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    Budget 2026: किसानों से आम और खास लोगों तक... मोदी सरकार का क्या है प्लान?

    Updated: Mon, 29 Dec 2025 08:36 PM (IST)

    वैश्विक व्यापार युद्ध और संरक्षणवाद के बीच 1 फरवरी को आने वाला आम बजट भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। एक ओर 8.2% की शानदार जीडीपी ग्रोथ, GST 2.0 सुधार ...और पढ़ें

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    क्या बजट 2026 में मोदी सरकार देगी मंदी को मात?

    स्मार्ट व्यू- पूरी खबर, कम शब्दों में

    जागरण टीम, नई दिल्‍ली। दुनिया बदलाव के दौर से गुजर रही है। व्यापार के पहले से स्थापित तौर- तरीकों में बदलाव आ रहा है। अमेरिका और चीन जैसे देश दूसरे देशों से अपने हित में फैसले कराने के लिए व्यापार को हथियार बना रहे हैं। संरक्षणवादी उपाय आम हो गए हैं। ऐसे में व्यापार और सप्लाई चेन के मोर्चे पर चुनौतियां बहुत बढ़ गई हैं। भारत भी इससे प्रभावित हुआ है।
     
    अमेरिका की टैरिफ नीतियों से देश के निर्यातकों पर दबाव बढ़ गया है। ऐसे में आगामी आम बजट बेहद अहम हो गया है। अपेक्षा है कि आगामी एक फरवरी को आने वाला बजट आम लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के साथ उद्योग और वैश्विक व्यापार से जुड़ी चुनौतियां का सामना करने के लिए रोडमैप प्रस्तुत करेगा। तमाम हितधारक बजट के लिए सरकार को अपने-अपने सुझाव दे रहे हैं। ऐसे में आम बजट कैसा होना चाहिए, इसकी पड़ताल आज प्रासंगिक है...  
     

    अर्थव्यवस्था के सकारात्मक पक्ष

     

    1. आर्थिक वृद्धि दर

     
    वित्त वर्ष 2025-26 की दूसरी तिमाही (जुलाई-अक्टूबर) में भारत की जीडीपी 8.2 प्रतिशत की प्रभावशाली दर से बढ़ी, जो पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही में 5.6 प्रतिशत थी। यह बीती आठ तिमाहियों में सबसे तेज गति है। इस गति को मजबूत घरेलू खपत, कृषि उत्पादन में वृद्धि और सरकारी खर्च में बढ़ोतरी से बल मिला।
     
    इस मजबूती को देखते हुए रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष के लिए आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान बढ़ाकर 7.3 प्रतिशत कर दिया है। आयकर में कटौती, जीएसटी 2.0 सुधार मौद्रिक सहजता और कम खाद्य मुद्रास्फीति की मदद से खपत में मजबूती आने की उम्मीद है। इससे अर्थव्यवस्था का चक्का और तेजी से घूमेगा और सरकार के खजाने में ज्यादा राशि आएगी।
     
    Union Budget
     

    8.2% की प्रभावशाली दर से बढ़ी है जुलाई-अक्टूबर तिमाही में भारत की जीडीपी, पिछली आठ तिमाही में सबसे अधिक।

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    2. व्यापार समझौते

    भारत की विदेश व्यापार संरचना नए समझौतों और रणनीतिक वार्ताओं के कारण तेजी से बदल रही है। 2025 तक भारत के पास 18 मुक्त व्यापार समझौते हैं और हाल ही में ब्रिटेन और यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (ईएफटीए) के साथ ऐतिहासिक समझौते किए हैं, जिससे लगभग शून्य टैरिफ और निवेश के अवसर खुले हैं।
     
    द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ बातचीत आगे बढ़ रही है। साथ ही बाजार पहुंच को व्यापक बनाने के लिए न्यूजीलैंड के साथ हाल ही में मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप दिया गया है।


    18 मुक्त व्यापार समझौते हैं भारत के पास वर्तमान में, अन्य देशों से चल रही है बात।

    3. लगातार बढ़ता पूंजीगत खर्च

    प्रमुख इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्रों पर सरकार का पूंजीगत खर्च वित्त वर्ष 20 और वित्त वर्ष 25 के बीच 38.8 प्रतिशत बढ़ा। वित्त वर्ष 2025-26 में केंद्रीय बजट में 11.21 लाख करोड़ पूंजीगत खर्च के लिए आवंटित किए गए।
     
