत्नी ने वैवाहिक दायित्व निभाने से इनकार किया और परिवार से अलग रहने का दबाव बनाया। वहीं, पत्नी ने आरोप लगाया कि लड़की होने पर ससुरालवालों का व्यवहार बदल गया और उन्होंने पांच लाख रुपये की मांग करते हुए उत्पीड़न शुरू किया।
पति ने साल 2015 में दाखिल की तलाक की अर्जी
बढ़ते विवाद के विवाद के बीच पत्नी ने पति और ससुरालवालों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना (498ए), घरेलू हिंसा और भरण-पोषण के मामले दर्ज कराए। पत्नी ने आरोप लगाया कि पति और परिवार वालों ने मारपीट की और जान से मारने का प्रयास किया। हालांकि, पति और उसके परिवार वालो ने सभी आरोपों का खंडन किया। 2019 में सेशन कोर्ट ने पति और उनके परिवार को सभी आपराधिक आरोपों से बरी कर दिया। बावजूद इसके पत्नी अलग रह रही थी। पति ने 2015 में तलाक की अर्जी लगाई थी, लेकिन 2017 में कटघोरा फैमिली कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। इसके बाद पति ने हाईकोर्ट का रुख किया।
उच्च न्यायालय ने दिया ये फैसला
उच्च न्यायालय की जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की डिवीजन बेंच ने दोनों पक्षों की बात को सुना और कहा कि दंपती 2011 से अलग रह रहे हैं। पत्नी ने कई आपराधिक शिकायतें कीं, जिनसे पति को मानसिक यातना झेलनी पड़ी।
कोर्ट ने कहा कि अलग रहने का कोई वाजिब कारण पत्नी साबित नहीं कर सकी। अब दोनों के रिश्ते में पुनर्मिलन की संभावना पूरी तरह खत्म हो चुकी है। उच्च न्यायालय ने कहा कि पत्नी और बेटी की आजीविका सुनिश्चित करना जरूरी है। पति एसईसीएल में माइनिंग सरदार के पद पर है और अच्छी तनख्वाह पाता है। इस स्थिति में वह छह माह के भीतर पत्नी को 15 लाख रुपये स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में अदा करे। इसके साथ ही 14 साल से लंबित यह विवादित रिश्ता कानूनी रूप से समाप्त हो गया।
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