प्रेसीडेंशियल रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि वह तमिलनाडु मामले में राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए विधेयकों पर निर्णय लेने की समय सीमा तय करने के फैसले को सही न माने। सरकार ने कहा कि फैसले का वह भाग बना रहेगा जो तमिलनाडु के विधेयकों के बारे में है। कोर्ट ने यह भी पूछा कि अगर राज्यपाल कर्तव्य में विफल रहते हैं तो क्या न्यायालय शक्तिहीन रहेगा।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि कोर्ट घोषित करे कि तमिलनाडु के मामले में दिए फैसले में राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए विधेयकों पर निर्णय लेने की समय सीमा तय करना सही कानूनी व्यवस्था नहीं है। हालांकि केंद्र सरकार ने कहा कि उस फैसले का वह भाग बना रहेगा और वह डिक्री भी लागू रहेगी जो तमिलनाडु के विधेयकों के बारे में है।
केंद्र सरकार की ओर से यह अनुरोध सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रेसीडेंशियल रिफरेंस पर केंद्र की ओर से पक्ष रखते हुए संविधान पीठ से किया। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने भी केंद्र सरकार से सवाल किया कि अगर राज्यपाल अपने कर्तव्य में विफल रहते हैं तो क्या न्यायालय शक्तिहीन होकर निष्कि्रय बैठा रहे। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने प्रेसीडेंशियल रिफरेंस पर सभी पक्षों की बहस पूरी होने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने गत अप्रैल में तमिलनाडु के मामले में फैसला दिया था जिसमें राज्य विधानसभा से पारित विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय कर दी थी। कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा रोके रखे गए तमिलनाडु के दस विधेयकों को मंजूर भी घोषित कर दिया था। यह पहला मौका था जबकि सीधे कोर्ट के आदेश से विधेयकों को मंजूरी मिली थी।
इस फैसले के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने रिफरेंस भेजकर 14 कानूनी सवालों पर कोर्ट की राय मांगी है। राष्ट्रपति ने पूछा है कि जब संविधान में विधेयकों पर निर्णय लेने के संबंध में राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए कोई समय सीमा तय नहीं है तो क्या सुप्रीम कोर्ट समय सीमा तय कर सकता है। हालांकि रिफरेंस में सीधे तौर पर तमिलनाडु के फैसले को चुनौती नहीं दी गई है लेकिन जो सवाल पूछे गए हैं वो सभी सवाल उस फैसले के इर्द गिर्द ही घूमते हैं।
प्रेसीडेंशियल रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी
रिफरेंस में पूछे गए सवाल अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्य विधानसभा से पास विधेयकों पर राज्यपाल और राष्ट्रपति के निर्णय लेने की शक्तियों से संबंधित हैं। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पीएस नरसिम्हा, और अतुल एस चंदुरकर की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने प्रेसीडेंशियल रिफरेंस पर दस दिनों तक लंबी सुनवाई की।
केंद्र और बीजेपी शासित राज्यों ने समय सीमा तय किए जाने का किया विरोध
केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्यों ने रिफरेंस के पक्ष में बहस की यानी राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए कोर्ट द्वारा समय सीमा तय किये जाने का विरोध किया जबकि गैर भाजपा शासित राज्यों तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल और हिमाचल प्रदेश ने रिफरेंस का विरोध किया और कहा कि राज्यपाल अनिश्चितकाल तक विधेयक नहीं रोक सकते। राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह से काम करेंगे उनके पास विवेकाधिकार नहीं है।
इन राज्यों ने राज्यपाल व राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय किये जाने का भी समर्थन किया। यह भी कहा कि जब किसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला हो तो उस पर प्रेसीडेंशियल रिफरेंस पर कोर्ट को विचार नहीं करना चाहिए।
साथ ही कहा कि तमिलनाडु के मामले में दिया गया कोर्ट का फैसला बाध्यकारी है और प्रेसीडेंशियल रिफरेंस में सुप्रीम कोर्ट सिर्फ राय देगा उसमें फैसले को रद नहीं कर सकता।गुरुवार को केंद्र की ओर से सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रतिउत्तर दिया। इसके अलावा अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने भी पक्ष रखा।
मेहता ने कोर्ट के राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय करने का विरोध किया और संविधान में शक्तियों के प्रथक्कीकरण का हवाला दिया। चीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि वह शक्तियों के प्रथक्करण के सिद्धांत में दृढ़ विश्वास रखते हैं। यह भी मानते हैं कि न्यायिक सक्रियता होनी चाहिए लेकिन ये न्यायिक दुस्साहस नहीं बनना चाहिए।
विधायी विवेकाधीन कार्यों के संबंध में कोर्ट को आदेश नहीं देना चाहिए- मेहता
इसके साथ ही अगर लोकतंत्र का एक पक्ष अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहता है तो क्या कोर्ट जो संविधान का संरक्षक है शक्तिहीन होकर निष्क्रिय बैठा रहेगा। जवाब में मेहता ने कहा कि कार्यपालिका और विधायिका भी संविधान की संरक्षक हैं। संवैधानिक पदाधिकारी (राज्यपाल) के विधायी विवेकाधीन कार्यों के संबंध में कोर्ट को आदेश नहीं देना चाहिए, इससे शक्तियों के प्रथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन होता है।
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