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कोविड-19 के लिए केवल गणितीय मॉडल पर नहीं रह सकते निर्भर : ICMR

किसी नए वायरस के संक्रमण के बारे में इस तरह के अनुमान के आधार पर नीतिगत फैसले लेना या आगे की योजनाएं बनाना बहुत खतरनाक हो सकता है। इसलिए इनसे बचना चाहिए।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Thu, 18 Jun 2020 07:14 PM (IST)Updated: Thu, 18 Jun 2020 07:14 PM (IST)
कोविड-19 के लिए केवल गणितीय मॉडल पर नहीं रह सकते निर्भर : ICMR
कोविड-19 के लिए केवल गणितीय मॉडल पर नहीं रह सकते निर्भर : ICMR

नई दिल्ली, प्रेट्र। कोविड-19 महामारी की गंभीरता का अंदाजा लगाने के लिए अपनाए जा रहे बहुत से गणितीय मॉडल भरोसेमंद नहीं हैं। इनके आधार पर संक्रमण के मामलों और मौतों का सही अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) के इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित संपादकीय में यह बात कही गई है।

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संपादकीय में कहा गया है कि किसी नए वायरस के संक्रमण के बारे में इस तरह के अनुमान के आधार पर नीतिगत फैसले लेना या आगे की योजनाएं बनाना बहुत खतरनाक हो सकता है। इसलिए इनसे बचना चाहिए। 'भारत में कोविड-19 महामारी के पहले 100 दिनों से मिले अनुभव' शीर्षक से यह लेख राजेश भाटिया ने लिखा है। वह डब्ल्यूएचओ के साउथ-ईस्ट एशिया रीजनल ऑफिस में संचारी रोग विभाग के डायरेक्टर रह चुके हैं।

इसकी सह लेखिका आइसीएमआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी की डायरेक्टर प्रिया अब्राहम हैं। लेख में कहा गया है कि भारत में कई गणितीय मॉडल के आधार पर वायरस की गंभीरता का अनुमान लगाया गया है, लेकिन इनमें से कोई सही साबित नहीं हुआ। पहले 100 दिन में यह भी सामने आया कि प्रमाणों के आधार पर बनी रणनीतियां वायरस के प्रसार को रोकने में थोड़े समय ही कारगर रह पाती हैं।

लॉकडाउन के बाद भी नई-नई जगहों पर संक्रमण के मामले आना इस बात का प्रमाण है। लेख में कहा गया है कि रणनीति बनाते समय स्थानीय स्तर पर जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर माइक्रो प्लानिंग होनी चाहिए। हालांकि लेख में कहा गया है कि लॉकडाउन का असर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इसने स्वास्थ्य व्यवस्था को तैयार होने का मौका दिया। एक से 10 मई के दौरान देश में संक्रमण के मामलों को देखते हुए इसमें कहा गया कि पूरे देश में महामारी का प्रकोप एक जैसा नहीं है। स्थानीय आधार पर ही नीतियां बनानी होंगी।

लेखकों का कहना है कि देश में कम से कम 1,000 प्रयोगशालाएं होनी चाहिए, जहां संक्रमण की जांच हो सके। इसमें से हर जिले में कम से कम एक और मेट्रो शहरों में एक से ज्यादा प्रयोगशाला होनी चाहिए। संपादकीय में इस महामारी को रोकने में आम लोगों के योगदान को भी जरूरी बताया गया है।


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