नहीं खड़ा हो पाया बसपा का ढहा हाथी
एक दशक से ज्यादा समय के बाद भी बसपा जम्मू-कश्मीर में अपने ढहे हाथी को खड़ा नहीं कर पाई है। विधानसभा चुनाव में बसपा को कोई सीट नहीं मिल पाई है। हालांकि इस बार पार्टी ने बड़ा बदलाव कर 55 प्रत्याशियों को चुनाव में उतारा था, मगर कहीं कामयाबी नहीं
जागरण संवाददाता, जम्मू। एक दशक से ज्यादा समय के बाद भी बसपा जम्मू-कश्मीर में अपने ढहे हाथी को खड़ा नहीं कर पाई है। विधानसभा चुनाव में बसपा को कोई सीट नहीं मिल पाई है। हालांकि इस बार पार्टी ने बड़ा बदलाव कर 55 प्रत्याशियों को चुनाव में उतारा था, मगर कहीं कामयाबी नहीं मिल पाई। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष तुलसी दास लंगेह ने कहा कि वे जनादेश को स्वीकार करते हैं। इस चुनाव में मोदी फैक्टर ने काम किया है। आधा दर्जन प्रत्याशियों ने नामांकन पत्र दाखिल दाखिल नहीं किए या अन्य प्रत्याशियों के हक में बैठ गए। हार से बसपा के खेमे में उदासी है।
वर्ष 1996 में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा ने कठुआ, सांबा, आरएस पुरा व भद्रवाह की चार सीटें जीतकर जम्मू-कश्मीर में अपना प्रभाव जमाया था। अगले चुनाव में सीटों का आंकड़ा और बढ़ाने के प्रयास हुए, मगर वर्ष 2002 के चुनाव में महज विजयपुर की एक ही सीट बसपा के पाले में आई। मगर जीतने वाला उम्मीदवार बाद में दूसरी पार्टी में जा मिला। इससे बसपा की झोली खाली हो कर रह गई। वर्ष 2008 में बसपा, जम्मू कश्मीर में सशक्त तरीके से उतरी और उत्तर प्रदेश के फार्मूले को जम्मू-कश्मीर में अपनाया गया।
उत्तर प्रदेश की तर्ज पर सोशल इंजीनिय¨रग करते हुए बसपा ने हर वर्ग के लोगों को चुनाव में हिस्सेदारी दी। बड़े बदलाव करते हुए उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा गया। मगर सोशल इंजीनिय¨रग का यह फार्मूला जम्मू-कश्मीर में पूरी तरह से ध्वस्त हो गया। बसपा को एक भी सीट नहीं मिल पाई। बसपा छोड़ चुके एक नेता ने बताया कि आरएसपुरा, सांबा, विजयपुर, कठुआ व बॉर्डर बेल्ट के क्षेत्रों में आरक्षित वर्ग के लोगों की अच्छी संख्या है। मगर नीतियों में स्पष्टता नहीं होने से बसपा इन लोगों के वोट को अपनी तरफ नहीं मोड़ पाई।
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