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    खाद्यान्न प्रबंधन पर सीएसीपी के सुझाव, लघु व सीमांत किसानों से ही हो खरीद; 90 फीसद किसानों को होगा लाभ

    By Praveen Prasad SinghEdited By:
    Updated: Sun, 12 Jun 2022 06:30 AM (IST)

    सीएसीपी ने खाद्यान्न प्रबंधन को लेकर कई तरह के सुझाव दिए हैं जिसे किसानों के हित में बताया गया है। रबी व खरीफ सीजन में होने वाली अनाज खरीद की प्रक्रिया में संशोधन की जरूरत बताई गई है।

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    इन सिफारिशों को अमल में लाने से 90 फीसद किसानों को होगा लाभ, खाद्य सब्सिडी घटाने में मिलेगी मदद

    सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली: खाद्यान्न के सरप्लस स्टॉक की समस्या से निजात पाने के लिए कृषि लागत व मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने अपनी हालिया सिफारिशों में सुझाव दिया है कि चालू खरीद सीजन में केवल लघु व सीमांत किसानों से ही एमएसपी पर धान की खरीद की जाए। ऐसा करने से जहां 90 फीसद से अधिक किसानों को लाभ मिलेगा, वहीं खाद्य सुरक्षा के साथ खाद्य सब्सिडी को संतुलित बनाने में मदद मिल सकती है। चालू खरीफ सीजन 2022-23 के लिए सीएसीपी ने अपनी सिफारिशों में इसका विस्तार से जिक्र किया है। सिफारिशों में कहा गया है कि बाकी बड़े किसानों के लिए अधिकतम दो हेक्टेयर की उपज की खरीद की सीमा तय होनी चाहिए।

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    ढाई लाख करोड़ रुपए पहुंचने वाली है खाद्य सब्सिडी

    सीएसीपी ने खाद्यान्न प्रबंधन को लेकर कई तरह के सुझाव दिए हैं जिसे किसानों के हित में बताया गया है। रबी व खरीफ सीजन में होने वाली अनाज खरीद की प्रक्रिया में संशोधन की जरूरत बताई गई है। सुझावों पर अमल से सरप्लस अथवा गैर जरूरी स्टॉक के रखरखाव पर खर्च होने वाली सब्सिडी से बचा जा सकता है। वर्तमान में इसकी सख्त जरूरत है, जब खाद्य सब्सिडी बिल बढ़कर ढाई लाख करोड़ रुपए पहुंचने वाला है। दरअसल ऐसी सिफारिश से पंजाब और हरियाणा के बड़े किसान प्रभावित हो सकते हैं। वर्ष 2015-16 के गणना के मुताबिक पंजाब में किसानों की औसत जोत 3.62 हेक्टेयर और हरियाणा में 2.22 हेक्टेयर है। इसके मुकाबले राष्ट्रीय स्तर पर प्रति किसान की औसत जोत 1.08 हेक्टेयर है।

    सरप्लस अनाज के रखरखाव पर होता है भारी खर्च

    केंद्रीय पूल के लिए धान की होने वाली खरीद में 76 फीसद तक की वृद्धि हो चुकी है। वर्ष 2015-16 में धान की खरीद जहां 5.10 करोड़ टन थी, वही वर्ष 2020-21 में बढ़कर 8.96 करोड़ टन हो गई है। इस तरह सरप्लस अनाज के रखरखाव पर भारी खर्च होता है। आयोग लंबे समय से किसानों की उपज का दाना दाना खरीदने वाली नीति को खत्म करने की सिफारिश करता रहा है। लेकिन राजनीतिक वजह से किसी सरकार ने इसे मंजूर नहीं किया। आयोग ने संभवत: पहली बार खरीद के लिए छोटे व मझोले किसानों के लिए ही खोलने का सुझाव दिया है। उसका मानना है कि इससे किसानों के हित साधने के साथ खजाने की सेहत में भी सुधार हो सकता है।

    देश में कुल 14 फीसद हैं बड़े किसान

    वर्ष 2015-16 की कृषि जनगणना के मुताबिक कुल किसानों में लघु व सीमांत किसानों की संख्या 86 फीसद है जिनके पास दो हेक्टेयर से भी कम भूमि है। जबकि देश में कुल 14 फीसद बड़े किसान हैं। लेकिन वास्तविक खेती वाली जमीन के हिसाब से देखें तो लघु व सीमांत किसानों के पास मात्र 47 फीसद जमीन है। इसके मुकाबले बड़े किसानों की खेती वाली जमीन में हिस्सेदारी 53 फीसद पहुंच जाती है। किसान नेता सुधीर पंवार का कहना है 'इस सुझाव पर अमल की बात करें तो सरकार को एक अलग तरह की चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। लघु व सीमांत किसानों के पास अपनी उपज का बड़ा हिस्सा खुद की जरूरत भर का ही होता है। उनके पास बेचने के लिए बहुत सरप्लस अनाज नहीं होता। ऐसे में बड़े किसानों को सरकारी खरीद प्रणाली से दूर करना बहुत आसान नहीं होगा। सरकार को राशन प्रणाली और अन्य जरूरतों के लिए खुले बाजार में उतरना पड़ सकता है। इस तरह की सिफारिशों के फिलहाल बहुत मायने नहीं हैं।'

    बफर स्टॉक के बराबर ही हो खरीद

    सीएसीपी की सिफारिशों में आगे यह भी कहा गया है कि सरकार को अपनी राशन प्रणाली और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के साथ बफर स्टॉक के बराबर ही खरीद करनी चाहिए। खाद्यान्न खरीद की एक सीमा तय करनी चाहिए। इससे किसान उन फसलों की खेती की ओर उन्मुख होंगे जिसमें उन्हें खुले बाजार का समर्थन प्राप्त होगा। उदाहरण के तौर पर दलहनी और तिलहनी फसलों की ओर झुकाव बढ़ेगा। आयोग ने किसानों को भावांतर योजना की तर्ज पर कुछ और उपाय तलाशने चाहिए, जिससे किसान फसल विविधीकरण की ओर बढ़ें। कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आयोग और कमेटियां कई तरह के सुझाव और सिफारिशें देती रहती हैं। सरकार फिलहाल इस तरह के किसी प्रस्ताव पर विचार नहीं कर रही है।