    अप्रैल और अगस्त 2025 के बीच सरकार ने बजट अनुमानों का 38.5 प्रतिशत इस्तेमाल किया, जबकि पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में यह 27.1 प्रतिशत था।
    Union Budget Inside 1
     
    38.8% बढ़ा है वित्त वर्ष 20 और 25 के बीच प्रमुख इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्रों पर पूंजीगत खर्च।
     

    4. नियंत्रण में महंगाई

     
    आरबीआई ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए अपने महंगाई के अनुमान को 3.1 प्रतिशत से घटाकर 2.6 प्रतिशत कर दिया है। कीमतों में लगातार नरमी बनी हुई है।
     
    यह नरमी लगातार नौ महीनों तक खाद्य वस्तुओं की कीमतों में 10.5 प्रतिशत की गिरावट के कारण हुई। इसके साथ ही अनुकूल मौसम की स्थिति, अच्छी खरीफ फसल, पर्याप्त जलाशय स्तर और खाद्यान्न का बफर स्टॉक भी इसके कारण हैं।

    इसके अलावा, 22 सितंबर 2025 से प्रभावी जीएसटी दरों को तार्किक बनाए जाने से सीपीआई बास्केट के लगभग 11.4 प्रतिशत हिस्से में कीमतें कम होने की संभावना है, जिससे आने वाली तिमाहियों में महंगाई में और कमी आएगी। पिछली तीन तिमाहियों में महंगाई आरबीआई की चार प्रतिशत रेंज के दायरे में रही है।
     
    4% की रेंज में रही है महंगाई पिछली तीन तिमाहियों में।
     

    5. कर और संरचनात्मक नीति सुधार

     
    सितंबर 2025 में लागू किए गए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) 2.0 सुधार भारत की अप्रत्यक्ष कराधान प्रणाली में एक महत्वपूर्ण बदलाव हैं। इस बदलाव ने प्रणाली को चार दर स्लैब से घटाकर दो- पांच प्रतिशत और 18 प्रतिशत किया गया है।
     
    विलासिता वस्तुओं और तंबाकू उत्पादों के लिए 40 प्रतिशत की विशेष दर बनाई गई है। इससे प्रमुख क्षेत्रों में करों को तर्कसंगत बनाया गया।  

    प्रत्यक्ष कर के मोर्चे पर आयकर दर में कटौती ने खर्च योग्य आय को बढ़ाया है, जिससे निजी उपभोग और घरेलू मांग को समर्थन मिला है, खासकर मध्यम वर्ग के हाथों में।
    Anil Bhardwaj Fislley
     
    कुल मिलाकर इन उपायों से खरीदारी की शक्ति में सुधार करके, मुख्य उपभोक्ता श्रेणी में कीमतें कम करके और शहरी और अर्ध-शहरी बाजारों में ज्यादा खर्च को बढ़ावा देने से निजी खपत को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।

    घरों की मांग में यह नई तेजी वित्त वर्ष 2025-26 में आर्थिक वृद्धि के मुख्य ड्राइवर के तौर पर घरेलू खपत को मजबूत करेगी। इससे अर्थव्यवस्था और मजबूत होगी।
     
    12 लाख तक की सालाना आय पर शून्य कर और आयकर दरों में कटौती ने खर्च योग्य आय को बढ़ाया है।
     

    6. सेवाओं के निर्यात में लचीलापन

    अप्रैल सितंबर 2025 के बीच भारत के सेवाओं के निर्यात में 6.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो वस्तु निर्यात के 3.1 प्रतिशत से अधिक है। वित्त वर्ष 2024 25 में कुल निर्यात में सेवाओं का योगदान लगभग 46.9 प्रतिशत था, जो आईटी और बिजनेस प्रोसेस मैनेजमेंट (बीपीएम), वित्तीय सेवाओं, पर्यटन और पेशेवर परामर्श में मजबूत गति से प्रेरित था।
     
    आगे चलकर, डिजिटल और ज्ञान- आधारित सेवाओं के लिए बढ़ती वैश्विक भांग भारत के बढ़ते टेलेट फूल और वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में गहरे जुहाव के कारण दृष्टिकोण सकारात्मक बना हुआ है।

    वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में संभावित मंदी और डाटा केंद्रों की बढ़ती मांग भी आइटी क्षेत्र में निवेश आकर्षित करेगी, जिससे भारत से सेवाओं की मांग बढ़ेगी। एआई साइबर सुरक्षा, फिनटेक और जलवायु सलाहकार जैसे उभरते क्षेत्रों में चल रहे विविधीकरण से भारत की वैश्विक सेवा निर्यात केंद्र के रूप में स्थिति और मजबूत होने की उम्मीद है।
     
    Union Budget inside

    46.9% था वित्त वर्ष 2024-25 मे कुल में निर्यात में सेवाओं का योगदान।
     

    अर्थव्यवस्था का नकारात्मक पक्ष


    1. भू-राजनीतिक झटके और युद्ध

     
    भू-राजनीतिक झटके प्रमुख कमजोरी बने हुए हैं। यूरोप और मध्य पूर्व में चल रहे संघर्षों और नेपाल, श्रीलंका व बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में राजनीतिक बदलावों से भारत के लिए राजनयिक संतुलन बनाने का काम जटिल हो गया है।
     
    ये तनाव ऊर्जा और महत्वपूर्ण खनिजों तक पहुंच और वैश्विक कमोडिटी आपूर्ति श्रृंखलाओं में रुकावटों का खतरा पैदा करते हैं। इससे व्यापार में रुकावट, आयातित मुद्रास्फीति और व्यापक चालू खाता घाटे का जोखिम पैदा होता है।
     
    आयातित तेल व गैस और महत्वपूर्ण खनिजों पर भारत की निर्भरता वैश्विक मूल्य झटकों और आपूर्ति में रुकावटों के प्रति जोखिम को बढ़ाती है।
     
    Vikas Singh Samgrah Vikas
     

    2. वैश्विक व्यापार में अस्थिरता और संरक्षणवादी कदम

     
    बढ़ते वैश्विक संरक्षणवाद और टैरिफ में वृद्धि, मूल नियमों में बदलाव और गैर-शुल्क बाधाओं से भारतीय निर्यातकों के लिए अनिश्चितता बढ़ रही है। वैश्विक व्यापार में टकराव का जीडीपी वृद्धि पर सीधा असर 40-80 आधार अंक तक सीमित हो सकता है, लेकिन एमएसएमई और रोजगार पर इसका असर काफी ज्यादा हो सकता है।

    एमएसएमई जीडीपी में 30.1 प्रतिशत का योगदान देते हैं और भारत के निर्यात में इनका योगदान 45.79 प्रतिशत है। एमएसएमई लगभग 29 करोड़ लोगों को रोजगार देते हैं। निर्यात बाजारों में रुकावट या व्यापार नियमों में सख्ती से नौकरियों और आय की स्थिरता के लिए गंभीर जोखिम पैदा होता है।
     
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    40-80 आधार अंक तक रह सकता है वैश्विक व्यापार में टकराव का जीडीपी वृद्धि पर असर।
     

    3. पूंजी का बाहर जाना और रुपये पर दबाव

     
    साल 2025 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की निकासी के कारण आरबीआई के दखल के बावजूद रुपये पर लगातार दबाव बना हुआ है। फरवरी और अक्टूबर 2025 के बीच रुपया 6 प्रतिशत कमजोर हुआ, जबकि 2024 की इसी अवधि में यह सिर्फ 0.6 प्रतिशत कमजोर हुआ था, जो हाल के वर्षों में  सबसे बड़ी गिरावट है।
     
    यह कमजोरी तब आई है जब डॉलर प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले कमजोर हुआ है, जो भारत की सापेक्ष कमजोरी को उजागर करता है।

    वैश्विक जोखिम से बचने, टैरिफ की चिंताओं और कॉरपोरेट कमाई में कमी के कारण विदेशी निवेशकों ने 26 दिसंबर तक इक्विटी बाजारों से 18 अरब डॉलर निकाल लिए हैं।
     
    हालांकि, पूंजी का बाहर जाना कोई नई बात नहीं है, लेकिन यह ट्रेंड रुपये के और कमजोर होने को लेकर चिंता पैदा करता। इससे आयात लागत बढ़ने के साथ महंगाई का दबाव बढ़ सकता है।

    18 अरब डॉलर से अधिक निकाले हैं विदेशी निवेशकों से इक्विटी बाजारों से टैरिफ चिंताओं और कॉरपोरेट कमाई में कमी के कारण। 

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