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    Chandrayaan 3: चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर सफल लैंडिंग में करेगा मदद, चांद पर उतरने के लिए किए गए ये बदलाव

    By Jagran NewsEdited By: Narender Sanwariya
    Updated: Wed, 23 Aug 2023 08:14 AM (IST)

    ISRO प्रमुख सोमनाथ ने कहा है कि Chandrayaan-2 में सफलता-आधारित डिजाइन के बजाय इसरो ने Chandrayaan-3 में विफलता-आधारित डिजाइन को चुना जिसमें इस बात पर ध्यान केंद्रित किया गया कि क्या विफल हो सकता है और इसे कैसे सुरक्षित रखा जाए और सफल लैंडिंग सुनिश्चित की जाए। चंद्रयान-3 यहां लगभग 90 डिग्री झुका हुआ है इसे लंबवत करना है। इसलिए क्षैतिज से ऊध्र्वाधर में बदलने की प्रक्रिया अहम है।

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    Chandrayaan 3: चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर सफल लैंडिंग में करेगा मदद, चांद पर उतरने के लिए किए गए ये बदलाव

    बेंगलुरु, एजेंसी। भारत ने वर्ष 2019 में चंद्रयान-2 मिशन के तहत चंद्रमा पर लैंडर को उतारने का प्रयास किया था। हालांकि आखिरी क्षणों में लैंडर से संपर्क टूट गया था और उसकी क्रैश लैंडिंग हो गई थी। इस बार सफल लैंडिंग के लिए इसरो (ISRO) ने इसमें कई अतिरिक्त सावधानियां बरती हैं। इनमें सफलता आधारित डिजाइन के बजाय विफलता-आधारित डिजाइन शामिल है। इसरो प्रमुख सोमनाथ ने कहा है कि चंद्रयान-2 में सफलता-आधारित डिजाइन के बजाय इसरो ने चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3 Live) में विफलता-आधारित डिजाइन को चुना, जिसमें इस बात पर ध्यान केंद्रित किया गया कि क्या विफल हो सकता है और इसे कैसे सुरक्षित रखा जाए और सफल लैंडिंग सुनिश्चित की जाए।

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    सोमनाथ ने कहा, "हमने बहुत सी विफलताओं को देखा - सेंसर विफलता, इंजन विफलता, एल्गोरिदम विफलता, गणना विफलता। इसलिए, जो भी विफलता है हम चाहते हैं कि उसे ठीक किया जाए। इसलिए अलग-अलग विफलता परिदृश्यों की गणना और प्रोग्राम किया गया है। लैंडिंग का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा लैंडर के वेग को कम कर 30 किलोमीटर की ऊंचाई से चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने तक की प्रक्रिया है। हमें इसे क्षैतिज से ऊध्र्वाधर दिशा में स्थानांतरित करना है। लैंडिंग प्रक्रिया की शुरुआत में वेग लगभग 1.68 किमी प्रति सेकंड है, लेकिन यह गति चंद्रमा की सतह के क्षैतिज है।

    चंद्रयान-3 यहां लगभग 90 डिग्री झुका हुआ है, इसे लंबवत करना है। इसलिए क्षैतिज से ऊध्र्वाधर में बदलने की प्रक्रिया अहम है। हमने बहुत सारे सिमुलेशन किए हैं। यहीं पर हमें पिछली बार (चंद्रयान -2) समस्या हुई थी। चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के लिए इस बार कई तकनीकी परिवर्तन किए गए हैं। इसके साथ की लैंडिंग स्थान का क्षेत्र बढ़ाया गया है। चंद्रयान-2 के समय लैंडिंग साइट छोटी थी। सोलर पैनल भी बढ़ाए गए हैं।

    सफल लैंडिंग में मदद करेगा चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर

    खगोल विज्ञानी प्रिया हसन ने कहा कि चंद्रयान -3 के लैंडिंग मॉड्यूल (लैंडर और रोवर) की सॉफ्ट लैंडिंग में चंद्रयान-2 का रोवर मदद करेगा। उन्होंने कहा, चंद्रयान-2 के साथ गया आर्बिटर, जो अभी भी चंद्रमा के चारों ओर चक्कर लगा रहा है।उन्होंने कहा, सॉफ्ट लैंडिंग में लैंडर लगभग 6,000 किमी प्रति घंटे की बहुत तेज गति से उतरता है। अचानक इसे ब्रेक लगाना पड़ता है और सतह पर लैंडिंग करानी पड़ती है। हम जानते हैं कि सतह गड्ढों से भरी है। इसके लिए चंद्रयान-2 में भी सावधानियां बरती गई थीं। लेकिन यह कारगर नहीं रही। अब हमारे पास अच्छा लाभ यह है कि आर्बिटर 2019 से काम कर रहा है। ऑर्बिटर ने चंद्रमा की पूरी सतह को बहुत अच्छी तरह से मैप किया है। हमारे पास पहले चंद्रमा के इतने सटीक नक्शे नहीं थे। चंद्रयान-2 की बदौलत अब हमारे पास चंद्रमा के इतने सटीक नक्शे हैं। चंद्रयान-3 में कोई आर्बिटर नहीं है क्योंकि चंद्रयान-2 आर्बिटर अभी भी काम कर रहा है। चंद्रयान-3 मिशन के लैंडर का नाम विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है, जिन्हें भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक माना जाता है।