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    Veerappan: कहानी कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन की, जिसने वन अधिकारी के सिर से खेला था फुटबॉल

    By Jagran NewsEdited By: Nidhi Avinash
    Updated: Tue, 18 Oct 2022 12:38 PM (IST)

    Veerappan का नाम कौन नहीं जानता है। चंदन की तस्करी से अपराध की दुनिया में पैर रखने वाले इस दुर्दांत अपराधी को खत्म करने के लिए दो राज्यों की पुलिस ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। वीरप्पन तस्करी के अलावा कत्ल एवं अपहरण में भी सक्रिय था।

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    Veerappan: कहानी कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन की

    नई दिल्ली। आनलाइन डेस्क। 18 अक्टूबर 2004 यह वह तारीख है, जब 90 के दशक में दक्षिण भारत के जंगलों में राज करने वाले कुख्यात चंदन तस्कर और दस्यु सरगना वीरप्पन पुलिस मुठभेड़ (Veerappan Encounter) में मारा गया था।

    घनी मूंछों वाला वीरप्पन अब तक सुरक्षा बलों और कई राज्यों की सरकार के लिए सिरदर्द बना हुआ था। 8 जनवरी 1952 को कर्नाटक के गांव गोपिनाथम में जन्मे वीरप्पन का असली नाम मुनिस्वामी वीरप्पन (Muniswamy Veerappan) था। हाथी दांत के लिए सैकड़ों हाथी की हत्या और चन्दन तस्करी के लिए करीब 150 से अधिक लोगों की हत्या करने वाले इस खूंखार डाकू की यादें आज भी तमिलनाडु के लोगों की जहन में जिंदा हैं।

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    दस्यु सरगना ने वन अधिकारी का किया अपहरण

    वीरप्पन पहली बार सुर्खियों में 1987 में तब आया जब उसने दिगंबर नाम के एक वन अधिकारी को अगवा किया था। 90 के दशक में तमिलनाडु के जंगलों में पेट्रोलिंग के लिए पेट्रोल पुलिस (Petrol Police) हुआ करती थी, जिसकी जिम्मेदारी हीम शहीम गोपालकृष्ण को मिली थी। उनकी फिटनेस के कारण लोग उन्हे रैम्बो कहकर बुलाते थे।

    9 अप्रैल 1993 की सुबह तमिलनाडु के एक गांव कोलाथपुर में रैम्बो के नाम एक पोस्टर में भद्दी गालियां लिखी हुई थी। यह पोस्टर कोई और नहीं बल्कि चन्दन तस्कर वीरप्पन की ओर से जारी किया गया था। इस पोस्टर में गोपालकृष्ण को चुनौती दी गई थी कि अगर उनमें दम है तो वह आकर वीरप्पन को पकड़े।

    यह बात सुनकर आग-बबूला हुए रैम्बो ने तय किया कि वह इसी वक्त वीरप्पन को पकड़ने निकलेंगे। जैसे ही वह अपनी टीम के साथ जंगल में पलार पुल को पार कर रहे थे, तभी उनकी गाड़ी खराब हो गई। जीप को वहीं छोड़कर उन्होने पुल पर तैनात पुलिस से दो बसें लीं और 15 मुखबिरों, 4 पुलिसवालों और 2 वन गार्ड के साथ आगे बढ़े। पीछे आ रही दूसरी बस में तमिलनाडु पुलिस (Tamilnadu Police) के इंस्पेक्टर अशोक कुमार अपने 6 साथियों के साथ सवार थे।

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    साल 1987 में 21 लोगों की हत्या

    गोपालकृष्ण को अपने पूरे दस्ते के साथ आते देख वीरप्पन पहले ही खतरे को भांप लिया था। साथ ही उसने दूर से रैम्बो को बस की आगे की सीट पर बैठे देख लिया था। जैसे ही हीम शहीम गोपालकृष्ण के नेतृत्व वाला पेट्रोलिंग पुलिस (Petroling Police) का यह दस्ता एक निर्धारित स्थान पर पहुंचा वीरप्पन के गैंग के सदस्य साइमन ने बारूदी सुरंगों से जुड़ी हुई 12 बोल्ट कार बैटरी के तार जोड़ दिए। तभी एक भयंकर धमाका हुआ और बस कई फीट तक हवा में उछल गई।

    कुछ समय बाद इंस्पेक्टर अशोक कुमार वहां पहुंचे। उनकी आंखों के सामने चारों ओर शरीर के चीथड़े पड़े हुए थे। इस भयावह दृश्य के बीच उन्होंने 21 शव बरामद किए। इस घटना के बाद कुख्यात डाकू वीरप्पन का नाम देश के हर एक कोने में चर्चा में आ चुका था।

