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...तो इस कारण से खत्म हो जाएगी जीवाश्म ईंधन की जरूरत

इंग्लैंड में आक्सफोर्ड के निकट जेईटी टोकामैक नाम की मशीन की मदद से विज्ञानी न्यूक्लियर फ्यूजन के माध्यम से ऊर्जा उत्पादन के इस प्रयोग को अंजाम दे रहे हैं। यह मशीन का केंद्रीय भाग है। इंटरनेट मीडिया फोटो

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 11 Feb 2022 01:59 PM (IST)Updated: Fri, 11 Feb 2022 01:59 PM (IST)
ऊर्जा उत्पादन की यह प्रक्रिया सुरक्षित है। इंटरनेट मीडिया फोटो

नई दिल्‍ली, जेएनएन। जलवायु परिवर्तन और उससे जुड़े खतरों की बात हो तो जीवाश्म ईंधनों के कारण होने वाले कार्बन उत्सर्जन की अनदेखी नहीं की जा सकती है। दुनियाभर में प्रदूषण में बहुत बड़ी हिस्सेदारी अलग-अलग कार्यो में प्रयोग होने वाले जीवाश्म ईंधन की होती है। यही कारण है कि विज्ञानी लगातार स्वच्छ ईंधन के विकल्पों को तलाशने की दिशा में शोध कर रहे हैं। ब्रिटेन के विज्ञानियों द्वारा परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में किए गए हालिया प्रयोग ने उम्मीद की नई किरण दिखाई है। यह अब तक के न्यूक्लियर फिशन (नाभिकीय विखंडन) से इतर न्यूक्लियर फ्यूजन (नाभिकीय संलयन) आधारित प्रक्रिया है। यही प्रक्रिया सूर्य और कई अन्य तारों की ऊर्जा का स्रोत है। यदि प्रायोगिक रूप से सफल रहे तो ऊर्जा के इस स्रोत को अपनाने के बाद जीवाश्म ईंधन के प्रयोग की जरूरत नहीं रह जाएगी।

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शून्य कार्बन उत्सर्जन के साथ असीम ऊर्जा: न्यूक्लियर फ्यूजन की प्रक्रिया में असीम ऊर्जा बनती है। अच्छी बात यह है कि इसमें कार्बन उत्सर्जन शून्य रहता है। हालांकि इस प्रक्रिया में सेकेंड से भी कम समय में इतनी बड़ी मात्र में ऊर्जा निकलती है कि उसे संभालना संभव नहीं हो पाता है। विज्ञानी पिछले कई वर्षो से यह प्रयास कर रहे हैं कि फ्यूजन के माध्यम से लगातार कुछ समय तक ऊर्जा उत्पादित करने का तरीका ईजाद किया जा सके। अब ब्रिटेन के विज्ञानियों का दावा है कि उन्होंने लगातार पांच सेकेंड तक फ्यूजन के जरिये ऊर्जा उत्पादित करने में सफलता पाई है। देखने में यह समय भले ही कम लगे, लेकिन यह अब तक प्रायोगिक तौर पर संभव अधिकतम समय से दोगुना है।

पारंपरिक परमाणु ऊर्जा से सुरक्षित: पारंपरिक परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में न्यूक्लियर फिशन के माध्यम से ऊर्जा उत्पादित की जाती है। इसमें एक भारी परमाणु को तोड़कर दो छोटे परमाणु बनते हैं और ऊर्जा उत्पन्न होती है। इससे हजारों साल सक्रिय रहने वाला रेडियोएक्टिव कचरा बनता है, जो पर्यावरण एवं मनुष्यों के लिए बहुत घातक है। इनके संपर्क में आना कैंसर समेत कई गंभीर बीमारियों और स्थायी अपंगता का कारण बन सकता है। इससे इतर, न्यूक्लियर फ्यूजन की प्रक्रिया में मुख्य तौर पर हीलियम बनती है, जो निष्क्रिय गैस है। बहुत थोड़ी मात्र में ट्राइटियम भी प्रयोग होता है। यह रेडियोएक्टिव है, लेकिन बहुत जल्दी नष्ट हो जाता है। इसलिए ऊर्जा उत्पादन की यह प्रक्रिया सुरक्षित है।

इंग्लैंड में आक्सफोर्ड के नजदीक चल रहा है ऊर्जा उत्पादन का यह प्रयोग: हाल ही में प्रयोग से जुड़े विज्ञानियों ने जानकारी दी है कि 21 दिसंबर, 2021 को इस रिएक्टर की मदद से 59 मेगाजूल (5.9 करोड़ जूल) ऊर्जा रिकार्ड की गई। इस प्रयोग को ब्रिटेन के परमाणु ऊर्जा विभाग के साथ मिलकर यूरोफ्यूजन समूह अंजाम दे रहा है। यूरोफ्यूजन में यूरोप के 4,800 से ज्यादा विशेषज्ञ एवं छात्र जुड़े हैं। इस प्रक्रिया में कच्चे माल के रूप में डेटियम और ट्राइटियम का प्रयोग होता है, जो हाइड्रोजन के आइसोटोप (समस्थानिक) हैं। समुद्र के पानी में इनकी पर्याप्त उपलब्धता है।


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