Central Vigilance Commission: रिपोर्ट में हुआ खुलासा, 600 से अधिक भ्रष्ट अधिकारियों से जुड़े 171 मामले अभियोजन की मंजूरी के लिए लंबित
सीवीसी की वार्षिक रिपोर्ट 2021 (CVC annual report 2021) में कहा गया है कि कोयला और खान मंत्रालय के पास 11 कथित भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी की मांग करने वाले चार मामले और शिक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के पास तीन-तीन मामले लंबित हैं।

नई दिल्ली, एजेंसी। केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भ्रष्टाचार के आरोपी 600 से अधिक अधिकारियों से जुड़े 171 मामले विभिन्न सरकारी विभागों से अभियोजन की मंजूरी के लिए लंबित हैं। सबसे ज्यादा वित्तीय सेवा विभाग के पास लंबित है।
विभागों में लंबित मामले--
-- वित्तीय सेवा विभाग (DFS) में 325 अधिकारियों के खिलाफ 65 मामले लंबित हैं।
-- सीमा शुल्क और केंद्रीय उत्पाद शुल्क विभाग में 67 अधिकारियों के खिलाफ 12 मामले लंबित है।
-- रेल मंत्रालय की बात करें तो 30 अधिकारियों से जुड़े 11 मामले लंबित हैं।
-- रक्षा मंत्रालय के 19 अधिकारियों के खिलाफ 11 मामले लंबित हैं।
गौरतलब है कि इन मामलें की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation) कर रही है।
कई राज्य सरकारों के पास लंबित हैं मामले
रिपोर्ट के अनुसार, 31 दिसंबर, 2021 तक कार्मिक मंत्रालय, लोक शिकायत और पेंशन विभाग के पास 15 अधिकारियों पर मुकदमा चलाने की मंजूरी की मांग करने वाले आठ मामले उत्तर प्रदेश सरकार के पास लंबित थे। रिपोर्ट में आगे बताया गया कि आठ अधिकारियों से जुड़े ऐसे पांच मामले जम्मू-कश्मीर सरकार के पास लंबित हैं और 36 अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मंजूरी मांगने वाले चार मामले दिल्ली सरकार के पास लंबित हैं।
सीवीसी की वार्षिक रिपोर्ट 2021 (CVC annual report 2021) में कहा गया है कि कोयला और खान मंत्रालय के पास 11 कथित भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी की मांग करने वाले चार मामले और शिक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के पास तीन-तीन मामले लंबित हैं। आयकर विभाग,आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय और श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने भी तीन-तीन मामले लंबित रखे हैं।
जानें क्या कहता है संशोधित भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988
सीवीसी ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 19 के तहत अभियोजन की मंजूरी देने का अनुरोध मिलने पर सभी संबंधित मंत्रालयों, विभागों और संगठनों को तेजी से निर्णय लेने की जरूरत है। इसमें कहा गया है कि संशोधित भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 में यह भी कहा गया है कि सरकार या किसी सक्षम प्राधिकारी को तीन महीने के भीतर अपना फैसला सुनाने की जरुरत है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे मामलों में जहां अटॉर्नी जनरल या उनके कार्यालय में किसी कानून अधिकारी के साथ परामर्श की आवश्यकता होती है, हालांकि अवधि एक महीने के लिए बढ़ाई जा सकती है लेकिन इसका कारण लिखित रूप में दर्ज किया जाना चाहिए।
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