मुआवजे में वृद्धि की मांग वाली याचिका पर केंद्र ने SC से कहा, भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को नहीं छोड़ सकता
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि इस मामले को फिर से खोलने में कई चुनौतियां हैं लेकिन हम पीड़ितों को नहीं छोड़ सकते क्योंकि त्रासदी हर दिन सामने आ रही है। उन्होंने कहा कि सरकार आगे बढ़ना चाहती है। (फाइल फोटो एएनआइ)
नई दिल्ली, आइएएनएस। भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई। इस दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह पीड़ितों के मुआवजे में वृद्धि की मांग करने वाली अपनी याचिका को आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक हैं। 470 मिलियन डॉलर से अधिक का भुगतान यूनियन कार्बाइड द्वारा पहले ही किया जा चुका है।
केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल (एजी) आर. वेंकटरमनी ने न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि यह एक त्रासदी है, जो हर रोज सामने आती है। इसके पीड़ितों को ऐसे ही नहीं छोड़ा जा सकता है।
अटॉर्नी जनरल के बयान की सराहना की
वहीं, गैस पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करने वाली वकील करुणा नंदी ने दलील दी कि अदालत के मामले में किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले पीड़ितों को एक प्रतिनिधित्व देने का अवसर दिया जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने अटॉर्नी जनरल के बयान की सराहना भी की।
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हम पीड़ितों को नहीं छोड़ सकते
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि इस मामले को फिर से खोलने में कई चुनौतियां हैं, लेकिन हम पीड़ितों को नहीं छोड़ सकते, क्योंकि त्रासदी हर दिन सामने आ रही है। उन्होंने कहा कि सरकार आगे बढ़ना चाहती है। वह आगे चलकर अदालत के सामने एक नोट रख सकेंगे।
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वकील ने एनजीओ के अधिकार क्षेत्र पर भी उठाया सवाल
नंदी ने कहा कि पहले नागरिक पहलू है और फिर आपराधिक पहलू है। इस मामले की जांच होनी चाहिए। यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन के वकील ने एनजीओ के अधिकार क्षेत्र पर भी सवाल उठाया।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ में ये न्यायाधीश रहे शामिल
सुप्रीम कोर्ट की पीठ जिसमें जस्टिस संजीव खन्ना, ए.एस. ओका, विक्रम नाथ और जे.के. माहेश्वरी शामिल रहे। उन्होंने ने कहा कि तब समीक्षा दायर नहीं की गई थी और 19 साल के अंतराल के बाद एक सुधारात्मक याचिका दायर की गई। पीठ ने पीड़ितों के वकील से पूछा कि किस क्षमता में उनकी सुनवाई की जाएगी? पीठ ने अपने आदेश में कहा कि अटॉर्नी जनरल ने अदालत के समक्ष एक स्टैंड लिया कि सरकार अपनी क्यूरेटिव पिटीशन पर दबाव डालना चाहेगी और कई गैर सरकारी संगठन पक्षकार बनना चाहेंगे।
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