तिलहन फसलों से किसानों का मोह भंग, मक्का की खेती की ओर क्यों बढ़ रहा झुकाव?
खरीफ सीजन में किसानों की प्राथमिकताएं बदल रही हैं। तिलहन फसलों में गिरावट आई है जबकि मक्का का रकबा बढ़ा है। सोयाबीन और मूंगफली में 6% की कमी आई है वहीं मक्का 11% बढ़ा है। खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को इससे झटका लग सकता है क्योंकि भारत अपनी खपत का 60% तेल आयात करता है।

अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। खरीफ सीजन में इस बार किसानों की बुआई प्राथमिकताएं बदलती दिख रही हैं। सोयाबीन और मूंगफली जैसी तिलहन फसलों के रकबे में जहां करीब छह प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, वहीं मक्का का रकबा 11 प्रतिशत तक बढ़ा है। पिछले वर्ष मक्का का क्षेत्रफल करीब 81.99 लाख हेक्टेयर था, जो इस बार बढ़कर 91.62 लाख हेक्टेयर हो गया है।
इसके विपरीत, तिलहन फसलों का क्षेत्र 163 लाख हेक्टेयर से घटकर 156 लाख हेक्टेयर रह गया है। सोयाबीन में भी छह प्रतिशत की कमी दर्ज हुई है। यह बदलाव खेती के रुख में स्पष्ट परिवर्तन का संकेत देता है और साथ ही खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता की दिशा में नए अवरोध भी खड़े करता है। देश में कुल खपत का लगभग 60 प्रतिशत खाद्य तेल हम आयात करते हैं।
किसानों का मक्का की ओर क्यों बढ़ रहा झुकाव?
केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि वर्ष 2030-31 तक घरेलू उत्पादन को इतना बढ़ाया जाए कि देश खाद्य तेल में आत्मनिर्भर बन सके। लेकिन तिलहन के घटते रकबे ने इस लक्ष्य तक पहुंचना कठिन कर दिया है।
किसानों का मक्का की ओर झुकाव मुख्य रूप से लागत के मुकाबले बेहतर मुनाफे के कारण बढ़ा है। पेट्रोल में 20 प्रतिशत एथनाल मिश्रण की नीति ने पिछले चार-पांच वर्षों में मक्का की कीमतों को लगभग दोगुना कर दिया है।
साथ ही पशु चारा और सस्ते प्रोटीन युक्त अनाज उद्योग में भी मक्के की मांग ते•ाी से बढ़ी है।तिलहन फसलों का क्षेत्र घटने से घरेलू खाद्य तेल उत्पादन कम हो सकता है, जिससे पाम और सोयाबीन तेल के आयात पर दबाव बढ़ेगा। भारत पहले ही दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य तेल आयातक है। बीते वित्त वर्ष में देश ने 1,41,950 करोड़ रुपये से अधिक का खाद्य तेल आयात किया गया है।
वर्ष 2003-04 में यह आयात 44 लाख टन था, जो अब बढ़कर 1.6 करोड़ टन हो चुका है। केंद्र सरकार का अनुमान है कि 2030-31 तक घरेलू उत्पादन को 1.27 करोड़ टन से बढ़ाकर 2.545 करोड़ टन करना होगा, ताकि अनुमानित मांग को घरेलू उत्पादन से पूरा किया जा सके।
कृषि विशेषज्ञों ने क्या दी चेतावनी?
लेकिन कृषि विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर यही रुझान जारी रहा तो अगले छह-सात वर्षों में भारत का खाद्य तेल आयात दो करोड़ टन से भी ज्यादा हो सकता है। वैश्विक बाजार में पहले से ही आपूर्ति सीमित है, ऐसे में भारत की अतिरिक्त मांग अंतरराष्ट्रीय कीमतों को और ऊपर धकेल सकती है।
नतीजतन, पाम, सोयाबीन आयल और सूरजमुखी तेल का आयात बढ़ना तय है। यानी सरकार को तेलहन की उत्पादकता और रकबा दोनों बढ़ाने के लिए विशेष कदम उठाने होंगे।
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