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    क्या बिल की डेडलाइन सुप्रीम कोर्ट तय कर सकता है? राष्ट्रपति मुर्मु ने अदालत से पूछे ये 14 सवाल

    Updated: Thu, 15 May 2025 09:28 AM (IST)

    राज्यपालों और राष्ट्रपति को विधानसभाओं की तरफ से पारित विधेयक पर निर्णय लेने के लिए समय-सीमा निर्धारित की गई थी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा है अगर संविधान किसी विधेयक पर फैसला लेना का पूरा अधिकार देता है तो सुप्रीम कोर्ट (SC) इस मामले में बीच में पड़ रहा है।

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    बिल की डेडलाइन पर राष्ट्रपति मुर्मु ने पूछे थे सवाल

    आईएएनएस, नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के फैसले पर आपत्ति जताई है। इसमें राज्यपालों और राष्ट्रपति को विधानसभाओं की तरफ से पारित विधेयक पर निर्णय लेने के लिए समय-सीमा निर्धारित की गई थी। आईएएनएस की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का दौर लंबे समय तक जारी रहा था।

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    द्रौपदी मुर्मु ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से लगभग 14 सवाल पूछे हैं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को फैसला सुनाया था कि राज्यपाल को किसी विधेयक पर 3 महीने के अंदर फैसला लेना होगा। 

    क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

    यदि विधानसभा दोबारा विधेयक पारित करती है तो राज्यपाल को एक महीने के अंदर इसे स्वीकृति देनी होगी।आईएएनएस के मुताबिक, अगर कोई विधेयक राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तो राष्ट्रपति को तीन महीने के अंदर फैसले लेने होंगे । राष्ट्रपति मुर्मु ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर आपत्ति जताई है।

    राष्ट्रपति मुर्मु का SC से सवाल

    • जब राज्यपाल को भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत कोई विधेयक प्रस्तुत किया जाता है, तो उनके सामने संवैधानिक विकल्प क्या हैं?
    • अगर संविधान किसी विधेयक पर फैसला लेना का पूरा अधिकार देता है तो सुप्रीम कोर्ट (SC) इस मामले में बीच में हस्तक्षेप क्यों कर रहा है।
    • राष्ट्रपति ने कहा कि अनुच्छेद 200 और 201, जो राज्यपालों और राष्ट्रपति पर लागू होते हैं, विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को मंजूरी देने या न देने पर विचार करते समय उनके द्वारा अपनाई जाने वाली 'किसी समय-सीमा या प्रक्रिया का निर्धारण नहीं करते हैं।'
    • क्या राज्यपाल भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत किसी विधेयक को प्रस्तुत किए जाने पर अपने पास उपलब्ध सभी विकल्पों का प्रयोग करते समय मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सहायता और सलाह से बाध्य है?
    • क्या राज्यपाल द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत संवैधानिक विवेक का प्रयोग न्यायोचित है?
    • क्या भारत के संविधान का अनुच्छेद 361 भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के कार्यों के संबंध में न्यायिक समीक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है?
    • संवैधानिक रूप से निर्धारित समय सीमा और राज्यपाल द्वारा शक्तियों के प्रयोग के तरीके के अभाव में, क्या राज्यपाल द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत सभी शक्तियों के प्रयोग के लिए न्यायिक आदेशों के माध्यम से समयसीमाएं लगाई जा सकती हैं और प्रयोग के तरीके को निर्धारित किया जा सकता है?
    • क्या राष्ट्रपति को भारत के संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत संदर्भ के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट की सलाह लेने और राज्यपाल की राष्ट्रपति की सहमति के लिए विधेयक को सुरक्षित रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट की राय लेने की आवश्यकता है?
    • क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 और अनुच्छेद 201 के अंतर्गत राज्यपाल और राष्ट्रपति के निर्णय, कानून के लागू होने से पहले के चरण में सही हैं? क्या न्यायालयों के लिए किसी विधेयक के कानून बनने से पहले उसकी विषय-वस्तु पर न्यायिक निर्णय लेना स्वीकार्य है?
    • क्या संवैधानिक शक्तियों के प्रयोग और राष्ट्रपति/राज्यपाल के आदेशों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत किसी भी तरह से बदला जा सकता है? .
    • क्या राज्य विधानमंडल की तरफ से बनाया गया कानून भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल की सहमति के बिना लागू कानून है? क्या संविधान भारत के संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत मुकदमे के माध्यम से छोड़कर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच विवादों को हल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के किसी अन्य अधिकार क्षेत्र को रोकता है?
    • भारत के संविधान के अनुच्छेद 145(3) के प्रावधान के मद्देनजर, क्या इस माननीय न्यायालय की किसी भी पीठ के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह पहले यह तय करे कि उसके समक्ष कार्यवाही में शामिल प्रश्न ऐसी प्रकृति का है जिसमें संविधान की व्याख्या के रूप में कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं और इसे कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ को संदर्भित करे?
    • क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट की शक्तियां प्रक्रियात्मक कानून के मामलों तक सीमित हैं या भारत के संविधान का अनुच्छेद 142 ऐसे निर्देश जारी करने/आदेश पारित करने तक विस्तारित है जो संविधान या लागू कानून के मौजूदा मूल या प्रक्रियात्मक प्रावधानों के विपरीत या असंगत हैं?

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