    वीरप्पन की दरिंदगी

    वीरप्पन की दरिंदगी का आलम ये था कि उसने एक बार भारतीय वन सेवा के एक अधिकारी पी श्रीनिवास (P.Srinivas) को मारने के लिए अपने छोटे भाई अरजुनन की मदद ली। पी श्रीनिवास लगातार अरजुनन से सम्पर्क में थे, अरजुनन ने श्रीनिवास से बताया कि वीरप्पन सरेंडर करना चाहता है लेकिन असल में यह श्रीनिवास को मारने के लिए वीरप्पन द्वारा बिछाया गया एक जाल था।

    श्रीनिवास अपने कुछ साथियों के साथ नामदेल्ही की तरफ वीरप्पन का सरेंडर लेने के लिए रवाना हुए लेकिन इस दौरान श्रीनिवास ने महसूस ही नहीं किया कि उनके पीछे से एक-एक करके उनके सभी साथी गायब हो चुके हैं।

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    सिर से खेली फुटबॉल

    तभी आगे लंबी-लंबी मूछों वाला एक शख्स हाथ में रायफल लिए झाड़ियों से निकलकर आ रहा था और जोर-जोर से हंस रहा था, श्रीनिवास उसे देखते ही समझ गए कि वह कोई और नहीं बल्कि वीरप्पन ही है। साथ ही उन्हें खतरे का भी आभास हो गया था, लेकिन जब तक वे कुछ और समझ पाते वीरप्पन ने उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी।

    वीरप्पन की हैवानियत यहीं नहीं रुकी उसने श्रीनिवास का सिर काटकर अपने घर ले गया और साथियों के साथ श्रीनिवास के सिर से फुटबॉल खेला था। श्रीनिवास वही अधिकारी थे जिन्होंने पहली बार वीरप्पन को गिरफ्तार किया था।

    अभिनेता राज कुमार का अपहरण

    साल 2000 की बात है, जब दक्षिण भारत के मशहूर फिल्म अभिनेता राज कुमार (Raj Kumar) का दस्यु सरगना वीरप्पन ने अपरहण कर लिया और उन्हे अपने पास 100 दिनों से अधिक समय तक रखा था। इन 100 दिनों के दरम्यान उसने तमिलनाडु और कर्नाटक दोनों ही सरकारों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था।

    वीरप्पन को मारने के लिए STF का गठन

    अब वीरप्पन कई राज्यों की सरकारों के लिए सिरदर्द बन चुका था। तभी तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने तमिलनाडु स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया। वीरप्पन के खात्मे लिए विजय कुमार (STF Chief Vijay Kumar) को 2003 में एसटीएफ का चीफ बनाया गया। ये वह दौर था जब वीरप्पन का कुनबा लगातार घटता जा रहा था। लोग उसकी गैंग छोड़कर जा रहे थे। इसी का फायदा उठाकर विजय कुमार ने वीरप्पन की गैंग में अपने आदमी भर्ती करा दिए। क्योंकि वीरप्पन को जंगल में मारना काफी मुश्किल काम था।

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    वीरप्पन को कैसे मारा गया था?

    एसटीएफ अपना काम कर रही थी, तभी उन्हें इनपुट मिला कि वीरप्पन 18 अक्टूबर 2004 को अपनी आंख का इलाज कराने के लिए जंगल से बाहर आ रहा है। एसटीएफ चीफ विजय कुमार और उनकी टीम इस दिन का इंतजार बड़ी बेसब्री से कर रही थी। एसटीएफ ने अपनी योजना पर काम करना शुरु किया । उन्होंने वीरप्पन के लिए एक एंबुलेंस का इंतजाम किया। तय योजना के अनुसार एंबुलेंस में वीरप्पन आकर बैठ गया। इस एंबुलेंस को एसटीएफ का आदमी ही चला रहा था। तभी उसने पूर्व निर्धारित रणनीति के अनुसार तय स्थान पर एंबुलेंस रोक दी और उतरकर भाग गया।

    यह वहीं जगह थी जहां पर हथियारों से लैस 22 एसटीएफ के जवान मौजूद थे। जब तक वीरप्पन कुछ समझ पाता उससे पहले पुलिस ने उसे चेतावनी दे दी। वीरप्पन और उसके साथियों ने एंबुलेंस के अन्दर से ही फायरिंग शुरु कर दी। तभी पुलिस ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए एके-47 से ताबड़तोड़ फायरिंग की। करीब 20 मिनट तक चली इस फायरिंग में चन्दन का सबसे बड़ा तस्कर वीरप्पन मारा गया।

    प्रस्तुतिकरण एवं संकलन, अभिषेक पाण्डेय