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    'संविधान में कोई सुप्रीम नहीं', राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए डेडलाइन मुद्दे पर केंद्र का जवाब

    Updated: Sat, 16 Aug 2025 05:38 PM (IST)

    केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए विधानसभा से पास बिलों पर फैसला करने की समयसीमा तय करना संविधान के खिलाफ होगा। सरकार के अनुसार ऐसा करने से संवैधानिक अव्यवस्था हो सकती है और यह न्यायपालिका का कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप होगा।

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    राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए बिलों पर समयसीमा तय करना संविधान के खिलाफ (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधानसभा से पास हुए बिलों पर फैसला करने की समयसीमा तय करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर केंद्र सरकार का कहना है कि इस तरह समय तय करना संविधान के खिलाफ होगा और इससे संवैधानिक अव्यवस्था पैदा हो सकती है।

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    केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को लिखित जवाब में कहा है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल पर समय सीमा थोपना न्यायपालिका द्वारा अपने अधिकार से आगे बढ़ने जैसा है। इससे सरकार की अलग-अलग शाखाओं (विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका) के बीच संतुलन बिगड़ जाएगा।

    सॉलिसिटर जनरल का तर्क

    सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को भी आर्टिकल 142 के तहत मिले विशेष अधिकारों से संविधान में बदलाव करने की इजाजत नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ दिक्कतें जरूर हो सकती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि राज्यपाल जैसे उच्च पद को निचले स्तर पर दिखाया जाए।

    मेहता के मुताबिक, राष्ट्रपति और राज्यपाल लोकतांत्रिक शासन की ऊंची अवधारणाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। अगर कहीं गलती होती है तो उसे राजनीतिक और संवैधानिक तरीकों से ठीक किया जाना चाहिए न कि अदालत के दखल से।

    संविधान में क्या लिखा है?

    संविधान के आर्टिकल 200 के अनुसार, राज्यपाल के पास बिल पर चार विकल्प होते हैं...

    • 1. बिल को मंजूरी देना।
    • 2. मंजूरी रोकना।
    • 3. बिल को दोबारा विचार के लिए विधानसभा को लौटाना। (लेकिन अगर विधानसभा दोबारा पास कर देती है तो राज्यपाल को मंजूरी देनी ही होगी)
    • 4. बिल को राष्ट्रपति के पास भेजना, अगर वह संविधान या राष्ट्रीय महत्व से जुड़ा मामला है तो।

    अप्रैल 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया में समयसीमा तय करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि राष्ट्रपति को तीन महीने और राज्यपाल को एक महीने के भीतर बिल पर फैसला करना होगा।

    राष्ट्रपति ने कोर्ट से मांगी राय

    सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश पर सवाल उठाते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मु ने कोर्ट से राय मांगी थी। उन्होंने आर्टिकल 143 के तहत 14 सवाल भेजे हैं, जिनमें राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों पर स्पष्टिकरण मांगा गया है।

    सुनवाई का समय हुआ तय

    सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसकी अध्यक्षता चीफ जस्टिस बीआर गवई कर रहे हैं उन्होंने इस मामले पर सुनवाई के लिए समय तय कर दिया है। केंद्र और राज्यों को 12 अगस्त तक अपने लिखित जवाब दाखिल करने को कहा गया था।

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