जंगलराज, SIR और वोटचोरी नहीं बल्कि... मिथिलांचल से चंपारण तक, ये हैं जनता के असल मुद्दे
बिहार में पहले चरण के मतदान के बाद भी, राजनीतिक दलों के चुनावी वादों और जनता के असली मुद्दों में अंतर दिख रहा है। पार्टियां जंगलराज जैसे मुद्दे उठा रही हैं, जबकि लोग रोजगार, बाढ़ और भ्रष्टाचार से परेशान हैं। युवा नीरज और रितेश रोजगार के लिए पलायन से तंग आ चुके हैं। मयंक बेरोजगारी को सबसे बड़ी समस्या मानते हैं। रामसेवक और असलम बाढ़ से परेशान हैं, और हर कोई सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार से त्रस्त है।

बिहार के मुद्दों पर जनता ने रखी अपनी राय।
संजय मिश्र, अररिया। बिहार में जबकि गुरूवार को पहले चरण की वोटिंग हो गई और दूसरे दौर के लिए प्रचार में अब केवल तीन दिन रह गए हैं तब भी अखाड़े में उतरी मुख्य राजनीतिक पार्टियों के चुनावी विमर्श तथा जनता के वास्तविक मुद्दों के बीच एक गैप साफ नजर आ रहा है।
सत्ता की दौड़ में शामिल दोनों प्रमुख राजनीतिक गठबंधन की ओर से जंगलराज से लेकर एसआईआर-वोटचोरी जैसे मुद्दे उछाले जा रहे हैं। लेकिन जमीन पर जनता पलायन-रोजगार, बाढ़, भ्रष्टाचार पर ही चर्चा करती दिखती है। राजनीतिक दलों को भी इसका अहसास है इसिलए घोषणापत्र में उन मुद्दों का जिक्र किया गया है। इन क्षेत्रों में मतदान दूसरे और अंतिम दौर में 11 नवंबर को होना है।
मतदाताओं का क्या कहना है?
रक्सौल के निकट आदापुर के ग्रामीण युवा नीरज कुमार सिंह तथा रीतेश प्रसाद के शब्दों में कहें तो हमें दिल्ली-मुंबई में एक कमरे में आठ-दस लोगों के साथ सोने और उसमें ही खाना बनाने का शौक नहीं है। अपने इलाके में पांच हजार महीना कम भी मिले तो काम करने को तैयार हैं। छठ में घर आए दोनों वोटिंग के बाद फिर प्रवास पर निकल जाएंगे मगर यह कहते हैं कि महागठबंधन के आने पर तेजस्वी के रोजगार देने के वादे तो अब जवाब में एनडीए के नौकरी देने के वादे हकीकत बनेंगे इसकी बहुत उम्मीद नहीं है।
बेरोजगारी की समस्या को लेकर नाराजगी
दरअसल राजग ने नौकरी की जगह रोजगार की बात की है और गठबंधन मे तीन करोड़ सरकारी नौकरी की जो व्यवहारिक नहीं दिख रहा। फिर भी आने वाली नई सरकार की ओर उनकी निगाहें जरूर रहेंगी। इसी तरह बेतिया के एमजेके कॉलेज के समीप चाय दुकान पर चुनावी चर्चा करते पांच-छह युवाओं में से एक मयंक तिवारी कहते हैं कि जंगलराज या एसआईआर में खामी के अपने-अपने दावे हो सकते हैं मगर यह हमारी बेरोजगारी का इलाज तो नहीं।
वे साफ कहते हैं कि नीतीश सरकार में नौकरी की भर्तियां नहीं निकलती कुछ होती भी हैं तो पेपर लीक के फेर में फंस जाती हैं और ऐसे में प्रदेश से बाहर रोजगार के लिए जाना विवशता है।
बाढ़ और सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार का मुद्दा
वहीं बाढ़ तथा सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार की बातें भी इन लोगों में लगभग सभी वर्ग और समूहों के बीच एक समान रही। कोशी तथा महानंदा नदियों के बाढ़ प्रकोप से लगभग हर साल रूबरू होने वाले चंपारण के रमगढ़वा इलाके के निवासी रामसेवक महतो हों या अररिया के मोहम्मद असलम जैसे तमाम लोगों का कहना है कि कोशी तथा महानदी की बाढ को बचपन से हम भोगते हुए 60 की उम्र तक पहुंच चुके हैं मगर अब तक की सरकारों ने कोई स्थाई उपाय नहीं निकाला।
2024 में इन इलाकों में भयंकर बाढ़ आयी थी मगर गनीमत है कि इस साल ऐसी नौबत नहीं आयी मगर यह दैवीय कृपा रही न कि सरकारी व्यवस्था का परिणाम।
जनता से जुड़े सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार की शिकायतें पर सभी जगह एक ही सुर सुनाई दिए। कि बिना रिश्वत दिए कोई काम नहीं होता। चाहे यह सरकारी योजनाओं के लाभ लेने का ही मसला क्यों न हो।
मोतिहारी के एक चिकित्सक, मधुबनी के पिंटू पटेल से लेकर अररिया के चंद्रमोहन राय हों सबने कहा कि भ्रष्टाचार का आलम यह है कि मृत्यु प्रमाण पत्र भी रिश्वत के बिना जारी नहीं किया जाता। वैसे कुछ ने व्यंग भी किया कि इस भ्रष्टाचार में जाति भी नहीं देखी जा रही है। जाहिर तौर पर यह तंज लालू राज पर था।

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