Bharat Vs India: संविधान सभा में देश के नाम पर हुई दिलचस्प चर्चा, आखिर 'इंडिया' को क्यों दी गई प्राथमिकता
इतिहास के पन्ने पलटें तो स्पष्ट होता है कि पहले-पहल संविधान निर्माताओं ने इसमें देश के लिए भारत शब्द का प्रयोग नहीं किया था। केवल इंडिया था। अनुच्छेद- एक पर बहस 17 नवंबर 1948 को होनी थी लेकिन गोविंद बल्लभ पंत के सुझाव पर टल गई। 18 सितंबर 1949 को बीआर आंबेडकर ने अनुच्छेद- एक बदलाव के साथ प्रस्तुत किया जिसमें इंडिया पहले था।

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। आज के समय इंडिया बनाम भारत पर सियासत तेज हो चुकी है। कुछ दिनों पहले जी 20 शिखर सम्मेलन में शामिल मेहमानों को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से भेजे गए रात्रिभोज के निमंत्रण पत्र में 'प्रेसिडेंट ऑफ भारत' लिखा गया था। विपक्षी दलों ने आरोप लगाए कि मोदी सरकार देश के नाम इंडिया से बदलकर भारत करना चाहती है।
देशभर में आज के समय चौंक- चौराहे से लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स तक हर जगह ये चर्चा हो रही है कि देश का क्या नाम सबसे उचित है भारत या इंडिया।
संविधान सभा में देश को क्या नाम मिला और कौन किसके पक्ष में था
इतिहास के पन्ने पलटें तो स्पष्ट होता है कि पहले-पहल संविधान निर्माताओं ने इसमें देश के लिए भारत शब्द का प्रयोग नहीं किया था। केवल इंडिया था। इस पर कई सदस्यों ने आपत्ति जताई थी।
संविधान का अनुच्छेद- एक देश के नाम को स्पष्ट करता है। इसमें लिखा है- इंडिया दैट इज भारत... यानी दोनों नाम शामिल किए गए किंतु हजारों वर्ष पुराने भारत के बजाय अंग्रेजीकरण किए जा चुके नाम इंडिया को प्राथमिकता दी गई।
इन नेताओं ने भारत शब्द पर जोर दिया
इसके बाद देश के नाम पर संविधान सभा में जबर्दस्त बहस से सहमत हुई जिसमें महाकोशल (अब मप्र ) से आए सदस्य सेठ गोविंद दास और अल्मोड़ा में जन्मे हरगोविंद श्री कामत ने बहस पंत भारत नाम के प्रयोग लेकर प्रस्ताव करते हुए बहुत मुखर रहे। के. सुब्बाराव,राम सहाय और कमलापति त्रिपाठी ने भी भारत पर जोर दिया।
इंडिया नाम का कोई प्राचीन इतिहास नहीं: सेठ गोविंद दास
अनुच्छेद- एक पर बहस 17 नवंबर 1948 को होनी थी, लेकिन गोविंद बल्लभ पंत के सुझाव पर टल गई। 18 सितंबर 1949 को बीआर आंबेडकर ने अनुच्छेद- एक बदलाव के साथ प्रस्तुत किया जिसमें इंडिया पहले था।
कई सदस्य इस नामकरण और शब्दों के क्रम से सहमत नहीं थे। संविधान सभा के सदस्य एचवी कामत ने बहस का प्रस्ताव करते हुए भारत शब्द को पहले रखने की बात कही।
सेठ गोविंद दास ने विष्णु और ब्रह्म पुराण का उदाहरण देते हुए कहा कि इंडिया नाम का कोई प्राचीन इतिहास नहीं है। भारत शब्द हमारी सांस्कृतिक विरासत और समृद्ध इतिहास का परिचायक है। यदि इस संबंध में सही निर्णय नहीं लिया गया तो देशवासी स्वाधीनता का भाव कैसे अनुभव कर सकेंगे?
भारत दैट इज इंडिया: कमलापति त्रिपाठी
कमलापति त्रिपाठी का संबोधन आज भी याद किया जाता है। उन्होंने कहा था कि संविधान में भारत दैट इज इंडिया... लिखा जाना चाहिए। एक हजार वर्ष की दासता के कारण देश ने अपना नाम, इतिहास और मान गवा दिया है। यह पुनस्थापित किया जाना चाहिए।
हरगोविंद पंत ने भारतवर्ष नाम पर जोर देते हुए जंबूद्वीपे भरतखंडे आर्यावर्त... का उल्लेख किया। कहा कि भारत का उल्लेख महाकवि कालिदास ने किया है। इंडिया विदेशी अपनी सुविधा के लिए लाए।

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