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    Supreme Court: महिला ने मांगा 500 करोड़ गुजारा भत्ता, सुप्रीम कोर्ट ने दिलाए 12 करोड़ रुपये; ये है पूरा मामला

    सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को एक मामले की सुनवाई में महिला द्वारा पति से गुजारा भत्ता के रूप में 500 करोड़ रुपये दिलाने की मांग की गई। अदालत ने दावे को दरकिनार करते हुए पति को 12 करोड़ रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया। इस मामले में पति ने सभी दावों को खत्म करने के लिए आठ करोड़ रुपये के भुगतान पर सहमति जताई।

    By Agency Edited By: Jeet Kumar Updated: Fri, 20 Dec 2024 05:40 AM (IST)
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    महिला ने मांगा 500 करोड़ गुजारा भत्ता, सुप्रीम कोर्ट ने दिलाए 12 करोड़ रुपये (फोटो- पीटीआई)

    पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को एक मामले की सुनवाई में महिला द्वारा पति से गुजारा भत्ता के रूप में 500 करोड़ रुपये दिलाने की मांग की गई। अदालत ने दावे को दरकिनार करते हुए पति को 12 करोड़ रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने एक-दूसरे से अलग रह रहे जोड़े के विवाह को भंग कर दिया और कहा कि अब इसमें इतनी दरार आ गई है, जिसे भरा नहीं जा सकता।

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    आठ करोड़ रुपये के भुगतान पर सहमति जताई

    महिला ने दावा किया था कि अमेरिका और भारत में कई व्यवसाय वाले उसके पति की कुल परिसंपत्ति करीब 5000 करोड़ रुपये है। पूर्व पत्नी से अलगाव होने पर 500 करोड़ रुपये का भुगतान किया था। इसलिए उसे भी इतनी ही रकम दी जाए। इस पर पीठ ने कहा कि अक्सर देखा गया है कि गुजारा भत्ता के लिए आवेदन के समय जीवनसाथी की संपत्ति, स्थिति और आय बताई जाती है और ऐसी रकम मांग ली जाती है जो उसकी संपत्ति के बराबर हो। इस प्रथा में असंगति है।

    अगर दुर्भाग्यवश अलगाव के बाद पति कंगाल हो जाता है तब भी क्या पत्नी संपत्ति में बराबरी की मांग के लिए तैयार होगी। गुजारा भत्ता कई चीजों पर निर्भर करता है और इसका कोई सीधा नियम नहीं हो सकता। इस मामले में पति ने सभी दावों को खत्म करने के लिए आठ करोड़ रुपये के भुगतान पर सहमति जताई।

    पति से वसूली के लिए नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    लेकिन पीठ ने कहा कि इससे पूर्व पुणे की अदालत ने 10 करोड़ रुपये गुजारा भत्ता का आकलन किया है, जिसे स्वीकार किया जाता है और दो करोड़ रुपये याचिकाकर्ता को एक फ्लैट खरीदने के लिए अलग से दिए जाएं। हालांकि, इस दौरान पीठ ने कहा कि वैवाहिक विवादों से जुड़ी अधिकांश शिकायतों में दुष्कर्म, आपराधिक धमकी और विवाहिता के साथ क्रूरता करने समेत आइपीसी की धाराओं को लगाने की प्रवृत्ति देखी गई है और कई बार इसकी निंदा भी की जा चुकी है।

    महिलाओं को इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए कि उन्हें मिले कानून के ये सख्त प्रावधान उनके कल्याण के लिए फायदेमंद हैं, ना कि पतियों को दंड देने, धमकाने, हावी होने या जबरन वसूली के लिए मिले अधिकार। कभी-कभी महिलाएं उनकी सुरक्षा और सशक्तीकरण के लिए बने कानूनों का दुरुपयोग करती हैं।

    पत्नी और स्वजन को लेकर सुप्रीम की अहम टिप्पणी

    अदालत ने उन मामलों पर भी टिप्पणी की, जिसमें पत्नी और स्वजन गंभीर आरोपों के साथ शिकायत दर्ज क उसके राकर इसका इस्तेमाल पति और उसके स्वजन से अपनी मांगें पूरी करने के एक हथियार के रूप में करते हैं और ज्यादातर इनका मकसद पैसा वसूलना होता है।

    जादू-टोने के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित करना संवैधानिक भावना पर धब्बा: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि जादू-टोने के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित करना संवैधानिक भावना पर धब्बा है। शीर्ष न्यायालय ने जादू-टोने के नाम पर महिलाओं को निर्वस्त्र करने और उनके साथ दु‌र्व्यवहार करने के आरोपित व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगाने वाले आदेश की निंदा की।

    जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति की गरिमा से समझौता किया जाता है, तो मानव होने के नाते तथा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह के विभिन्न कानूनों द्वारा प्रदत्त उनके मानवाधिकार खतरे में पड़ जाते हैं।

    कोर्ट ने कहा कि जादू टोना जैसी प्रथा का परित्याग किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि इस तरह के आरोप लंबे समय से चले आ रहे हैं और अक्सर इनके शिकार लोगों को दुखद परिणाम भुगतने पड़ते हैं।

    एनसीआरबी के रिपोर्ट का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा, जादू-टोना, अंधविश्वास, पितृसत्ता और सामाजिक नियंत्रण से गहराई से जुड़ा हुआ है। इस तरह के आरोप अक्सर उन महिलाओं के खिलाफ लगाए जाते हैं, जो या तो विधवा या बुजुर्ग होती हैं।

    पीठ ने यह भी कहा कि सम्मान समाज में किसी व्यक्ति के अस्तित्व का मूल है। कोई भी कार्य, जो किसी अन्य व्यक्ति या राज्य के कृत्य द्वारा सम्मान को कमजोर करता है, वह संभवत: भारत के संविधान की भावना के विरुद्ध है।

    Source: सुप्रीम कोर्ट में हुई मामले की पूरी सुनवाई और आदेश के आधार पर इस खबर को बनाया गया है। इस लिंक पर सुप्रीम कोर्ट का पूरा आदेश उपलब्ध है।

    https://api.sci.gov.in/supremecourt/2023/3848/3848_2023_8_1501_58087_Judgement_19-Dec-2024.pdf

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